बदलेगी ब्लाग की परिपाटी

शाहनवाज आलम

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में केरल के एक ब्लागर की रिट खारिज कर दी। याचिकाकर्ता ने अपने उपर एक राजनैतिक पार्टी द्वारा लगाए गए अपराधिक धमकी और किसी समुदाय के विश्वास को ठेस पहुचाने जैसे गंभीर आरोपों को खारिज करने की अपील की थी। उसका तर्क था की ब्लाग पर लिखे गए उसके शब्द सार्वजनिक नहीं थे बल्कि ब्लागर समुदाय के लिए लिखे गए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ब्लागर्स की दुनिया के एक हिस्से में जहां हड़कम्प मच गया है वहीं दूसरी ओर इसकी दिशा और दशा पर भी गंभीर बहस शुरु हो गई है।

दरअसल एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के बतौर उभर सकने वाले जनसंचार के इस नए अवतार पर हमारे यहां शुरु से ही अगंभीर और कुंठित लोगों ने कब्जा जमा लिया था। जिनके लिए ब्लाग सिर्फ अपनी निजी कुंठाएं परोसने और तू तू-मैं मैं करने का मंच बन गया। नहीं तो जिस ब्लागिंग ने अमरीकी साम्राज्यवादी मंसूबों और उसके अफगानिस्तान और इराक के मानव सभ्यता को नष्ट करने की नीति के खिलाफ जनता के बीच सबसे ज्यादा जनमत तैयार किया। यहां तक कि उसे सड़क पर उतरने तक को मजबूर कर दिया। उसमें अपने देश में भी जनता के सरोकारों से जुड़ने की असीम संभावना थी। हालांकि कुछ ब्लागर आम जनता से जुड़े सवालों को अपने यहां जरुर तरजीह देते हैं लेकिन उनके नितान्त व्यक्तिगत और गैरराजनैतिक दृष्टिकोण के चलते वो वैसा राजनैतिक-सामाजिक स्वरुप अख्तियार नहीं कर पा रहे हैं जैसा कि उनके अमरीकी और यूरोप के ब्लागर साथी कर रहे हैं। हालांकि इस समस्या को हम सिर्फ ब्लागिंग की समस्या मान कर इसे नहीं समझ सकते। हमें इसे व्यापक पत्रकारिता के संकटों से ही इसे जोड़ कर देखना होगा। क्योंकि यह उसी की उपज है। ऐसा इस लिए कि आज जितने भी ब्लागर्स हैं उनमें ज्यादातर पेशेवर पत्रकार हैं। जो इस दुहाई के साथ ब्लागिंग शुरु करते हैं कि वे अपने संसथान में मनमुताबिक काम नहीं कर पाते। लेकिन जब वे ब्लागिंग करने बैठते हैं तब भी मुख्यधारा की मीडिया की मनोदशा से बाहर नहीं आ पाते और उनका पूरा लेखन सतही और व्यक्ति केन्द्रित कुण्ठा का नमूना बन जाता है। इसी वजह से आज तक हमारे यहां कोई भी ब्लाग किसी सार्थक बहस की वजह से कभी चर्चा में नहीं आया। उपर से टीआरपी मानसिकता भी उन्हें ब्लागिंग को एक छछले और फूहड़ टैबलाइट के रुप में ही स्थापित करने को प्रेरित करती है। जिसके चलते गंभीर और राजनैतिक महत्व के मुद्दों पर बहस चलाने वाले ब्लागर्स ब्लाग की मुख्यधारा में नहीं आ पाते। वहीं ऐसे लोगों की एक बड़ी जमात अपने को इस फूहड़पने के चलते ब्लाग से दूर रहने में ही अपनी इज्जत समझता है।

इस रोशनी में देखा जाय तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला दूरगामी महत्व का है जिसका भविष्य की पत्रकारिता पर सकारात्मक असर पड़ना तय है। क्यों कि आने वाला दौर वेब मीडिया का ही है जिसकी साख का आधार उसके मुख्यधारा की मीडिया के सतहेपन के समानांतर खड़ा होना ही होगा।

इस नीलामी के बड़े मायने हैं

शाहनवाज़ आलम

पिछले दिनों न्यूयार्क में जिस तरह मशहूर शराब व्यापारी विजय माल्या ने जीवनपर्यन्त शराबबन्दी की मुहिम चलाने वाले महात्मा गांधी के सामानों के सबसे उंची बोली लगा कर खरीदा और उनकी स्वदेश वापसी करायी क्या वो एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना मात्र थी या वो एक खास तरह की सचेत कवायद जो इधर भूमंडलीकरण के दौर के साथ शुरु हुई है उसी का एक और सफल प्रयोग था। जिसका केंद्रीय विमर्श राज्य का सिर्फ एक फेसिलिटेटर होना और बाह्य विमर्श जनता द्वारा चुनी गई सरकार बनाम काॅरपोरेट है। यह पूरा प्रकरण इस कवायद का हिस्सा इसलिए भी लगता है कि हमारी सरकार के पास नौ करोड़ रूपयों का टोटा तो नहीं ही हो सकता था जिसके चलते वो नीलामी में खुद नहीं पहुंच पाई।

दरअसल पिछले दो दशकों से सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से राज्य को अक्षम साबित करने की जो मुहिम चल रही है उसी के तहत ऐसी घटनाओं को अन्जाम दिया जाता है। जिसमें किसी घटना विशेष के समय ऐसा माहौल बना दिया जाता है जिससे जनता को लगने लगे कि अगर विजय माल्या जैसे काॅरपोरेट नहीं रहते तो सरकार तो हमारी नाक ही कटवा देती। ऐसा करके जहां एक ओर काॅरपोरेट निगमों और उनके मालिकों को राष्ट्र उद्धारक के बतौर प्रस्तुत होने का मौका दिया जाता है वहीं सरकार की निकम्मी और अपने प्रतिस्पर्धी यानि निजी क्षेत्र के बड़े पूंजीपतियों के मुकाबले कमजोर और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति संवेदनहीन दिखने वाली छवि भी निर्मित की जाती है। इस सिलसिले में हम मीडिया खासकर इलेक्ट्रनिक चैनलों की भाषा, फुटेज और एंकर का सरकार के प्रति हिकारती उपमाओं भरा सम्बोधन और माल्या के प्रति देश को एक महान विपत्ति से निकाल लाने वाले महापुरूष वाले शाष्टांगी भावों को जैसे माल्या ने बचाई देश की लाज या माल्या नहीं होते तो क्या होता को याद कर सकते हैं।

एक ही साथ सरकार के अक्षम होने और काॅरपोरेट मालिकों के राष्ट्र उद्धारक होने की जो छवि निर्मित होती है उसमें एक ऐसा सामाजिक-राजनीतिक माहौल बनता है जिसमें नवउदारवादी एजेंडा एक झटके में ही काफी आगे बढ़ जाता है। मसलन अगर इसी प्रकरण में देखे तो जो विजय माल्या राजनीति और क्रिकेट में निवेश के बावजूद अपनी सुरा और सुंदरी प्रेम के चलते समाज के एक बड़े हिस्से में स्वीकार्य नहीं थे आज इस नीलामी के बाद अचानक राष्ट्रभक्ति के प्रतीक बन गए हैं। नवउदारवाद ऐसे ही राष्ट्रीय प्रतीक गढ़ना चाहता है, उसकी राजनीति इन्हीं प्रतीकों के सहारे आगे बढ़ती है।

लेकिन यहां गौर करने वाली और नवउदारवाद की कार्यनीति को समझने वाली बात यह है कि इस पूरे खेल को सरकार खुद रचती और अपने ही खिलाफ अपने कमजोर और अक्षम होने की छवि निर्मित करती है। ऐसा उसे रणनीतिक तौर पर इसलिए करना होता है ताकि वो अपने को काॅरपोरेट से तुलनात्मक रूप से कमजोर दिखाए और जनमत के एक बड़े हिस्से को जो अभी भी सरकार की तरफ हर मुद्दे पर उम्मीद भरी नजर से देखता है में अपने खिलाफ बहस खड़ी करके दूसरे पाले में सरकने का बाध्य कर दे।

