नुरूल यूपी एस टी एफ के अगले शिकार

तीन दिनों तक पीटने के बाद अधमरा कर फेका
नाम - नुरुल हसन
उम्र - 62 से ज्यादा
निवासी - गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
हसन नुरुल हज जाने के लिए कुछ जरुरी कागजातों को दुरुस्त कराने के सिलसिले में 24 अक्टूबर को लखनऊ गए हुए थे। लेकिन, आजमगढ़ फोबिया की शिकार और हर दाढ़ी- टोपी वाले में आतंक का निशां खोज रही उत्तर प्रदेश एस टी एफ के चंगुल में फंस गए. दो दिन की पुछ्ताझ के बाद, हाजी साहब की यह हालत यह है की वह अब हज छोड़, खुदा से अपने को उठा लेने की दुआ मांग रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पीयूएचआर के लोगो के बाद हाजी साहब एस टी एफ के नए शिकार हैं. हसन को भी उसी दिन एस टी एफ ने उठाया था जिस दिन पीयूएचआर के अन्य लोगो को गायब किया था. इसी दिन आजमगढ़ से दिल्ली जा रहे दो युवकों को कैफियत एक्स्स्प्रेस से अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन पीयूएचआर के लोगो के हस्तक्षेप से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी थी. एक ही दिन उठाए गए इन लोगों के मामले अब खुल के सामने आ रहे हैं । हसन को भी उसी दिन एस टी एफ ने उठाया था जिस दिन पीयूएचआर के अन्य लोगो को गायब किया था. इसी दिन आजमगढ़ से दिल्ली जा रहे दो युवकों को कैफियत एक्स्स्प्रेस से अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन पीयूएचआर के लोगो के हस्तक्षेप से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी थी. एक ही दिन उठाए गए इन लोगों के मामले अब खुल के सामने आ रहे हैं. गाजीपुर के कासिमाबाद कसबे के रहने वाले नुरुल हसन उत्तर प्रदेश रोडवेज के सेवानिवृत कर्मचारी हैं. 24 अक्टूबर को हसन साहब अपने हज जाने के कागजो को दुरुस्त करने के लिए गाजीपुर से लखनऊ के लिए रवना हुए थे. लखनऊ में वह जैसे ही बस स्टैंड पर उतरे एस टी एफ के लोगो ने उन्हें घेर लिए और एक गाड़ी में बैठ वहां से करीब २० मिनट की दुरी पर स्थित किसी मकान में ले गए, वहां पुछ्ताझ के लिए उन्हें काफी प्रताडित किया. दो दिनों तक एक खंभे से बाँध कर रखा गया. उनकी दाढ़ी नोची गई और कई तरह से प्रताडित किया गया. एस टी एफ उनसे बार-बार एक ही सवाल पूछती रही - " तुम्हारा आजमगढ़, सरायमीर और संजरपुर से क्या ताल्लुकात हैं. कौन-कौन रिश्तेदार वंहा रहते हैं, क्या करते हैं," इन सभी सवालों का जवाब नुरुल हसन के पास अभी भी है. वह आतंकित से अब इन सवालों का जवाब ख़ुद से ही पूछ रहे हैं.तीन दिनों तक पीटने के बाद भी इसका जवाब नहीं मिला तो एस टी एफ ने २७ अक्टूबर उन्हें इस हिदायत के साथ सड़क किनारे फेक दिया कि " किसी को कुछ नहीं बताना." बाद में रोडवेज के ही एक परिचित कर्मचारी ने उन्हें मऊ के फातिमा हॉस्पिटल में भरती कराया. वहां भी दो दिनों बाद अचानक अस्पताल वालो ने उन्हें अस्पताल से निकल दिया. फिलहाल नुरुल हसन ने गाजीपुर में मामला दर्ज कराया है. दैनिक हिंदुस्तान और कुछ उर्दू के अखबारों ने इस खबर को प्रकाशित किया लेकिन अन्य किसी अखबार में नुरुल हसन को जगह नसीब नहीं हुई. शायद इस लिए की एस टी एफ ने उन्हें मीडिया के सामने एक आतंकी के रूप में नहीं पेश किया, और सड़क किनारे फेक दिया.अगर नुरुल को भी एस टी एफ आतंकी सिद्ध कर उनके रिश्ते आजमगढ़ से जोड़ती तब मीडिया की आँख खुलती क्योंकि आज की आम मीडिया पुलिस की प्रेस ब्रिफिन्गों के आधार पर चलने की आदी होती जा रही है.एक ही दिन ( 24 अक्टूबर, 08) में उत्तर प्रदेश की 'तेजतर्रार' एंटी टेरिरिस्ट फोर्स द्वारा लोगो को अगवा कर प्रताडित करने की तीसरी घटना है. उस दिन लखनऊ से उठाए पीयूएचआर नेता अभी भी जेल में हैं, पीयूएचआर से जुड़े शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव लक्ष्मण प्रसाद अभी भी इनके निशाने पर हैं. इनके फोन लगातार टेप किए जारहे हैं. यंहा के 'माया राज' में उत्तर प्रदेश में सच बोलने वाले और अल्पसंख्यक सरकारों और सुरक्षा एजंसियों के निशाने पर है.
पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स की ओर से जारी
शाहनवाज़ आलम 09415254919
राजीव यादव 09542800752
लक्ष्मण प्रसाद 0988969688
विजय प्रताप 09982664458
ऋषि कुमार सिंह 09911848941

