मौत की बस गिनती करो !

गुर्जर आन्दोलनकारिओं और राजस्थान सरकार के बीच बरक़रार गतिरोध पर बयाना में शुरू हुई बातचीत से समाप्त होने की उम्मीद की जा रही है। आने वाला समय ही बतायेगा की इस बातचीत के क्या नतीजे होंगे। लेकिन उससे अलग में अपने साथियों का ध्यान वसुंधरा सरकार के पिछले ४ साल में हुए कुछ प्रमुख गोली कांडों की ओर दिलाना चाहूँगा. पिछले ४ साल के भीतर करीब १८ गोली कांड हो चुकें हैं. इसमे करीब १०० से अधिक लोग मारे गए हैं. कभी पानी मांग रहे किसान पुलिस के शिकार हुए तो कभी आदिवासी और पिछले साल से गुर्जर आंदोलन में करीब ७० लोग मरे जा चुके हैं. अब हालत इसे हैं की सराकार गोली मरती है और मीडिया और जनता गिनती कर रहें हैं.

११ अप्रेल, ०४ मंडावा (झुंझुनू) में पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई १२ लोग घायल।

३० अप्रेल, ०४ कोटडा (उदयपुर) में पुलिस ने एक बार फ़िर भीड़ को निशाना बनाया एक कि मौत ।

२९ जुलाई, ०४ सराडा (उदयपुर) में आदिवासिओं पर गोली चलाई १० घायल।

२७ अक्टूबर, ०४ रावला (श्री गंगानगर) ने भीड़ पर गोली चलाई ६ लोगों की मौत।

८ अप्रेल, ०५ मंडला (भीलवाडा) में एस पी ने गोली चलाई एक की मौत।

६ जून, ०५ कंचनपुर (धौलपुर) हिरासत में मौत का विरोध कर रहे लोगों पर गोली एक बच्चे की मौत।

१३ जून, ०५ हफ्ते भर बाद ही सोहेला (टोंक) में पानी मांग रहे किसानों पर गोली चलाई ५ किसानों की मौत.

१ जुलाई, ०५ टोंक की घटना के महीने भी पूरे नहीं हुए की डग (झालावाड़) थाने मैं पिटाई से युवक की मौत का विरोध कर रहे लोगों पर गोली चलाई

१० अक्टूबर, ०६ घड़साना में पुलिस का किसानों पर लाठीचार्ज एक किसान की मौत।

०८ फरवरी, ०७ उदयपुर में मन्दिर में घुसाने का प्रयास कर रहे आदिवासिओं पर पुलिस ने गोली चलाई एक आदिवासी की मौत।

२९ मई, ०७ अब शुरू हुआ गुर्जर आन्दोलन का दमन दौसा, करौली, बूंदी में गुर्जरों पर फायरिंग, ३ जवान सहित १८ लोगों की मौत।

३० मई, ०७ दूसरे दिन भी ३ और गुर्जर मरे गए।

१ जून, ०७ लालसोट में गुर्जर मीणा संघर्ष में ५ मरे।

२३ मई, ०८ पिछले साल मरे गए अपने लोगों की याद में रेल रोक रहें गुर्जाओं पर बयाना और पिलुपुरा में फायरिंग, १७ गुर्जरों की मौत

२५ मई, ०८ सिकंदर में आन्दोलन कर रहे गुर्जरों पर फ़िर गोली, २२ मरे जगह जगह हो रहे आन्दोलन पर फायरिंग में कुल ४५ से अधिक गुर्जर मरे गएँ.

2 comments:

Unknown said...

हिंसा का जवाब हिंसा ही हो सकता है. हिंसक भीड़ जब राष्ट्रिय संपत्ति नष्ट करती है तब क्या सरकार और पुलिस को उनका उत्साह बढ़ाना चाहिए? लोग मरे यह दुःख की बात है, पर इस के लिए जिम्मेदार क्या केवल सरकार ही है? जिस तरह आपने लेख लिखा है उस में सहानुभूति कम, राजनीति ज्यादा नजर आती है.

Unknown said...

कोन कहता है कि यहाँ लोकतंत्र है। येहना अभी भी रजवाडो का राज है और उनके तुगलकी फरमान है वो कभी भी बन्दूक के दम पर जनता को चुप करा सकती है।