इस पूरे प्रकरण में सरकार की इस रणनीति को साफ-साफ देखा जा सकता है। सरकार को बहुत पहले से मालूम था कि गांधी जी के सामानों की नीलामी होने वाली है, जिसका प्रचार पूरे जोर-शोर से इंटरनेट पर कई दिनों से चल रहा था। बावजूद इसके सरकार चुप्पी साधी रही और विजय माल्या जिनको आजकल देशभक्त बनने का दौरा चढ़ा हुआ है जिसके तहत उन्होंने कुछ सालों पहले ही इंग्लैंड की किसी संस्था से टीपू सुल्तान की तलवार भी खरीदी है को पूरा मौका दे दिया। नहीं तो क्या जो सरकार जनता की घोर नाराजगी के बावजूद अमेरिका से नैतिक-अनैतिक सम्बंध बनाने पर तुली हो उसके लिए इस नीलामी को अपने राष्ट्रहित में रूकवाना या अपने उच्चायोग के माध्यम से उसमें शामिल होना कोई मुश्किल काम था। दरअसल सरकार शुरु से ही इस खेल में माल्या को वाकओवर देने की रणनीति बना चुकी थी। जिसकी तस्दीक निलामी करने वाली एंटीएक्वेरियम आॅक्शन कम्पनी द्वारा औपचारिक तौर पर जारी बयान है कि भारत सरकार ने इन वस्तुओं की नीलामी रोकने का कोई अनुरोध नहीं किया था जिस आशय का ईमेल पत्र तुषार गांधी के पास सुरक्षित है। बावजूद इसके सरकार ने संस्कृति मंत्री से यह कहलवाकर अपनी और किरकिरी करवाई कि विजय माल्या उसी के कहने पर नीलामी में शामिल हुए हैं। जिससे विजय माल्या ने साफ इनकार करते हुए इस नूरा कुश्ती में सरकार को चित कर दिया। इस पूरे खेल में सबसे गौर करने वाली बात यह रही कि पक्ष-विपक्ष किसी भी राजनीतिक दल की तरफ से चुनावी मौसम होने के बावजूद सरकार के रवैये पर उंगली नहीं उठाई गई। ये करिशमा इसलिए संभव हुआ कि सभी पार्टियां इस नए तरह के सामाजिक-राजनीतिक चेतना को तैयार करने और उसके लिए राष्ट्रभक्ति का प्रतीक गढ़ने पर एकमत हैं। जिसके तहत उन सब ने मिलजुल कर विजय माल्या समेत उन जैसे कई प्रतीकों को बहुत पहले ही संविधान में संशोधन कर पिछले दरवाजे से संसद में बुला लिया है। इस पूरी प्रक्रिया से जो चेतना निर्मित होती है वो घोर अराजनीति और हर मसले के हल के लिए काॅरपोरेट की तरफ निहारने वाली होती है। जिसमें पूरे राजनीतिक व्यवस्था को नकारने की प्रवृत्ति कभी भी वीभत्स रूप अख्तियार कर सकती है। जैसा कि हम मुम्बई के ताज होटल पर हुए आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में देख चुके हैं। जब मध्यवर्ग के एक प्रभावशाली तबके ने अपनी असुरक्षाबोध का ठीकरा सरकार पर फोड़ने के बजाय पूरे राजनैतिक ढांचे पर ही प्रश्नचिन्ह् लगाते हुए चुनाव में वोट न डालने की धमकी दे डाली।

विजय माल्या के राष्ट्र उद्धारक बनने की परिघटना इस प्रवृत्ति को और मजबूत करेगी। जिसकी परिणति जैसा कि कई देशों में हुआ है, एक ऐसे राज्य के स्वरूप में होगी जहां यह समझ पाना मुश्किल होगा कि उसे कोई सरकार चली रही है या काॅरपोरेट। दरअसल सरकार और काॅरपोरेट यही चाहते भी हैं।

गायब हो रहे हैं तेंदुए

विजय प्रताप

देश में तेजी से गायब हो रहे बाघों के प्रति सरकार से लेकर सभी संस्थओं की चिंता जगजाहिर है.. प्रधानमंत्री की अधक्ष्ता में गठित आयोग भी इस पर लोक नहीं लगा सका है. हाल में एक निजी संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में इस साल १७ से अधिक बाघों के मारे जाने की बात कही है. दूसरी तरफ जंगलों से गायब हो रहे तेंदुओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. इसके चलते आज जंगलों से तेदुओं का भी आस्तित्व खतरे में पड़ गया है.राजस्थान की मध्यप्रदेश से लगी सीमा के जंगलों से तेंदुए तेजी से गायब हो रहे हैं। राज्य के वन्यजीव गणना की रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र के दरा व जवाहर सागर अभयारण्य से पिछले बारह सालों में 53 तेंदुए गायब हुए हैं। 2007 की वन्यजीव गणना के हिसाब से दोनों अभयारण्यों में अब केवल 9 तेंदुए शेष रह गए हैं। स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) की एक टीम ने जयपुर के सांगानेर हवाई अड्डे के पास से 6 शिकारियों को गिरफ्तार कर अन्तरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया। टीम ने उनके पास से तेंदुए की खाल भी बरामद की है। शिकारी इस खाल को दिल्ली के किसी व्यापारी को साढे़ बारह लाख में बेचने वाले थे। गिरफ्तार अभियुक्तों ने राजस्थान-मध्यप्रदेश की सीमा से लगे जंगलों में वन्यजीवों के शिकार की बात स्वीकार की है। उनके पास से बरामद तेंदुए की खाल पर गोली के निशान हैं। शिकारियों ने बताया कि इस तेंदुए को उन्होंने बारां के जंगलों में टोपीदार बंदूक से मारा था। पुलिस उनसे और पूछताछ में जुटी। माना जा रहा है कि उनके माध्यम से हाड़ोती क्षेत्र से गायब हो रहे तेंदुओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं। कोटा जिले में स्थित दरा व जवाहर सागर अभयारण्य एक दशक पहले तक तेंदुओं की दहाड़ से गुलजार रहते थे। 1996 में दरा अभायरण्य में 39 व जवाहर सागर अभयारण्य में 24 तेंदुए थे। लेकिन इसके बाद इनकी संख्या में जो गिरावट आनी शुरू हुई वह अभी भी जारी है। सालाना वन्यजीव गणना की रिपोर्ट के मुताबिक 2002 में तेंदुओं की संख्या दरा अभयारण्य में 16 व जवाहर सागर में 14 थी। इसके बाद 2004 में क्रमशः 6- 6 व 2007 में 7-2 रह गई। वन्यजीव विषेशज्ञों की माने तो तेंदुओं के गायब होने के पीछे इन जंगलों में सक्रिय शिकारी गिरोह है। हांलाकि वन विभाग के अधिकारी इस बात से हमेशा इंकार करते रहे हैं। सेवानिवृत्त वन संरक्षक वी के सालवान का कहना है कि पिछले कुछ समय से दरा व जवाहर सागर अभयारण्य में मानवीय हस्तक्षेप तेजी से बढ़े हैं। जंगलों में अवैध खनन के लिए किए जाने वाले विस्फोट व पेड़ों की अवैध कटाई ने वन्यजीवों की स्वाभाविक जिंदगी में खलल पैदा किया है। शिकारियों का भी प्रभाव पिछले कुछ सालों से बढ़ रहा है। इन सब के लिए जिम्मेदार यहां के वन अधिकारी हैं। उनका मानना है कि वन विभाग वनों के विकास की अपेक्षा उनकी सुरक्षा पर काफी कम खर्च कर है। जिसके चलते जंगलों की सुरक्षा भगवान भरोसे रह गई। पहले छोटे मोटे जानवरों का शिकार करने वाले शिकारी अब लुप्तप्राय जानवरों के पीछे पड़ गए हैं। हांलाकि वन विभाग के अधिकारी जंगलों में शिकार से हमेशा इंकार करते रहे हैं। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक आर के मेहरोत्रा के अनुसार वन्यजीवों की घटती संख्या का कारण वनक्षेत्रों में बेतहाशा चराई है, जिससे वन्यजीवों को चारे की कमी हो जाती है और उनका प्राकृतिक चक्र बिगड़ रहा है। दरा व जवाहर सागर अभयारण्य में शिकार के संबंध में कोटा के उपवन संरक्षक (वन्यजीव) अनिल कपूर का कहना है कि हम जांच करा रहे हैं। बिना जांच के शिकारियों के मौजूदगी की पुष्टी नहीं की जा सकती।

राजस्थान के "उस्ताद" गणेश लाल व्यास

उस्ताद गणेश लाल व्यास राजस्थान के उस जनकवि का नाम है जिसने गुलाम भारत से लेकर 'आजाद' भारत तक में किसानो-मजदूरों और मेहनतकशों की आज़ादी की आवाज़ को बुलंद किया. उन्होंने अपनी कविताओं को हथियार बनाया और राजस्थान की सामंती रियासती परंपरा के खिलाफ संघर्ष छेड़ा. उस्ताद ने जिस भारत का सपना देखा वही सपना शहीद भगत सिंह और १९६९-७० के दशक में नक्सलबाड़ी के लोगों ने देखा था. गैरबराबरी, सामंती जुल्मों सितम का वह दौर जिसके खिलाफ उस्ताद ने संघर्ष किया वह अभी खत्म नहीं हुआ है. ऐसे में उस्ताद गणेश लाल व्यास और उनकी कविताएँ आज़ादी का ख्वाब देखने वालों के लिए चिराग सी हैं.
जनकवि गणेश लाल व्यास 'उस्ताद' की जन्मशताब्दी के अवसर पर विकल्प जनसंस्कृतिक मंच और साहित्य अकादमी की ओर से कोटा में २८-२९ मार्च को आखर कीरत: उस्तादां री आण कार्यक्रम आयोजीत हुआ। इसमें रंगकर्मी साहित्यकार और चित्रकार रवि कुमार ने उस्ताद की कविताओं पर कुछ सुन्दर पोस्टर बनाये।

उस्ताद की एक कविता

सुख समता री रीत कठे है
आज़ादी री जीत कठे है
तन रौ जल आंसू बण बेहग्यौ
हलक सुख्ग्यौ गीत कठे है
आज़ादी री जीत कठे है।