एस टी एफ ने ही उठाया है मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को !

अभी-अभी सूचना मिली है की २४ अक्टूबर से गायब पी यू एच आर के विनोद यादव सहित ४ लोगों को एस टी एफ ने ही उठाया है। इन सभी को आज २७ अक्टूबर दिन में लखनऊ की जिला अदालत में पेश किया गया। प्रारंभिक तौर पर यही माना जा रहा है इन सभी को पीयूएचआर प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव की गतिविधिओं के सम्बन्ध में पूछ्ताझ के लिए उठाया है, सम्भावना यह भी है की इसका अगला निशाना राजीव, शाहनवाज ख़ुद हों। हालाँकि अभी वकील का कहना है की इन्हे धारा ४१९ और ४२० के तहत पकड़ा गया है. लेकिन ये बात गले नही उतरती.आप सभी पत्रकार, प्रबुद्ध जन से अपील है की इस पुलिसिया उत्पीडन का एक जुट हो विरोध करे ओर एस टी एफ की इस तरह की गैर गतिविधिओं के विरोध में पीयूएचआर का साथ दें,
पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइट्स (पीयूएचआर) प्रदेश कार्यकारिणी की ओर से
राजीव यादव, ०९४५२८००७५२, शाहनवाज़ आलम, ०९४१५२५४९१९, विजय प्रताप, 09982664458 लक्ष्मण प्रसाद,०९८८९६९६८८८ ऋषि कुमार सिंह,09911848941

और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बारी - लखनऊ से पीयूएचआर के ४ लोग 'गायब'

उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय से आतंकवाद के नाम पर समुदाय विशेष के लोगों को प्रताडित करने के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स (पीयूएचआर) के प्रदेश कार्यकारणी सदस्य और पत्रकार राजीव यादव (इस ब्लॉग के मोडरेटर भी) के बड़े भाई विनोद यादव गत २४ अक्तूबर से गायब हैं. विनोद अपने घर आजमगढ़ से तीन साथिओं के साथ लखनऊ जाने के लिए निकले थे. उनके साथ एक और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता सरफ़राज़ भी हैं. दोनों के फोन स्विच आफ बता रहा है. इस सम्बन्ध में पुलिस और प्रशासन के सभी उच्चाधिकारों से भी संपर्क किया जा चुका है, लेकिन सभी ने इन लोगो के सम्बन्ध में किसी प्रकार की सूचना से होने से इनकार किया है. लेकिन संभावना जताई जा रही है इन्हे एस टी एफ या ऐ टी एस के लोगों ने उठाया है. ये लोग उसी जिले के रहने वाले हैं जिसे कुछ समय से आतंकवाद की जननी के रूप में प्रचारित किया गया है. गौरतलब है की ये लोग आजमगढ़ से आतंकवादी बता कर उठाये गए मुस्लिम युवकों के परिजनों को कानूनी सहायता दिलाने का प्रयास कर रहे थे. पहले भी इन लोगों को आजमगढ़ पुलिस ने जिले में धरना देने से रोका था. लेकिन अचानक इनके गायब होने से आजमगढ़ के लोग भी ऐसी सम्भावना इस लिए भी जताई जा रही क्योंकि जिस दिन से ये लोग गायब हैं उसी दिन ऐ टी एस के लोगों ने आजमगढ़ से दिल्ली जा रहने दो और मुस्लिम युवकों को अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन उनकी यह कोशिश मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर से जुड़े इन्हीं लोगों की सक्रियता के चलते नाकाम हो गया और अंततः इन युवकों को कानपूर में छोड़ दिया गया. यह ख़बर दैनिक हिंदुस्तान ने "मानवाधिकार संगठनों ने दो युवकों को ऐ टी एस से मुक्त कराया" शीर्षक से प्रकाशित भी किया था. यह घटना भी २४ तारीख की ही है, और विनोद और सरफ़राज़ भाई भी उसी दिन से गायब हैं. इसे लेकर उत्तर प्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों में जबरदस्त रोष व्याप्त है, आतंकवाद के नाम पर समुदाय विशेष के लोगों से लड़ते-लड़ते, सुरक्षा एजेंसियां अब मानवाधिकार संगठनों के लोगो तक पहुँच गई हैं. वैसे इसे लोगों का इस तरह से गायब होना कोई नई बात नही है. पहले भी ऐसे लोगों को नक्सलवादिओं के समर्थक या सरकार विरोधी करार कर प्रताडित करना सुरक्षा एजन्सिओं का शगल रहा है.लेकिन यह पहला मौका है जब की तथाकथित 'आतंकवादिओं' के समर्थों को इस तरह गायब किया गया है,आप सभी साथिओं, पत्रकारों और सजग नागरिकों से अपील है की उत्तर प्रदेश एस टी एफ और ऐ टी एस की इस कार्यवाही के खिलाफ संघर्ष में हमारा साथ दे और अपने स्तर से सरकार पर इन लोगों को मुक्त करने के लिए दबाव बनायें।

पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स की ओर से
राजीव यादव, ०९४५२८००७५२ शाहनवाज़ आलम, ०९४१५२५४९१९ विजय प्रताप, 09982664458लक्ष्मण प्रसाद,०९८८९६९६८८८ ऋषि कुमार सिंह,09911848941

ऐसे पकडे जाते हैं 'आतंकवादी' !

