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पूर्वांचल का राजनीतिक गणित - वोटों के बिखराव के बीच कमजोर पड़ती सपा और हांफती बसपा

आनंद प्रधान

पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) की 16 सीटों में से 80 फीसदी से ज्यादा सीटों पर बसपा, सपा ओर भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा हैं। हालांकि कांग्रेस इनमें से सिर्फ 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं लेकिन कई सीटों पर वह मुकाबले को चतुष्कोणोय बना पाने में कामयाब होती दिख रही है।ं कांग्रेस को 2004 में इनमे से दो सीटों - बांसगांव (सु0) और बनारस - पर कामयाबी मिली थी । उस चुनाव में भाजपा की भी बहुत दुर्गाति हुई थी ओर उसे सिर्फ दो सीटें - गोरखपुर और महाराजगंज - मिली थीं लेकिन इस बार वह गैर भाजपा
धर्मनिरपेक्ष वोटों में बिखराव के कारण 16 सीटों में से 13 सीटो पर लड़ाई में हैं । वरूण प्रकरण के बाद भाजपा उग्र हिन्दुत्व के साथ साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की आजमाई रणनीति पर लौट आई हैं। इन 16 सीटों पर पहलें चरण में 16 अप्रैल को मतदान होना हैं।
लेकिन गंगा ओर राप्ती के इस मैदान में वर्चस्ब की असली लड़ाई बसपा और सपा के बीच है। अभी सपा के पास 16 में से 8 सीटें है जबकि बसपा के पास सिर्फ तीन सीटें हैं। सपा के लिए इन सीटों को बचा पाना सबसे बड़ी चुनौती हैं। जाहिर है कि सपा और उसके नेता मुलायम सिंह यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उन्होंने इस इलाके में अपनी पूरी ताकत झोंक दी हैं। एक दिन में तीन से चार सभाएं कर रहे हैं। इसकें बावजूद सपा कमजोर पड़ती दिखाई दे रहीं है । इसकी सबसे बड़ी वजह मुस्लिम मतों में बिखराव हैं। भाजपा छोड़कर बाहर आए कल्याण सिंह से हाथ मिलाने के कारण मुस्लिम मतदाताओं में मुलायम सिंह और सपा के प्रति पहले जैसा उत्साह नही दिख रहा हैं। उनमें गहरी निराश है और मायावती इसका फायदा उठाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं। इसके लिए बसपा ने 16 में से तीन पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं जबकि सपा ने सिर्फ एक सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है।
लेकिन कुछ सीटों को छोड़कर अधिकांश सीटों पर बसपा अभी भी मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद नहीं बन पायी है। मुस्लिम मतदाताओं में मायावती के भविष्य के राजनीति व्यवहार - भाजपा से हाथ मिलाने को लेकर आशंका बनी हुई है, इसलिए बसपा की तमाम कोशिशों के बावजूद वह पूरी तरह से हाथी पर चढ़ने को तैयार नहीं हैं । इस कारण सपा के कमजोर पड़ने के बावजूद बसपा उतनी मजबूत नहीं दिखाई पड़ रही हैं जितनी अपेक्षा की जा रही थी । इसके अलावा , बसपा के ब्राह्मण - दलित गठबंधन में भी तनाव और दरारें साफ दिखाई दे रही हैं। कुछ सीटो को छोड़कर जहा बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी दिये हैं, अन्य सीटो पर ब्राह्मण मतदाता उसके साथ नही दिख रहे हैं। हालाँकि बसपा का अपना दलित और अति पिछड़ा जनाधार उसके साथ टिका हुआ है लेकिन सवर्ण मतदाताओं का वह हिस्सा उससे छिटकता दिख रहा हैं जो पिछले विधानसभा चुनावों में सपा सरकार खासकर अपराधियों को खुली छूट देने के खिलाफ बसपा के पीछे गोलबंद हो गया था।