कविता पोस्टर साभार: रवि कुमार रावतभाटा

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बहाने बाटने की राजनीति

भले ही भाजपा नेता वरुण गांधी की अल्पसंख्यक विरोधी भाषण पर चुनाव आयोग ने थोड़ी बहुत खानापूर्ति कर ली हो लेकिन सांसद योगी आदित्यनाथ के घोर सांप्रदायिक विद्वेश फैलाने वाले भाषणों की सीडी जेयूसीएस के मानिटरिंग सेल द्वारा 20 मार्च 09 को निर्वाचन आयोग को भेजे जाने के बाद और चैनलों पर उसके दिखाए जाने के वावजूद भी निर्वाचन आयोग खानापूर्ती तो दूर इस पर जबान खोलने को तैयार नहीं है। जिसके चलते पूर्वांचल के दर्जनो जिलों में योगी का सांप्रदायिक फासिस्ट प्रयोग जिसका वैचारिक बिन्दु मुस्लिम नरसंहार और भारत को घोषित हिन्दू राष्ट् बनाना है बदस्तूर जारी है।
पूर्वांचल में रहना है तो योगी योगी कहना है, जो योगी जी नहीं कहेगा वो पूर्वांचल में नहीं रहेगा, यूपी अब गुजरात बनेगा-पूर्वांचल शुरुआत करेगा, जब कटुए काटे जाएंगे तब राम-राम चिल्लाएंगे, हर-हर महादेव गोधरा बना देव, देखो-देखो कौन आया हिंदू राष्ट् का शेर आया जैसे नारों के साथ जो धमकी अधिक लगते हैं का प्रयोग धड़ल्ले से चल रहा है जिसे सरकारी मशीनरी यहां तक कि चुनाव आयोग भी नजरअंदाज करता है। पिछले दिनों आजमगढ़ उपचुनाव में बसपा से भाजपा में आए बाहुबली रमाकांत यादव के प्रचार में योगी ने जिस लहजे में जहर उगला वो कहीं से भी किसी सांसद तो छोड़िए जिम्मेदार नागरिक की भी भाषा नहीं हो सकती थी। जिस अखबारों ने भी टिप्पड़ी की लेकिन चुनाव आयोग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जेयूसीएस के शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने इस पर बयान देकर मांग की थी कि चुनाव आयोग रमाकांत यादव की उम्मीदवारी निरस्त करे लेकिन आयोग के रवैये के चलते ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसकी परिणति आगे चलकर अगस्त 2008 में योगी के लोगों के द्वारा प्रायोजित दंगे में हुयी। जेयूसीएस के इन नेताओं द्वारा पिछले तीन सालों से योगी की गतिविधियों की वीडियो रिकार्डिंग जिसमें उनके चुनावी भाषण भी हैं में योगी का सांप्रदायिक और फासिस्ट चेहरा साफ दिखता है। मसलन, आजमगढ़ उपचुनाव के प्रचार अभियान के अंतिम दिन 10 अप्रैल 08 को नगर पालिका चैराहा आजमगढ़ पर हुयी सभा में योगी ने कहा कि अभी हाल ही में हाईकोर्ट ने एक फैसले में चिंता जाहिर की है कि यूपी में सर्वाधिक हिन्दू लड़कियां मुसलमानों के साथ जा रही हैं। इस कल्पित हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए योगी आगे कहते हैं कि हमने गोरखपुर में एक नयी परंपरा शुरु की है जहां मुस्लिम लड़कियों को हिंदू रख रहे हैं। इस तरह हम नस्ल शुद्धि कर रहे हैं जिससे हम एक नयी जाति निर्माण करेंगे। योगी आगे कहते हैं यह परंपरा आजमगढ़ में भी शुरु होगी अगर कोई एक हिंदू लड़की मुस्लिम के यहां जाती है तो हम उसके बदले सौ मुस्लिम लड़कियों को ले आएंगे। योगी यहां उपस्थित जनता को उकसा कर उनसे अपनी बात पर हामी भी भरवाते हुए कहतें हैं कि अगर वे एक हिंदू को मारेंगें,तो इसके जवाब में जनता उनके साथ दोहराती है कि वो सौ को मारेंगे। इसी भाषण में योगी बाहुबली प्रत्याशी रमाकांत यादव को हनुमान बताते हुए कहते हैं कि देश सिर्फ माला जपने से नहीं चलता इसके लिए भाला चलाने वालों की भी जरुरत है। और भाला वही चलाएगा जिसकी भुजाओं में दम होगा, शिखंडी और नपुसंक लोगों के बूते ये लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। इस बात के बाद मुसलमानों को केंद्रित करते हुए योगी कहते हैं कि इन अरब के बकरों को काटने के लिए तैयार हो जाइए। जो काम अब तक छुप कर होता था वो अब खुलेआम होगा। इसी सभा में योगी कहते हैं कि आजमगढ़ का नाम किसी मुस्लिम के नाम पर होना शर्मनाक है, इसका नाम हमें आर्यमगढ़ करना है। योगी अपनी धार्मिक छवि की आड़ में अपने फासिस्ट एजेण्डे को शस्त्र और शास्त्र का मिश्रण बताकर इसे हिंदुओ की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति बताते हैं।
गौरतलब है कि आजमगढ़ को आतंकगढ़ कई सालों से योगी कहते आ रहे हैं जिसे बाद में मीडिया भी धड़ल्ले से इस्तेमाल करने लगी। यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि गोरखपुर ,महराजगंज, पडरौना, देवरिया में जहां लंबे समय से चल रहे फासिस्ट प्रयोंगो के तहत कई मुहल्लों के नाम जिसमें उर्दू टच दिखता है को बदल दिया गया है। मसलन, उर्दू बाजार को हिंदी बाजार, अली नगर को आर्य नगर, शेखपुर को शेषपुर, मियां बाजार को माया बाजार, अफगान हाता को पाण्डे हाता, काजी चैक को तिलक चैक समेत दर्जनों नाम हैं।
जेयूसीएस की माॅनीटरिंग टीम जो मानवाधिकार से जुड़े विभिन्न पहलुओं, सांप्रदायिकता और आतंकवाद की राजनीति पर लम्बे समय से मानिटरिंग कर रही है ने पाया कि योगी आदित्यनाथ के जमीनी प्रयोग एक ऐसी नस्ल तैयार करने में लगे हैं जो विशुद्ध फासिस्ट हो, जिसका इतिहासबोध हद दर्जे तक मुस्लिम विरोधी मिथकों पर टिका हो और जो किसी भी तरह के गैर हिंदू प्रतीकों को बर्दास्त न करता हो। जिसको हम उनके प्रयोग स्थलों पर साफ देख सकते हैं। जैसे महराजगंज के भेड़िया बकरुआ गांव में योगी के स्टाॅर्मट्ूपर्स हिंदू युवा वाहिनी के लोगों ने कब्रस्तानों को ट्ैक्टर्स से जुतवा दिया। 2007 में पडरौना में मुस्लिम दुकानदारों की दुकानों को जला कर उनकी जगह प्रशासन के सहयोग से रातों रात हिंदू दुकानदारों को बसा दिया। जिसे शासन प्रशासन दंगो की फेहरिस्त में भी नहीं मानता लेकिन इस पूर्व नियोजित इस दंगे की संभावना महीने भर पहले ही कोतवाली में स्वयं पुलिस द्वारा दर्ज है।
बहरहाल उसी दिन यानी 10 अप्रैल 08 को ही एक अन्य सभा में बिलरियागंज आजमगढ़ में योगी ने कहा कि जो लोग हमारे हिंदुत्व के संकल्प से सहमत नहीं हैं उन्हें शाम तक आजमगढ़ छोड़ देने की तैयारी कर लेनी चाहिए। इस सभा में योगी की उपस्थिती से उत्साहित भाजपा नेताओं ने जहां मुस्लिमों को देश के खाद्यान संकट के लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा कि मुसलमान सूअर के पिल्ले की तरह बच्चे पैदा करके उन्हें आतंकवादी बनने के लिए छोड़ देते हैं। वहीं योगी ने मस्जिदों की मीनारों को बाबरी ढ़ाचे की तरह तोड़ने का आह्वान किया।
योगी अपने भाषणों में किसी दूर-दराज इलाके के हिंदुओं के उत्पीड़न की मनगढ़ंत कहानियां सुनाकर स्थानीय स्तर पर मुसलमानों से बदला लेने के लिए हिंदू भीड़ को उकसाते हैं। मसलन इसी सभा में वे कहते हैं कि मेरठ में हिंदुओं के साथ मुसलमान आतंकी व्यवहार करते हैं जिसके चलते हिंदू लड़कियों की पढ़ाई -लिखाई छूट गई है। अधिकतर हिंदू परिवारों ने अपनी बेटियों को रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है क्योंकि मुसलमान उनको उठा ले जाते हैं और उनके साथ सामूहिक दुराचार करते हैं और उन पर तेजाब डाल देते हैं। इन सभी सभाओं में चुनाव आयोग से लेकर स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारी मौजूद रहे लेकिन किसी को भी योगी की बातें ऐसी नहीं लगी जिसके खिलाफ कार्यवाई होनी चाहिए।
मानीटरिंग करने वाले राजीव यादव और शाहनवाज आलम का कहना है कि सिर्फ चुनाव आचार संहिता के लागू रहने के समय ही किसी के भाषणों की सरकारी स्कैनिंग दर्शाती है कि ऐसा सिर्फ चुनावी फायदे नुकसान की दृष्टि से किया जाता है। वे आगे कहते हैं कि ऐसा करके आप किसी भी सांप्रदायिक नेता कोखुली वैधता दे देते हैं कि वो गैर चुनावी समय में अपने सांप्रदायिक भाषणों से माहौल बिगाड़ता रहे। वे आगे कहते हैं कि उनके पास फरवरी 2008 में बस्ती के भारत भारी गांव में आयोजित हिंदू चेतना रैली की वीडियो रिकार्डिंग है जिसमें योगी के लोगों ने खुलेआम कहा कि भारत को हिंदू राष्ट् बनाने के लिए मुसलमानों का वोट देने का अधिकार छीन कर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाएगा। उनकी मस्जिदों की मीनारों पर भगवा झण्डे लगाकर शंखनाद किया जाएगा और उसमें सूअर पालन किया जाएगा। एक वक्ता ने तो यहां तक कहा कि कब्रस्तानों से मुस्लिम महिलाओं के कंकाल निकाल कर उनसे बलात्कार किया जाएगा। लेकिन चुनाव आचार संहिता से बाहर होने के कारण वो किसी के लिए सवाल नहीं है।
गौरतलब है कि योगी जिस पीठ के उत्तराधिकारी हैं वहां लंबे समय से उग्र हिंदुत्व खास कर सावरकर लाइन की पकड़ है। जहां माले गांव विस्फोटों में लिप्त अभिनव भारत की नेता और सावरकर की बहू और गांधी जी के हत्यारे गोडसे बेटी हिमानी सावरकर का आना-जाना रहता है। दरअसल योगी का हिंदुत्व वादी एजेण्डा सावरकर और गोडसे की हिंदू महासभा की ही ब्लूप्रिंट है। जिसकी तस्दीक इस तथ्य से भी होता है कि गांधी जी की हत्या में प्रयुक्त रिवाल्वर इसी गोरक्षपीठ की थी जिसमें तत्कालीन महंत दिग्विजय नाथ जो हिंदू महासभा के नेता थे और गांधी जी की हत्या के षड़यंत्र में जेल में भी थे। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि योगी की कार्यशैली और उसके उद्देश्य पूरी तरह से मालेगांव अभियुक्तों के खिलाफ आयी चार्जशीट से मेल खाती है। जैसे पुरोहित, प्रज्ञा इत्यादि गंगा के मैदानी भाग में सशस्त्र हिंदू विद्रोह करना चाहते थे तो ठीक उसी तरह योगी भी इसी भू-भाग में जिसे वे पुण्यांचल कहते हैं में सशत्र हिंदू प्रतिरोध की बात खुलेआम करते हैं। वैसे योगी के लोग लंबे समय से आतंकी गतिविधियों में लिप्त पकड़े गए हैं। अभी पिछले साल ही पूर्व भाजपा सांसद और कथित संत राम विलास वेदांती जो एक टीवी चैनल के स्टिंग आपरेशन में काले धन को सफेद करने में पकड़े जा चुके हैं, को सिमी की तरफ से धमकी मिली थी। जिसके खिलाफ हिंदू युवा वाहिनी समेत पूरे भगवा कुनबे ने धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया था। लेकिन जब पुलिस ने छान-बीन की तो इस पूरे प्रकरण के मास्टर माइंड स्थानीय हिंदू युवा वाहिनी के नेता ही निकले जो स्वयं धरने प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे थे। जिस खुलासे के बाद वेदांती ने एफआइआर वापस ले ली। ठीक इसी तरह अगस्त 2008 के आजमगढ़ के प्रायोजित दंगे में जिसमें योगी के लोगों ने फायरिंग करके एक मुस्लिम नौजवान की हत्या कर दी और जिसे योगी ने अपने उपर हमला बताया था में भी इंण्डियन मुजाहिदीन की तरफ से योगी पर हमला करने वालों को बधाई भरा मेल मिला। जो इस भगवा ब्रिगेड के इस कथित आतंकी संगठन से रिश्ते पर सवाल उठाता है। जबकि पूरा शहर जानता है कि यह दंगा योगी के लोगों ने ही किया था। वहीं अभी पिछले साल पुलिस द्वारा जारी पूर्वांचल के सबसे सांप्रदायिक और अपराधी लोगों में भी योगी आदित्यनाथ शीर्ष पर थे।