मीडिया ने जिस तरह से आतंक के गढ़ के नाम से आजमगढ़ को बदनाम किया उसका असर हालात के सामान्य होने पर भी काम कर रहा है। जगह और समुदाय विशेष को निशाने पर लिए जाने की एक घटना सामने आयी है,जिसने चिंता की लकीरों को और गहरा कर दिया है। तारीख 24-10-08.... शाम के 6 बजे आजमगढ़ के शाहपुर स्टेशन से राशिद और असफर जमाल नाम के दो लड़के दिल्ली के लिए निकलते हैं। ये दोनों लड़के कैफियत ट्रेन की एस-2 बोगी सीट नंबर 41 और 44 में अपना रिजर्वेशन कराए होते हैं। लखनऊ पहुंचने पर तीन लोग बोगी में आते हैं और इनसे सीट खाली करने के लिए कहते हैं। जवाब सवाल होते हैं तो पता चलता कि बाद में आए लोग सीट 42 खाली कराना चाहते हैं। जिसपर ये दोनों बैठे ही नहीं होते हैं। बाद में आए लोग फोन पर किसी आदमी से बात कर गाड़ी,सीट और अपने पहुंचने की जानकारी लगातार दे रहे होते हैं। पूछताछ के दौरान राशिद के साथ वाला लड़का घबराकर अपना नाम बता देता है। फिर क्या था बाद में चढ़े लोगों ने मोबाईल के कैमरे से एक साथ कई फोटो खींच डाले। इसमें राशिद की ज्यादा और असफर जमाल के कम। बैग की तलाशी लेते हैं। मोबाइल फोन को लेकर पड़ताल करते हैं और मतदाता पहचान पत्र की फोटो खींचते हुए चले गए। इस दौरान घर का पता,मोबाइल नम्बर तक की जानकारी ले लेते हैं। चूंकि इस पूरे घटना क्रम से दोनों लड़के काफी घबरा जाते है इसलिए आगे का सफर नहीं करना चाहते और लखनऊ में उतरकर जाने लगे। इसके वाद वही लोग फिर आ गए और हाथ पकड़कर धमकाते हुए वापस ट्रेन में चढ़ा देते हैं। ट्रेन स्टेशन छोड़ रही होती है,इसलिए लखनऊ पर इन्हें जनरल बोगी में चढ़ना पढ़ता है,हालांकि दोनों लड़के उन्नाव अपनी बर्थ पर वापस पहुंच जाते हैं। डर और आशंका से दोनों लड़के कानपुर में उतर गए हैं। फिलहाल अभी तक दोनों लड़के कानपुर में ही हैं। हालांकि मीडिया के सामने मामला आ चुका है। दैनिक जागरण (दैनिक जागरण पेज नंबर 7 और कैफियत में आजमगढ़ के दो युवकों से पूछताछ...चारबाग स्टेशन पर स्पेशल फोर्से के 6 लोगों ने तलाशी और पूछताछ की....कानपुर संवाददाता) ने इसे खबर बनाया है। इस घटना पर आजमगढ़ और समुदाय विशेष के लोगों को अपराधी के निगाह से देखे जाने का पूरमंशा सबके सामने आई है। जिस तरह से इस काम को अंजाम दिया गया है,इसे किसी शरारती तत्वों की वारदात नहीं कर सकते हैं। यह जरूर किसी प्रशिक्षित पुलिसिया संगठन का काम है। राशिद का कहना है आजमगढ़ से हम लोगों का चढ़ना तो इन लोगों को टिकट से पता चल चुका था,लेकिन नाम पूछना चौकाने वाला था। नाम सुनते ही तड़ातड़ फोटो लिए जाने ने उन्हें हिला कर रख दिया। राह चलते किसी का सिर्फ इस आधार पर तलाशी ले लेना कि उसका नाम एक खास समुदाय को इंगित करता है और वह खास जगह का रहने वाला है,किसी भी तरीके से लोकतंत्रिक समाज को मर्यादा नहीं देता है। हाल के ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए जिसमें पुलिस खास समुदाय के खिलाफ लामबंद होते दिखी है। हालिया विस्फोटों के सिलसिले में पुलिस लगातार मास्टर माइंड को पकड़ने के दावे करती और विफल होती रही है। अपनी इस विफलता की कुण्ठा को निकालने के लिए निर्दोष लोगों को निशाना बना रही है। यह महज एक घटना नहीं है,इसके पीछे सुरक्षा तंत्र का दिवालियापन सामने आता है। यह चाहे किसी सफर करने वाले को सुरक्षा देने का मुद्दा हो या फिर किसी से पूछताछ का। सिर्फ दो लोगों को पहले से आइडेंटिफाई करके पूछताछ करना और तलाती लेना स्थितियों के खतरनाक होने की सूचना देता है। जबकि उसी समय बोगी के बाकियों से कोई पूछताछ नहीं किया जाना आशंका को जन्म देने के लिए काफी है। हालांकि अभी दोनों लड़के पीयूएचआर और यंग जर्नलिस्ट एशोसिएसन की निगरानी में हैं। आगे की कानूनी कार्यवाही की तैयारी चल रही है ताकि खुफिया एंजसियों की किसी भी साजिश या गैरकानूनी कार्यवाहियों को रोका जा सके।(पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स, यंग जर्नलिस्ट एसोशिएसन की ओर राजीव यादव, शहनवाज आलम,विजय प्रताप, लक्ष्मण प्रसाद, ऋषि कुमार सिंह द्वारा जारी....)

गुजरात ब्रांड के आँसू न मागियें.....

आसूओं का ब्यापार करता हूँ
ब्रांड वाले आसूओं पर छूट प्रदान करता हूँ
अगर है जान-पहचान तो
बिना ब्रांड वालों पर भी
कुछ इंतजाम करता हूँ
मौसम है आतंकवाद के आसूओं का
कीमत इनकी आसमान छू रही है
सिंगुर और नंदीग्राम सस्ते हैं
चाहिए तो ले जाईये
लेकिन कृपा करके
गुजरात ब्रांड के आँसू न मागियें
इनके लिए लम्बी लाइन है
हर पार्टी वालों में लडाई है
और इसमें मेरी तो शामत आई है
इसलिए सुझाव है
पानी से आई तबाही के
आँसू खरीदिये
जनता की नजरों में हीरो बनिए
दाम इनके सस्ते हैं
थोक में लें
साथ ऑफ़र भी है ...........

युवा पत्रकार सौम्या विश्वनाथन का हत्यारा कौन!

आखिरी सलाम..... ऋषि कुमार सिंह

25 वर्षीय युवा पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या काफी दुखद है। यह हत्या राजधानी के सुरक्षा इंतजामों पर कई प्रश्न खड़े करती है। देश की राजधानी में ही महिलाएं सुरक्षित नहीं तो देश के सुदूर इलाकों महिलाओं की सुरक्षा की बात बेईमानी सी जान पड़ती है। महिलाओं से जुड़े अपराधों के लगातार होने के बावजूद पुलिस ने कोई खास कदम नहीं उठाए। जैसे कि खबरें आ रही हैं कि एक रिक्शा चालक ने पुलिस को फोन कर सड़क दुर्घटना की जानकारी दी थी। जबकि देर रात पुलिस की पेट्रोलिंग वैन कहां का दौरा कर रही थी। बसंत कुंज इलाके में साढ़े तीन बजे ऐसा कोई ट्रैफिक नहीं रहता। अगर जरा सी सावधानी रखी जाए हर आने जाने वाली गाड़ियों पर नजर न रखी जा सकती है। गौरतलब है कि बसंत कुंज जाने वाला रास्ता काफी सुनसान सा रहता है। दरअसल दिल्ली पुलिस इतनी लापरवाह हो चुकी है कि इस पर चाहे आतंक से सबक सीखने की जिम्मेदारी हो या महिलाओं की सुरक्षा के लिए चौकस रहने की बात,अब कोई असर नहीं पड़ता। रही दोषियों को सजा दिलाने की बात तो इस देश की पुलिस को जिस तरीके भर्ती किया जाता है और प्रशिक्षण दिया जाता है,उसके बल पर यह सिर्फ कहानियां सुनाकर झूठे मुजरिमों को पैदा कर सकती है। 1861 के मैन्युअल के आधार पर गठित भारतीय पुलिस बदलते समाज की जरूरतें पूरी नहीं कर सकती है। यही कारण है कि पुलिस से दोषी छूटते हैं और ऐसे दोषी अपने पीछे कई लोगों को वैसा ही अपराध करने के लिए प्रेरित करते हैं। पुलिस जांच के दौरान कितनी मुस्तैदी दिखाती है,दोषियों को सजा मिलने के साथ ही तय हो पाएगा। भले ही इस देश ने महिला राष्ट्रपति तो चुन लिया हो,चांद पर पहुंचने की तैयारी में हो लेकिन यह देश की अपनी आधी आबादी को सुरक्षित जीवन देने में नाकाम रहा है।पनिहारन की तरफ से अपने इस युवा पत्रकार के खोने पर शोक व्यक्त करता हूँ। और न्याय दिलाने के लिए संघर्ष का साथी बनने का भरोसा दिलाता हूँ।
सौम्या के हत्यारों को गिरफ्तार करो ! - रितेश
मित्रों,
सौम्या विश्वनाथन नहीं रहीं. ईमका के ग्रुप मेल पर कभी-कभार जूनियरों का उत्साह बढ़ाने वाले उनके मेल ही यादों के नाम पर मेरे पास हैं.
पता नहीं, किन हालातों में उनकी हत्या की गई लेकिन पुलिस की लापरवाही का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि पोस्टमार्टम से पहले तक उसे पता ही नहीं चला कि सौम्या जी को गोली मारी गई है.
जिस समाचार संगठन में वो काम करती थीं, उसने दूसरे समाचार संगठनों के साथियों को बुलाकर हत्या का सच सामने लाने की कोशिश करने की बजाय उस खबर को तब तक दबाए रखने की कोशिश की जब तक कि दूसरे चैनल ने उसे "ब्रेक" नहीं कर दिया.
सौम्या जी नहीं लौट सकतीं. लेकिन सच सामने लाने के पेशे से जुड़े लोगों के सामने वो एक सवाल तो छोड़ ही गई हैं कि अगर वो किसी कॉल सेंटर की कर्मचारी होतीं या किसी दूसरे पेशे से जुड़ी होतीं तो क्या खबरों की दुनिया उनकी हत्या को इतने हल्के से ही लेता. ये सिर्फ दुखद और सदमा नहीं है, अफसोसजनक भी है.
ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे और पुलिस को इतनी बुद्धि दे कि वो आपके हत्यारों को पकड़ सके।