जेयूसीएस मांग करती है कि-

1-सांसद योगी आदित्यनाथ की संसद सदस्यता रद् करते हुए उनका नामांकन रद् किया जाय और भविष्य में भी बाल ठाकरे की तरह चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाय।
2-योगी आदित्यनाथ पर सांप्रदायिक विद्वेश फैलाने का मुकदमा दर्ज किया जाय।
3-मउ, गोरखपुर, आजमगढ़,पडरौना,श्रावस्ती समेत पूरे पूर्वाचल के दंगों में लिप्त योगी और उनके संगठन हिंदू युवा वाहिनी पर तत्काल प्रतिबंध लगाते हुए संलिप्तता की उच्चस्तरीय जांच की जाय।
4-योगी के विवादित भाषणों के समय मौजूद रहे जिले के अधिकारियों और निर्वाचन अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जाय।
जर्नलिस्ट्स यूनियन फाॅर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) द्वारा जारी
चितरंजन सिंह (पीयूसीएल) ,अनिल चमाड़िया (स्वतंत्र पत्रकार), सुभाष गताडे (स्वतंत्र पत्रकार), शाहनवाज आलम,राजीव यादव, विजय प्रताप, ऋषि सिंह, अतुल चैरसिया उपमंत्री अयोध्या प्रेस क्लब, मोहम्मद शोएब (एडवोकेट), असद हयात (एडवोकेट), फरमान नकवी (एडवोकेट), के के राय (एडवोकेट), जमील अहमद आजमी (उपाध्यक्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद), विनोद यादव, बलवंत यादव, महंत जुगल किशोर शास्त्री, प्रबुद्ध गौतम, लक्ष्मण प्रसाद, अलका सिंह, ए बी सालोमन, तारिक शफीक, मसीहुद्दीन, अरविंद सिंह, प्रदीप सिंह, अखिलेश सिंह,अरूण उरांव, पंकज उपाध्याय, विवेक मिश्रा, शशिकांत सिंह परिहार, विनय जयसवाल, राजकुमार पासवान, अरविंद शुक्ला, शरद जयसवाल,शालिनी बाजपेयी, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अविनाश राय, पीयूष तिवारी, अर्चना मेहतो, प्रिया मिश्रा, राहुल पांडे, वगीश पांडे, ओम प्रताप सिंह, अरूण वर्मा,शैलेष पाण्डे।
संपर्क सूत्र- 09415254919,09452800752,09982664458,09911848941

चुनाव आयोग में नहीं लिया संज्ञान, मीडिया में बनाया मुद्दा

गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी योगी आदित्य नाथ के सांप्रदायिक भाषणों की सीडी के सम्बन्ध में जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी के पत्र का चुनाव आयोग में ४ दिन बीत जाने के बाद भी संज्ञान नहीं लिया। हांलाकि एनडीटीवी इंडिया ने इस मसले पर २५ मार्च को अपने समाचारों में प्रमुखता से उठाया है। इसमे योगी की उम्मीदवारी निरस्त करने व उनके खिलाफ सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिश पर एडवोकेट असद हयात से बातचीत प्रसारित की गई। चुनाव आयोग को भेजी गई सीडी में योगी के सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाले भाषण के आधार पर उनके खिलाफ ऍफ़ आई आर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की मांग की गयी है. जेयूसीएस इस सीडी के आधार पर भाजपा से अपनी स्थिति साफ़ करने को कहा है. जेयूसीएस ने फिर एक बार चुनाव आयोग से पत्र व सीडी के आधार पर योगी आदित्य नाथ के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है.
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सेवा में,

श्रीमान मुख्य चुनाव आयुक्त,

भारत निर्वाचन आयोग,

अशोक रोड, नई दिल्ली।

विषयः

दिनांक 10 अप्रैल, 08 को आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भाजपा सांसद श्री आदित्य नाथ योगी एवं भाजपा प्रत्याशी श्री रमाकांत यादव व अन्य वक्ताओं द्वारा चुनाव आचार संहिता एवं सेक्शन 125 रिप्रजेन्टेशन आफ पिपुल एक्ट 1951 के उल्लंघन के सम्बन्ध में।

महोदय,

उपरोक्त विषय में आपसे निम्न निवेदन करना हैः-

1- यह कि प्रार्थीगण नम्बर 1 व 2 जर्नलिस्ट्स यूनियन फार सिविल सोसाइटी नामक संगठन के राष्ट्ीय कार्यकारिणी सदस्य है तथा प्रार्थी नं0 4 आवामी कोंसिल फार डेमोक्रेसी एंड पीस संगठन का जनरल सेक्रेट्ी है। यह दोनों संगठन, भारतीय नागरिक समाज में लोकतांत्रिक, सामाजिक न्याय व धर्म निरपेक्षता के सिद्धांतों की रक्षा के साथ-साथ अशिक्षित, कमजोर, पिछड़े, दलित व अक्षम वर्गों के नागरिकों के हितों के लिए कार्य करते हैं।