धमाकों के पीछे दहशतगर्द -सिमी अध्यक्ष


अम्बरीश कुमार
प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही ने दिल्ली में हुए बम धमाकों के लिए सीआईए और मोसाद को जिम्मेदार ठहराया है। शाहिद बद्र फलाही ने कहा, ‘चौदह सितम्बर और फिर आज दिल्ली में जो धमाके हुए उसके लिए सीधे-सीधे अमेरिकी और इजराइली खुफिया एजंसी जिम्मेदार हैं। ये देश अपने हथियारों और सुरक्षा उपकरणों का बाजर तैयार करने के लिए एशियाई देशों को निशाना बना रहे हैं। बम धमाके होंगे तो इनके हथियार व सुरक्षा उपकरणों का बाजर भी बढ़ेगा। हम इन धमाकों की पुरजोर निंदा करते हैं और जो लोग इन हादसों में मारे गए, उनके परिवार वालों से हमदर्दी जताते हैं। हम उनके दुख-दर्द में साथ हैं। वे दहशतगर्द हैं जिन्होंने इस घटना को अंजम दिया।’फलाही ने आगे कहा कि इन धमाकों से मुसलमान का कोई संबंध नहीं है। आज भी देश में जो १७५ दहशतगर्द तंजीमे हैं, उनमें सिर्फ दो तंजीमें इस्लामी है, बाकी सब गैर-इस्लामी। इनमें एक तंजीम इंदौर अंजुमन का पता नहीं और दूसरी हमारी सिमी प्रतिबंधित है। सिमी पर जब से प्रतिबंध लगा है, उसके बाद से इस संगठन की सभी गतिविधियां ठप हैं। इस संगठन का सालों से कोई नया सदस्य भी नहीं बना है। यह पूछे जने पर कि क्या इंडियन मुजहिदीन का सिमी से कोई संबंध नहीं है, फलाही ने कहा-इंडियन मुजहिदीन फर्जी तंजीम है जो मुसलिम समुदाय को बदनाम करने के लिए बनाई गई है। अमेरिका और इजराइल जिस तरह एशियाई देशों में दहशतगर्दी फैला रहा है, उसे देखते हुए साफ है कि इंडियन मुजहिदीन का मुखौटा लगाकर ये देश भारत में दहशत फैलाना चाह रहे हैं। इस काम में आरएसएस इनकी मददगार बना हुआ है। फलाही ने कहा कि हर बार मुसलमान से ही देश भक्ति का सबूत क्यों मांगा जता है। जब भी धमाके होते हैं तो हमेशा सवाल मुसलिम तंजीमों के नेताओं से पूछा जता है। कभी विश्व हिन्दू परिषद या बजरंग दल के लोगों से यह सवाल नहीं किया जता। गौर करें तो पाएंगे कि जब भी देश में बम धमाके हुए हैं, प्रवीण तोगड़िया, अशोक सिंघल और बाल ठाकरे का कोई बयान नहीं आता। नाथूराम गोडसे ने इस देश में हिन्दू-मुसलिम एकता के ङांडाबरदार महात्मा गांधी की हत्या की थी लेकिन आरएसएस पर प्रतिबंध नहीं लगता है। उड़ीसा से लेकर कानपुर तक बजरंग दल के लोग क्या कर रहे हैं, यह सामने आ चुका है पर उन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता। दूसरी तरफ दिल्ली में धमाका होता है और आजमगढ़ का हर मुसलमान आतंकवादी मान लिया जता है। पूछताछ के नाम पर बेगुनाह लोगों के परिवार वालों से बदसलूकी की जाती है।