2- यह कि गोरखपुर सांसद आदित्य नाथ योगी हिन्दू युवा वाहिनी नामक संगठन के मुखिया हैं। सांसद श्री योगी एवं उनके संगठन का उद्देश्य भारतीय नागरिक समाज में हिन्दू राष्ट्वाद की आड़ में सांम्प्रादायिकता का जहर पैदा करना तथा समाज का साम्प्रादयिकता सद्भाव बिगाड़ना रहा है, जिससे इनके राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति होती है। ऐसा करके वे हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण अपने व भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में करते रहे हैं एवं मुस्लिम मतदताओं के मन में अपना भय बिठाते रहे हैं।

3- यह कि दिनांक 10 अप्रैल, 08 को आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के लिए हो रहे उपचुनाव में चुनाव प्रचार का अंतिम दिन था, इस चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भाजपा प्रत्याशी श्री रमाकांत यादव के पक्ष में श्री आदित्यनाथ योगी ने ताबड़तोड़ चुनावी जनसभाएं कर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को दूषित साम्प्रदायिकता का रूप देकर उन्हें अंदर तक झकझोरा और मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा करने वाले तथा हिन्दू मुस्लिमों के बीच वैमनस्यता पैदा करने वाले, भाईचारे व साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले शब्दों का प्रयोग कर अपना भाषण दिया। इन भाषणों के दौरान मंच पर श्री रमाकांत यादव व अन्य व्यक्ति उपस्थित रहे। सभाओं में रमाकांत यादव व अन्य वक्ताओं ने भी इसी प्रकार के भाषण दिए।

4- यह कि श्री आदित्यनाथ योगी, श्री रमाकांत यादव एवं उनके सहयोगी अन्य वक्ताओं ने उक्त 10 अप्रैल 2008 को दिन के समय जनपद आजमगढ़ के सिकरौर, बिलरियागंज, कप्तानगंज, अतरौलिया तथा सिविल लाइन शहर आजमगढ़ में अपनी जनसभाएं आयोजित की और उक्त भाषण दिए। इन चुनावी सभाओं में प्रत्येक में कम से कम 5-5 हजार की संख्या में जन समुदाय उपस्थित था।

5- यह कि प्रार्थीगण ने इन सभाओं में श्री आदित्यनाथ योगी एवं अन्य वक्ताओं द्वारा दिए गए भाषणों की वीडियों रिकार्डिंग की जो कि जैसी रिकार्ड हुई उसी रूप में आपकों इस ज्ञापन के साथ ई-मेल की जा रही है। इसकी मूल प्रति प्रार्थीगण के पास है जिसे सुनवाई के समय आपके समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

6- यह कि इन चुनावी सभाओं में जिनकी रिकार्डिंग प्रार्थीगण ने की और जिनकी प्रति आपको प्रस्तुत की जा रही है, योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हिन्दुओं के शस्त्र व शास्त्र दोनों मिलाकर राष्ट् की व्यवस्था को चलाना है। इसलिए नारा लगाने के साथ-साथ भाला चलाना भी आना चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने अजीत राय हत्याकांड, सुन्नर यादव हत्याकांड व गोकशी के कथित मामलों को संदर्भ लेते हुए अपने भाषण में कहा कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हिन्दू मौन रहे इसलिए अब अगर एक हिन्दू की हत्या होगी तो हम सौ मुसलमानों की हत्या करेंगे और ब्याज सहित इसकी अदायगी की जाएगी। लेकिन इसको वही कर पाएगा जिसकी भुजाओं में ताकत होगी और शिखंडी व हिजड़े नहीं लड़ सकते। जिसमें लड़ने का जज्बा हो वही लड़ पाएगा और हमें एक लड़ने वाला रमाकांत यादव मिल गया है। योगी आदित्यनाथ ने मुसलमानों को कत्ल करने की अपनी दूषित विचारधारा के अनुसार बोलते हुए कहा कि अरबी बकरों ;मुसलमानोंद्ध को काटने ;हाथ से काटने का इशारा करते हुएद्ध की तैयारी भी करनी चाहिए। आदित्यनाथ योगी ने हिन्दू लड़कियों को मुसलमानों युवकों से प्रेम प्रसंगों का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें उच्च न्यायालय के एक आदेश की चिंता हो रही है जिसमें न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि हिन्दू लड़कियां क्यों मुसलमान लड़कों के साथ भाग जाती हैं। योगी आदित्यनाथ ने इस संदर्भ में अपने भाषण में कहा कि अगर एक हिन्दू लड़की किसी मुसलमान के साथ भागे तो सौ मुसलमान लड़कियों को हिन्दू लड़कों को भगाना चाहिए यानि कि अनुचित शारीरिक सम्बंध बनाने चाहिए। उन्होंने कहा जो मुसलमान धर्म परिवर्तन कर हिन्दू बनेगा उसको हम स्वीकार करेंगे और एक नई जाति बना देंगे। योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण की शुरूआत में कहा कि जब होंगे बजरंगबली तो नहीं आ सकता कोई अली वली। उनके भाषण के समय उन्होंने जनता से हर हर महादेव, गऊ माता की जय, राम जन्म भूमि की जय, कृष्ण जन्म भूमि की जय, कांशी विश्वनाथ की जय, शंखनाद जैसे नारे के उद्घोष कराए और हिन्दू धर्म विधान के अनुसार उपस्थित जन समुदाय को संकल्प दिलाया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आजमगढ़ की पहचान किसी गजनवी, गौरी, बाबर या किसी आजम से हो यह उचित नहीं है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आजमगढ़ का आर्यमगण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम ऐसे उम्मीदवार का समर्थन करते हूए जो हिन्दू राष्ट्रवाद का समर्थक हो। जिसका अर्थ है कि उन्होंने भारतीय संविधान मेें अनी अनास्था व्यक्त की, कयोंकि भारतीय संविधान किसी हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा का स्वीकृति नहीं देता और धर्म निरपेक्षता पर आधारित है लेकिन श्री आदित्य नाथ ने अपने भाषण में कहा कि हम ऐसे उम्मीदवार ;रमाकांत यादवद्ध का समर्थन करते हे जो हिन्दू राष्ट्रवाद का समर्थक है। उन्होंने कहा कि आज हिन्दू समाज प्रताड़ित हो रहा हे तथा उसके समक्ष पहाचान का संकट हैं उन्होंने कहा कि आम मुसलमाान किसी मुख्तार अंसारी, किसी खान या पठान का समर्थन करता है तो हम क्यों नहीं हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक रमाकांत यादव का समर्थन कर सकते।

7- यह कि अपने भाषणों में श्री योगी आदित्य नाथ ने मुसलमानों को दो पहिया जानवर कहा उन्होंने कि पैदावार धान, गन्ने की बढ़े ते अच्छी बाात होती है लेकिन मुसलमानों की बढ़ती पैदावर को बन्द करने के लिए आगे आना पड़ेगा । इसी से प्रेरित होकर एक वकता द्वारा (योगी आदित्य नाथ वाश्री रमाकांत यादव की उपस्थिति में) आपने भाषण मेें कहा कि देष के खाद्यान्य समास्या की वजह मुसलमान हैं क्योंकि मुसलमानों की आबादी आठ गुना बढ़ गयी है और मुसलमान सुअर के पिल्लों की तरह बच्चे पैदा करता है और सड़कों पर छोड़ देता है। इन सभाओं में जो नारे लगे उनमें यूपी भी गुजरात बनेगा, आजमगढ़ शुरूआत करेगा, जैसे नारे प्रमुख हैं। जिसका अर्थ है कि वे हिन्दू जनता को मुसलमानों के विरूद्ध नफरत पैदा करके उन्हें भड़का रहे थे तथा मुसलमानों में डर बैठा रहे थे। उक्त भाषणों का प्रभाव जनमानस पर यही हुआ।

8- यह कि उक्त जनसभाओं में जो अन्य भाषण दिए गए हैं वे संलग्न सीडी में देखे व सुने जा सकते हैं। यह समस्त भाषण, विचार जो चुनाव जन सभा के दौरान व्यक्त किए गए हैं वे धारा 125 रिप्रजेन्टेशन आफ पीपुल एक्ट का सीधा उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त धारा 153-ए, 171-ए, 171-सी, 188, 505 आईपीसी एवं अन्य विधिक प्राविधानों का उल्लंघन है।

9- यह कि यह आश्चर्य का विषय है कि जिला चुनाव अधिकारी आजमगढ़ द्वारा कोई कार्यवाही उक्त विषैले भाषण देने के पाश्चात् आज तक श्री आदित्यनाथ योगी व श्री रमाकांत यादव एवं अन्य वक्ताओं के विरूद्ध नहीं की गई और न ही भारत चुनाव आयोग द्वारा आज तक इनके विरूद्ध कोई कार्यवाही हुई जिसका अर्थ है कि जिला प्रशासन आजमगढ़ एवं भारत चुनाव आयोग श्री आदित्यनाथ एवं सहयोगियों को कानून से ऊपर मानता है।

10- यह कि उक्त भाषणों की मूल टेप प्राथर््ीगण के पास है जिसे सुनवाई के समय प्रस्तुत किया जाएगा। जैसी टेप रिकार्ड है उसी रूप में ज्ञापन के साथ ई-मेल द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है।

11- यह कि वर्तमान लोकसभा चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ और भाजपा के अनेक उम्मीदवार का समर्थक इसी प्रकार की शब्दावली व भाषण विशेषकर बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी मण्डलों के जनपदों के अंतर्गत आने वाले लोकसभा क्षेत्रों में दे रहे हैं और वैमनस्यता पैदा कर रहे हैं जो भारतीय नागरिक समाज में सामाजिक सद्भाव के लिए घातक है। इन वक्ताओं में श्री आदित्यनाथ योगी, रमाकांत यादव (आजमगढ़ से भाजपा प्रत्याशी), वाई डी सिंह (बस्ती से भाजपा प्रत्याशी), श्री पंकज (महराजगंज से भाजपा प्रत्याशी), श्री विनय दूबे, (पडरौना से भाजपा प्रत्याशी), श्री सुनील सिंह एवं राघवेंद्र सिंह पदाधिकारीगण हिन्दू युवा वाहिनी इनके प्रमुख सहयोगी वक्ता हैं।
प्रार्थना

अतः इन परिस्थितियों में आपसे प्रार्थना है कि--

1- यह कि उपरोक्त विषय में श्री योगी आदित्य नाथ, श्री रमाकांत यादव उक्त के विरूद्ध अंतर्गत धारा 125 रिप्रजेन्टेशन आफ पीपुल एक्ट 1951 एवं अन्य विधिक प्राविधानों के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई जाए एवं मामले को दबाने वाले दोषी जिला अधिकारियों के विरूद्ध भी कार्यवाही की जाए।2- यह कि वर्तमान लोकसभा चुनाव के दौरान विशेषकर श्री आदित्यनाथ योगी, रमाकांत यादव, वाई डी सिंह, विनय दूबे, श्री पंकज एवं अन्य इनके सह वक्ताओं के भाषणों की रिकार्डिंग कराई जाए।

3- एवं अन्य कार्यवाही जनहित व न्यायहित में की जाए जिसका किया जाना आवश्यक है।

प्रार्थीगण

1- राजीव कुमार यादव पु़त्र श्री इंद्रदेव यादव निवासी ग्राम घिन्हापुर, पोस्ट गोपालपुर, थाना मेहनगर आजमगढ़

2- शाहनवाज आलम पुत्र मोहम्मद इलियास, निवासी बहेरी बलिया

3- राजकुमार पुत्र राम अचल, निवासी पचदेवरा, कछराना इलाहाबाद

4- मोहम्मद असद हयात एडवोकेट जनरल सेक्रेटरी आवामी कौंसिल फार डेमोक्रेसी एंड पीस,

द्वारा जनाव फरमान अहमद नकवी एडवोकेट समीप दरगाह दरियाबाद, इलाहाबाद

दिनांक 20-03-२००९

प्रतिलिपि- जानकारी एवं आवश्यक कार्यवाही के निवेदन के साथ प्रस्तुत है (संलग्न उक्त भाषण ई-मेल के साथ)

1- श्री मुख्य चुनाव अधिकारी, उत्तर प्रदेश, चैथी मंजिल, विकास भवन, जनपथ मार्केट लखनऊ।

जारीकर्ता- जर्नलिस्ट्स यूनियन फाॅर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) व आवामी कौंसिल फाॅर डेमोक्रेसी एंड पीसचितरंजन सिंह (पीयूसीएल) ,अनिल चमाड़िया (स्वतंत्र पत्रकार), सुभाष गताडे (स्वतंत्र पत्रकार), मोहम्मद शोएब (एडवोकेट), असद हयात (एडवोकेट), फरमान नकवी (एडवोकेट), के के राय (एडवोकेट), जमील अहमद आजमी (उपाध्यक्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद), विनोद यादव, बलवंत यादव, महंत जुगल किशोर शास्त्री, विजय प्रताप, प्रबुद्ध गौतम, लक्ष्मण प्रसाद, ऋषि सिंह, अलका सिंह, ए बी सालोमन, तारिक शफीक, मसीहुद्दीन, अरविंद सिंह, प्रदीप सिंह, अखिलेश सिंह, अतुल चैरासिया (उप मंत्री अयोध्या प्रेस क्लबद्ध), अरूण उरांव, पंकज उपाध्याय, विवेक मिश्रा, शशिकांत सिंह परिहार, विनय जयसवाल, राजकुमार, अरविंद शुक्ला, शरद जयसवाल, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अविनाश राय, पीयूष तिवारी, अर्चना मेहतो, प्रिया मिश्रा, राहुल पांडे, वगीश पांडे, ओम प्रताप सिंह, अरूण वर्मा।

बिना हथियार भाजपा तैयार

विजय प्रताप
राजस्थान लोकसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 25 सीटों में से 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के साथ ही पार्टी ने राज्य में चुनावी बिगुल फंूक दिया है। हांलाकि अभी तक कांग्रेस के क्षत्रप मैदान में नहीं उतरे हैं। कांग्रेस पिछले परिणामों से सबक लेते हुए कांग्रेस हर कदम फूंक-फंूक कर रखना चाहती है। उम्मीदवारों की घोशणा के साथ ही भाजपा का अंदरूनी कलह भी उभर कर सामने आने लगा है। टिकट बंटवारें में पार्टी के आम कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा कर बाहरी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाने के फैसले का कार्यकत्र्ता जगह-जगह विरोध कर रहे हैं। भाजपा ने जिन 12 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की हैं, उनमें आठ मौजूदा सांसद हैं, जबकि चार नए लोगों को मौका दिया गया है। 7 बार जयपुर के सांसद रहे गिरधारी लाल भार्गव को एक बार फिर से मैदान में थे। लेकिन टिकट घोषणा के दो दिन बाद ही भार्गव का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अब भाजपा यहां से नए उम्मीदवार की तलाश में जुट गई है। इसके अलावा जोधपुर से मौजूदा सांसद जसवंत विश्नोई, पाली से पुष्प जैन, चुरू से रामसिंह वास्वां, श्रीगंगानगर से निहालचंद मेघवाल व भीलवाड़ा से वी पी सिंह को टिकट दिया गया है। सूची में दो नेतापुत्रों को भी मौका दिया गया है। ये हैं झालावाड़ से सांसद व वसंुधरा राजे पुत्र दुश्यंत सिंह व बाड़मेर से पूर्व मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह को टिकट दिया गया है। जिन नए चेहरों को मौका मिला है उनमें धौलपुर-करौली सीट से डाॅ मनोज राजोरिया, व नागौर से पूर्व सांसद रामरघुनाथ चैधरी की पुत्री बिंदू चैधरी शामिल हैं। जिन चार लोगों के टिकट काटे गए हैं, उनमें बीकानेर के सांसद और फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र व कोटा से सांसद रघुवीर सिंह कौशल प्रमुख हैं। भाजपा बीकानेर में सांसद धर्मेंद्र के खिलाफ गुस्से को पहले से ही महसूस कर रही थी। फिल्मी में अपने अभिनय से लोगों को रिझाने वाले धर्मेंद्र वास्तविक जिंदगी में जनता के दुख-दर्द और अपनी जिम्मेदारियों को भूल मायानगरी से बाहर ही नहीं निकले। चुनाव के बाद बीकानेर के लोगों के लिए अपने सांसद का दर्शन कर पाना ईद के चांद माफिक हो गया था। संसद में भी उनकी मौजूदगी न के बराबर ही रही। फिल्मी में कुत्तों का खून चूसने वाले व चीखने चीघाड़ने वाले धर्मेंद ने संसद में एक बार भी मुंह नहीं खोला। इन सब को देखते हुए इस बार भाजपा ने यहां से नए उम्मीदवार अर्जुन राम मेघवाल को अपना उम्मीदवार घोशित किया है। मेघवाल वर्तमान में आईएएस अधिकारी हैं और बीकानेर में ही अतिरिक्त वाणिज्य कर अधिकारी के पद पर तैनात हैं।

उधर कोटा से भी भाजपा ने एक सरकारी अधिकारी को चुनाव लड़ाया है। यहां से भाजपा उम्मीदवार श्याम शर्मा वर्तमान में अधिषासी अभियंता के पद पर तैनात हैं। संघ की पृश्टभूमि के शर्मा अभी तक भाजपा की प्राथमिक सदस्यता भी नहीं ग्रहण किए हैं। टिकट बंटवारें में पार्टी कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा कर नौकरषाहों को चुनाव लड़ाना भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को सुहा नहीं रहा। कुछ नेता सीधे विरोध न कर पार्टी के फैसले को स्वीकार कर ले रहे हैं। लेकिन ज्यादातर कार्यकत्र्ता पार्टी के इस फैसले को मानने से इंकार कर चुके हैं। ऐसा ही विरोध कोटा में राश्ट्ीय स्वयं सेवक संघ की पाठशाला से निकले श्याम शर्मा को लेकर भी है। इस तरह की नाराजगी का बड़ा खामियाजा भाजपा को आगामी चुनावों में उठाना पड़ सकता है।