सिमी पर देश में विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने का आरोप लगता रहा है?
फलाही-आरोप जरूर लगता रहा है पर यह सच नहीं है। किसी भी अदालत में यह आरोप साबित नहीं हो पाया है। सिमी पर भड़काऊ पोस्टर छापने मसलन ‘वेटिंग फॉर गजनी’ और बाबरी मसजिद तोड़ने वालों से लड़ने की अपील करने वाले पोस्टरों को जरी करने का मकसद क्या था?फलाही-जिस वेटिंग फॉर गजनी वाले पोस्टर का जिक्र हमारे मीडिया के साथी बार-बार करते हैं, उसमें आपत्तिजनक क्या है, आप खुद ही बताएं। जिन लोगों ने संविधान के सामने शपथ लेकर वादा खिलाफी की और देश की ऐतिहासिक धरोहर को तोड़कर गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार किया, उनसे लड़ने के लिए खुदा से किसी योद्धा को भेजने की कामना करना कहां से सांप्रदायिक है। जहां तक बाबरी मसजिद पुनर्निर्माण की बात है तो यह वादा तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने भी किया था। दूसरी तरफ जिस भड़काऊ पर्चे की बात की ज रही है, उसे मैंने १९९९ में सिमी की पत्रिका इस्लामिक मूवमेंट में एशियन एज में छपे एक लेख का हिन्दी में अनुवाद छापा था। जिसे लेकर मेरे खिलाफ मुकदमा दायर किया गया जो आज भी चल रहा है लेकिन एशियन एज के खिलाफ कुछ नहीं हुआ। क्या यह दोहरे मानदंड नहीं हैं।
देश में जो भी आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं, उनका आप विरोध करते हैं या नहीं?
फलाही-इस्लाम दहशतगर्दी का समर्थन नहीं करता है। इस तरह के जितने भी धमाके हो रहे हैं, हम उन सभी का विरोध करते हैं। यह इंसानियत के खिलाफ दहशतगर्दो का काम है। इसके पीछे अमेरिका और इजराइल का हाथ है। यह धमाके सिर्फ भारत में नहीं हो रहे हैं, मुसलिम देशों में भी हो रहे हैं। इसके पीछे अमेरिका की साम्राज्यवादी आर्थिक नीतियां हैं। दहशत फैलाकर वे एशियाई देशों में सुरक्षा के नाम पर हथियारों और सुरक्षा उपकरणों का बड़ा बाजर तैयार कर रहे हैं।शाहिद बद्र फलाही सिमी के तादमे आखिर यानी प्रतिबंध लगते समय तक अध्यक्ष रहे हैं और जब प्रतिबंध हटेगा तो वे फिर अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। आजमगढ़ से सटे ककरहटा गांव में फलाही अपने यूनानी दवाखाने में मरीजों से घिरे रहते हैं। आखिर में वे ये जरूर कहते हैं-इस पूरे इलाके में २0-२२ किलोमीटर तक कोई अस्पताल नहीं है। कभी फुर्सत मिले तो ऐसे सवालों को भी उठा दें।
विस्फ़ोट में बच्चा मारा
दिल्ली के महरौली इलाके में अंधेरिया मोड़ के पास हुए विस्फ़ोट में एक बच्चा मारा गया और 20 घायल हो गए। धमाका फूलों के बाजर में हुआ जिसमें बड़ी संख्या में ग्राहक मौजूद थे। दो हते पहले ही दिल्ली में शनिवार के ही दिन हुए बम विस्फ़ोट में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। सत्रह घायलों को अखिल भारतीय आयुíज्ञान संस्थान में दाखिल कराया गया है जिनमें तीन बच्चे हैं। विस्फ़ोटके बाद दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। दिल्ली के पुलिस आयुक्त वाईएस डड्वाल और अन्य आला पुलिस अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर हालात का जयज लिया है।चश्मदीदों ने बताया कि टी शर्ट और डेनिम की पैंट पहने दो युक काली मोटर साइकिल पर सार होकर बम रखने आए थे। उन्होंने काले रंग का पॉलीथीन का पैकेट एक दुकान के बाहर रखा जिसमें करीब दस मिनट बाद (दोपहर बाद सा दो बजकर छह मिनट पर) विस्फ़ोट हो गया। इससे आसपास के इलाके को भारी नुकसान पहुंचा। बताया जता है कि कुछ लोगों ने दोनों युकों से कहा कि आपका सामान यहां छूट गया है। लेकिन युकों ने इसका कोई जब नहीं दिया और मोटरसाइकिल पर सार होकर तुरंत फरार हो गए। चश्मदीदों ने बताया कि एक बच्चा पॉलीथीन के पास खड़ा था। उसने पॉलीथीन को उठाया और अचानक विस्फ़ोट हुआ जिससे उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो गए।चश्मदीदों ने बताया कि पॉलीथीन के भीतर एक टिफिन बॉक्स में बम रखा गया था। विस्फ़ोट से भयानक आाज हुई जिससे आसपास के इलाके में दहशत फैल गई। इससे कई दुकानों के शीशे टूट गए। विस्फ़ोट के कुछ देर बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे जिससे इलाके के लोगों में काफी गुस्सा है। आम लोगों ने काफी घायलों को खुद ही अस्पतालों में पहुंचाया। करीब एक घंटे बाद एम्बुलेंस भी मौके पर पहुंचीं जिनसे बाकी घायलों को एम्स और अन्य अस्पतालों में भेज गया। पुलिस मोटरसाइकिल पर सार दोनों आतंकादियों की तलाशी में लगी है। पुलिस अधिकारियों ने नागरिकों से शांति बनाए रखने की अपील की है। फरीदाबाद पुलिस ने कहा है कि कल दिल्ली में विस्फ़ोट की धमकी दी गई थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने दक्षिण दिल्ली में आज हुए विस्फ़ोट में मारे गए लड़के के परिार को पांच लाख रुपए के मुआज की घोषणा की है। घायलों को 50-50 हजर रुपए दिए जायेंगे ।