यह सारी कवायद भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के नेताओं ने संघ की नाराजगी को दूर करने के लिए की है। 12 में से 3 संघियों को टिकट देकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम माथुर संघ की नाराजगी दूर करना चाहते हैं। यह अलग बात है कि अब खुद उसके आम कार्यकत्र्ता इस रवैया से नाराज हो गए हैं। हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान टिकट बांटवारें में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अति आत्मविश्वास में संघ की सिफारिशों को खारिज कर अपने मर्जी से टिकट बांटे थे। जिसके बाद संघ खुल कर भाजपा के विरोध में आ गई। कुछ एक सीटों से संघ ने निर्दलीय प्रत्याशियों को भी समर्थन देने का फतवा जारी कर दिया। इन सब का खामियाजा भाजपा को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पड़ा। इस चुनावों में मुद्दों की बात करें तो भाजपा बिना हथियार के क्षत्रप की तरह है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद ऐसे मुद्दों की तलाश में जुटी है, जिसके बल पर लोकसभा चुनाव में हार का बदला लिया जा सके। लेकिन पांच साल के अपने कार्यकाल में वसुंधरा राजे ने आम जनता पर जो जुल्म ढाए हैं, वह उसे लोकसभा चुनाव में भी भारी पड़ने वाला है। वसुंधरा के कार्यकाल में समय-समय पर हुए नरसंहार लोगों के जेहन में भी हरे हैं। पानी मांग रहे किसानों व आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जरों के सीनों पर चली गोलियों के घाव अभी भरे नहीं हैं। इसलिए पूरे चुनाव में भाजपा को विपरित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। केन्द्रीय स्तर पर उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृश्ण आडवाणी का पुराना राम मंदिर राग भी लोगों को लुभाने के लिए काफी नहीं होगा।

उफ्-हमें पीटते क्यों हो !



शाहनवाज आलम
यूं तो मुख्यमंत्री मायावती को अपने राजनीतिक विरोधी फूटी आँख भी नहीं सुहाते और वे उनसे निपटने के लिए किसी भी हद जक गिर जाती हैं। लेकिन विधानसभा के सामने मायावती की लाॅ एण्ड आॅडर वाली पुलिस ने जिस तरह पिछले दिनों निरीह और निहथ्थी छात्राओं को बेरहमी से घसीट-घसीट कर लाठियाॅं भांजी उसे निरंकुश और घोर स्त्रीविरोधी ही कहा जाएगा। क्योंकि ये छात्राएं न तो विपक्ष के इशारे पर नाचने वाली कठपुतलियां थीं और ना ही वे उनकी सत्ता को चुनौती देने आयीं थीं। वे तो सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री जिसने अपने जन्मदिन पर छात्राओं की शिक्षा के लिए "महामाया आर्शीवाद योजना" और "सावित्री बाई फुले बालिका शिक्षा योजना" जैसी महत्वकंाक्षी परियोजनाएं घोषित की हैं, से सिर्फ यह मांग करने आयीं थी उनकी कापियां दुबारा जांची जांय जिसमें बड़़े पैमाने पर धांधली हुयी है।
दरअसल ये छात्राएं प्रदेश भर में सक्रिय शिक्षा माफिया और भ्रष्ट प्रशासन की नापाक गठजोड़ के शिकार हैं। इस गठजोड़ से उपजे अकादमिक अराजकता का आलम यह है कि लखनउ विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध आधा दर्जन निजी विधी महाविद्यालयों में पढने वाले सैकडों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। जहां प्रथम सेमेस्टर के परिणामों में बड़ी संख्या में विद्यार्थी फेल घोषित कर दिए गए हैं। एक्सेल लाॅ कालेज के 60 में से सिर्फ एक छात्र ही पास हो पाया है तो वहीं सिटी लाॅ कालेज के 170 छात्रों में से 5, डा0 भीमराव अम्बेडकर लाॅ कालेज के 60 में से 2 नर्मदेश्वर विधि महाविद्यालय के 60 में से 10, यूनिटी लाॅ कालेज के 160 में से 15 और लखनउ विश्वविद्यालय के 120 में से 60 छात्र ही पास हो पाएं हैं।
इन परिक्षा परिणामों को सिर्फ गैरजिम्मेदार और न पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों का खराब प्रदर्शन भर नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इतने विद्यार्थी एक साथ पढ़ने में इतने कमजोर नहीं हो सकते। पुलिस की बर्बर पिटाई की शिकार हुयीं अम्बेडकर विधि महाविद्यालय की अर्चना और अनामिका कहती हैं ‘जो छात्र प्रति सेमेस्टर साढ़े ग्यारह हजार रुपए हर छह महीने पर देता हो वो पढ़ाई के प्रति इतना लापरवाह कैसे हो सकता है कि पास भी न हो पाए।’ वहीं इस पूरे मुद्दे पर आन्दोलन कर रहे छात्र संगठन आइसा के नेता शरद जायसवाल कहते हैं कि दरअसल पूरा मामला अधिक से अधिक छात्रों को फेल करके उनसे दुबारा फीस वसूलने से जुडा़ है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से पूरे प्रदेश में निजी कालेजों की बाढ़ सी आ गयी है और उसमें भी विधि जैसे विषयों जिसमें डिग्री हाथ लगते ही रोजगार के दरवाजे खुल जाते हैं कि तो खास तौर पर उपज हुयी है। जिसके पास भी थोड़ा पैसा हो वो विधि काॅलज खोलना मुनाफे का सौदा समझता है। ऐसा इसलिए कि अव्वल तो इसके लिए रियायती दर पर जमीन और फंड मिल जाता है वहीं दूसरी ओर विधि काॅलेज प्रबन्धकों के नैतिक अनैतिक लुट खसोट पर उनके विधि माफिया हो जाने के चलते कोई उंगली उठाने की हिम्मत भी नहीं करता। लेकिन इस लूट की इन्तहां तो तब हो जाती है जब शिक्षा माफिया ऐसी डिग्रियां देने का वायदा कर छात्रों से धन उगाही करने लगते हैं जिनकी उनके पास मान्यता तक नहीं होती। मसलन, पांच वर्षीय विधि कोर्स।
सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की कमी और निजी क्षेत्र के महंगे होने के चलते मध्यम और निम्न मध्य वर्ग के हजारों युवा ऐसे शिक्षा माफिया के आसान शिकार बन जाते हैं जो उन्हें प्राफेशनल लाॅ डिग्री देने का लालच देकर मोटी ठगी करते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे दर्जनों पांच वर्षीय विधि कोर्स चल रहे हैं जहां पढ़ने वाले छात्र हमेशा सशंकित रहते हैं कि उन्हें काला कोट पहनने को मिलेगा भी या नहीं। काशी विद्यापीठ बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक के विधि संकाय के तीसरे और पांचवे सेमेस्टर तक के छात्र अपनी डिग्री को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं। इन निजी कालेजों में छात्रों को किसी भी सेमेस्टर में मनमाने ढंग से फेल करके उनसे दुबारा फीस वसूल कर फिर उसी सेमेस्टर की परीक्षा में बैठने पर मजबूर करना आम चलन होता जा रहा है। ऐसे संसथानों में छात्रसंघों का ना होना भी कालेज संचालकों के मनोबल को बढ़ाता है। इस स्थिति में छात्रों के सामने दुबारा फीस जमा करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं होता। क्योंकि फीस न देने पर अड़ने का मतलब है अब तक की पूरी पढ़ाई और वक्त का बर्बाद होना और फिर किसी दूसरे कालेज में एडमीशन के लिए चक्कर लगाना।
इस प्रकरण की प्ष्ठभूमि भी बिल्कुल ऐसी ही है। बर्बर पुलिसिया उत्पीड़न की शिकार हुयी प्रियंका पाल सिंह बताती हैं कि जब उन्होंने कालेज प्रशासन से दुबारा कापियां जांचने की मांग की तो उनसे साफ-साफ कह दिया गया कि दुबारा कापियां किसी कीमत पर नहीं जाॅंची जाएंगी और उन्हें वर्तमान सेमेस्टर को पास करने के लिए दुबारा फीस जमा करना होगा।
बहरहाल अब यह देखना दिलचस्प होगा कि देश के विधि निर्माता को अपना आदर्श बताने वाली मायावी सरकार में ये ‘विधिगत’ लूटखसोट कब तक चलेगा।

होली का उपहार, शिवराम की दो कविताएँ

कोटा में अपनी पहली होली पर शाम को जब रंगकर्मी, साहित्यकार और मार्क्सवादी नेता शिवराम से मिला तो उन्होंने मुझे ये दो कविताएँ उपहार में दी. जिसे आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ.

भूरे हो गए हैं खेत

भूरे हो गए हैं खेत

आभा सुनहरी

माथे पर उपहार की गठरी उठाए

स्वागत में कड़ी हैं

गेहूं के पौधों की लम्बी कतारें

जीवन के अंतिम क्षणों में

व्यग्र हैं वे

भेंट करने को

अपना श्रेष्टतम उपहार

सर्वस्व अपना/उन्हें

जिन्होंने दिया जीवन

पाला पोषा

हर तरह से रखा ध्यान

कुछ भी न जाए, हमारा व्यर्थ

बस यही एक कमाना संजोये

नाम आँखों से तक रहे वे राह

उनकी कोख से उत्पन्न

सुघड़ अन्न

बनेगा जीवनधारा

सृष्टि की श्रेष्ट रचना का

वे उल्लासित हैं

गर्व से ताना है, उनका शीश

हवा के हर झोंके पर झूमते महकते हैं भीना-भीना

भूरे हो गए हैं खेत

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नए हुनर की तलाश में

हवा शांत है,

लेकिन पतंग उड़ रही है

ठुमका - ढील

ठुमका - ढील

ठुमका दर ठुमका

फिर थोडी से ढील

ढील - खेंच

पतंग है की गिरी - गिरी जाती है

किशोर है की उसे उठाए - उठाए जाता ही

हाथों को क्षण भर का चैन नहीं

आँखे लगातार पतंग पर

पैर हर ठुमके पर

चलने लगते हैं पीछे

नीचे से रह-रह कर आवाज़ आ रही है

खाने के लिए पुकारा जा रहा है

पता नहीं

वह सुन भी पा रहा है या नहीं

अभी वह कर्मयोग में डूबा हुआ है

पूरी तरह एकाग्र

ध्यानस्थ

दत्तचित्त

वह हवा-गति के बिना भी

पतंग उड़ने का हुनर विकसित कर रहा है.

हो सकता है

वह सोच रहा है

ऐसी पतंग के बारे में

जो बिना हवा के उड़ सके।

- शिवराम

नायक जिसकी ट्रैजेडी नजर नहीं आती

प्रताप सोमवंशी

किसान हमारी अर्थव्यवस्था के असली नायक हैं। वित्त मंत्री की भूमिका में प्रणब मुखर्जी ने अंतरिम बजट पेश करते हुए जैसे ही यह कहा संसद में तालियां गूंज उठीं। प्रभारी वित्त मंत्री आगे के वक्तव्य में इन दिनों इश्तहार में आ रही योजनाओं के आंकड़ों को संसद के समक्ष रखते हैं। किसानों को श्रेष्ठ बताते हुए हर साल औसत एक करोड़ टन की दर से रिकॉर्ड उत्पादन बढ़ोतरी की बात जोड़ते हैं। वह बताते हैं कि अनाज उत्पादन 23 करोड़ टन पहुंच चुका है। सरकार ने वर्ष 2003 से 2008 के बीच कृषि पर बजट को 300 प्रतिशत बढ़ा दिया है। सहकारी ऋण ढांचे को मजबूत करने के लिए 13,500 करोड़ रुपये की विशेष वित्तीय सहायता दी गई है।
इस तरह खेती पर एक-एक करके वह सारे विवरण गिनाते हैं।सरकार की घोषणाएं किसानों के बारे में किए गए प्रयासों को बताने के साथ एक भ्रम भी फैलाती हैं, जैसे जाने किस-किस के हिस्से का पैसा किसानों को बांट दिया गया। बजट से यह पता ही नहीं चलता कि वित्त मंत्री का यह नायक कहानी के किस क्लाइमेक्स पर है। किस-किस तरह की ट्रैजेडी से उसे जूझना पड़ रहा है। खेती को लेकर गुजरे बरस में क्या नहीं हुआ, क्या गलत हुआ, इसे इंगित करने की जिम्मेदारी जिस विपक्ष पर होती है, उसका पूरा ध्यान मात्र इसी में रह गया कि एनडीए के समय में क्या हुआ था। अंतरिम बजट की आंख से देखें, तो देश के किसानों की कोई खास समस्या बची ही नहीं। हकीकत यह है कि सरकार किसी की भी रही हो, नेशनल सैंपल सवेü, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, राष्ट्रीय किसान आयोग और दूसरे सरकारी तथ्यों की रोशनी में भी किसानों की समस्या को देखने की जरूरत नहीं समझी जाती। उद्यमी हो या कर्मचारी, उनसे जुड़े संगठन अपनी बातें समय-समय पर सरकार तक पहुंचाते रहते हैं। बजट से पहले वित्त मंत्री तरह-तरह के प्रतिनिधिमंडल से मिलते हैं। खेती की मुश्किलों का हर कोई जानकार हो जाता है, सो ऊपर-ऊपर ही सब कुछ तय कर लिया जाता है। ऐसे में बजट में सरकार इतने चमकीले पैकेट में आंकड़े पेश करती है कि बाहर से देखने वाले को सब कुछ हरा ही हरा नजर आता है। इस साल के अंतरिम बजट में भी वही हुआ। विरोधाभास आंकड़ों की तह के नीचे दबे पड़े हैं। अंतरिम बजट में 2003 से 2008 के बीच के तुलनात्मक विवरण पर सरकार ने सारे तथ्य दिए हैं। मीठा-मीठा गप के आंकड़े तो वहां मौजूद हैं, कड़वा-कड़वा जाने कहां थूक दिया गया है। बजट में खेती की विकास दर 2।6 की तुलना में 3।7 प्रतिशत का होना पाया गया। यहां साल के बेहतर मानसून से उत्पादन में आंशिक सुधार को भी सरकार ने अपने लाभ के खाते में गिन लिया। खाद के सवाल पर किसान पूरे साल रात-रात भर जागकर सहकारी समितियों में लाइन लगाते रहे। कालाबाजारी होती रही। सरकार ने इस बजट में भी उर्वरक सबसिडी के लिए कहा है कि पहले की भांति जारी रहेगी। इसके साथ वैकçल्पक व्यवस्था को प्रोत्साहित करते हुए आने वाले दिनों में खाद पर सबसिडी और कम की जाएगी। वैकçल्पक क्या होगा और कैसे, इसे पिछले किसी बजट में स्पष्ट नहीं किया जाता, भाषा अवश्य एक जैसी रहती है। फसल के लिए किसानों को तीन लाख रुपये तक के ऋण सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से अगले वर्ष भी जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई गई है। किसान अरसे से रटते आ रहे हैं कि प्रोसेसिंग खर्च और रखरखाव के नाम पर लगभग दो प्रतिशत और रिटनü ब्याज लगता है, जो सरकार की ओर से आने पर खाते से çक्लयर किया जाता है। कुल मिलाकर, ब्याज 11 प्रतिशत बनता है। इसी तरह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की राशि में 88 प्रतिशत की बढ़ोतरी को तीसरी बड़ी उपलçब्ध बताया गया है। पहले इसे 596 जिलों में लागू किया गया था, अगले वित्त वर्ष से इसे सभी 623 जिलों में लागू किया जाना है। नरेगा के तहत शहरी क्षेत्र को शामिल किए जाने से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा लोग कवर किए जाएंगे। नरेगा को देश में आर्थिक विषमता दूर करने के प्रयास की उस कड़ी में तो देखा जा सकता है, जिसमें अर्थशास्त्री जान मेनार्ड कींस कहते हैं कि गड्ढे खोदने और पाटने का काम भी किया जाए, तो उसे भी सरकार को करना चाहिए। लेकिन किसानों को मजदूर बनाकर किस तरह से खेती का उद्धार किया जा सकता है? बजट में नरेगा की सफलता के कसीदे पढ़े गए, पूरे साल कहा जाता रहा कि राज्य सरकारों की तरफ से अनुपालन में çढलाई बरतने के कारण वांछित नतीजे नहीं मिल पा रहे हैं। दोनों बातें एक साथ सही कैसे हो सकती हैं? नरेगा को लेकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की बुंदेलखंड-यात्रा के बाद ही हजारों जॉब कार्ड की कलई खुली थी। वहां ज्यादातर लोगों को काम नहीं मिला और कई जगह जॉब कार्ड ग्राम प्रधान ने ही रख लिए थे। अंतरिम बजट में सबसे अधिक जिस उपलçब्ध पर सरकार अपनी पीठ ठोंक रही है, वह किसानों की ऋण माफी है। यह निश्चित है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के समय 15 हजार करोड़ रुपये की कर्ज माफी के बाद 65 हजार करोड़ रुपए की सबसे अधिक राशि इस मद में दी गई। लेकिन यह इस बार भी नहीं देखा गया कि इस ऋण माफी के बावजूद किसानों की आत्महत्याएं रुक क्यों नहीं रहीं? राष्ट्रीय किसान आयोग के अनुसार, 47 प्रतिशत लोग साहूकारों से कर्ज लेते हैं। 12 प्रतिशत लोग अपने परिजनों और परिचितों से। ऐसे में, बैंक ऋण का प्रतिशत 41 रहा। उसमें भी यह छूट उन्हें ही मिली, जो 31 मार्च, 2007 से पहले के पांच एकड़ से नीचे के जोत वाले कर्जदार थे। ऐसे में, बहुत सारे किसान बचे रह गए। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी ऋण माफी की शतोZ में संशोधन के लिए कहा था।आंकड़ों की सफेदी से कालिख ढकने की कोशिश की जगह होना यह चाहिए था कि राशि आबंटन के साथ योजनाओं की समीक्षा और अपेक्षित संशोधन को तवज्जो दी जाती। इस समझदारी पर भी भरोसा करने का साहस दिखाया जाता कि क्षेत्रवार योजनाओं का स्वरूप बदलकर लागू किया जाए। योजनाएं वहीं से आएं, जहां की दिक्कतें है, तो शायद आंकड़ों से ज्यादा गांव की खुशहाली बोलने लगे।
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)