लेकिन पूर्वांचल में हरिशंकर तिवारी, मुख्तार अंसारी और धनंजय सिंह जैसे बाहुबलियों के हाथ में बसपा की बागडोर सौंपकर मायावती ने वह राजनीतिक पूंजी गंवा दी है। बसपा के लिए अति पिछड़ी जातियों खासकर राजभर, बिंद आदि की छोटी-छोटी पार्टियों के साथ-साथ ताकतवर मध्यवर्ती जाति-कुर्मियों की अपना दल जैसी ‘‘वोटकटवा’’ पार्टियां भी राह मुश्किल कर रही है। लेकिन 2009 के आम चुनावों की सबसे बड़ी खबर यह है कि सपा और बसपा दोनो के कमजोर पड़ने के कारण ही पूर्वांचल में एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस खासकर भाजपा की स्थिति में सुधार हेाता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस इसका बहुत फायदा इसलिए नही उठा पा रही है क्योंकि उसका न सिर्फ सांगठनिक ढांचा बहुत कमजोर है बल्कि उसके पास कद्दावर नेताओं की भी इतनी कमी है कि कई सीटों पर वह प्रत्याशी तक नही खोज पायी।
पूर्वाचल की राजनीति में दूसरा सबसे बड़ा परिवर्तन मुस्लिम मतदाताओं के अंदर मची उथल पुथल और इसके कारण उनके मतों में आ रहा बिखराव है। मुस्लिम मतदाताओं को बाटला हाउस एनकांउटर, आजमगढ़ को ‘‘आतंकवाद की नर्सरी’’ के बतौर प्रचारित करने और नौजवान मुस्लिम लड़को को एसटीएफ द्वारा उठाने के अलावा सपा का कल्याण सिंह से हाथ मिलाने और बसपा के अनिश्चित राजनीतिक व्यवहार जैसे मुद्दे मथ रहे है। इस सबसे मुस्लिम मतदाताओं में मुख्यधारा की तीनो पार्टियों-सपा, बसपा और कांग्रेस के खिलाफ निराशा, गुस्से और हताशा को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है। इसका नतीजा यह हुआ है कि मुस्लिम समुदाय खासकर उसके अगड़े (अशराफ) वर्गो और युवाओं में अपनी अलग राह चुनने और धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को सबक सिखाने की भावना उबाल मार रही है। यह भावना आजमगढ़ और लालगंज (सु0) सीटों पर उलेमा कांउसिल और घोसी, देवरिया आदि पर डा0 अयूब की पीस पार्टी के जरिए प्रकट हो रही है।
इसमें कोई दो राय नही है कि मुस्लिम मतों में बिखराव का सबसे अधिक नुकसान सपा और कुछ नुकसान बसपा को जबकि सबसे अधिक फायदा भाजपा को हो रहा है। इससे अचानक भाजपा की बांछें खिल गयी है। हालांकि उसकी जीत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा पिछड़ी जातियों का उससे दूर बने रहना है। इस कमी की भरपाई वह अधिक से अधिक सीटों पर साम्प्रदायिक
ध्रु्रुवीकरण करके पूरा करने की कोशिश कर रही है। गोरखपुर से आजमगढ़ होते हुए बनारस तक भाजपा की पूरी मशीनरी इस ध्रुवीकरण को तेज करने में जुटी हुई है। योगी आदित्यनाथ से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तक को मैदान में उतार दिया गया है।
लेकिन भाजपा के आक्रामक प्रचार और उसके चढ़ाव के कारण मुस्लिम मतदाताओं में भी प्रतिक्रिया हो रही है। इस बात से इंकार नही किया जा सकता है कि कई सीटों पर जहां साम्प्रदायिक ध्रुवीरकण के कारण भाजपा जीतने की स्थिति में आती दिखाई दे रही है, वहां अंतिम क्षणों में मुस्लिम मतदाता एक बाद फिर ‘टैक्टिकल’ यानि भाजपा केा हरा सकने वाली पार्टी और प्रत्याशी को वोट देता दिखाई दे सकता है। हालंाकि मतदान से कोई एक सप्ताह पहले अभी की खबर यही है कि मुस्लिम मतों में बिखराव दिखाई दे रहा है। यह कथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के लिए खतरे की घंंटी हैं, खासकर उन पार्टियों के लिए जिन्हांेने मुस्लिम मतदाताओ को अपनी राजनीतिक जागीर समझ लिया था। उनके लिए यह चुनाव बहुत बड़ा झटका साबित होने जा रहां हैं।
यही नही , पूर्वाचल में गोंरखपुर से लेकर बनारस तक जिस तरह से बिना मुददों के चुनाव होने के कारण मतों का बिखराव हो रहा हैं, उसमें अधिकांश सीटों पर जातिगत समीकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गए है। इस बिखराव के बीच जो पार्टी और उसका प्रत्याशी कुल मतों का 28 से 30 फीसदी जुगाड़ कर लेगा, वह मैदान मार ले जाएगा । इस राजनीतिक गणित के कारण ही मुख्यतः सपा और बसपा और कुछ हद तक भाजपा अपने मूल जनाधार के साथ 28 से 30 फीसदी के जादुई आंकडे़ को छूने की कोशिश कर रही हंै। जाहिर है कि इस राजनीतिक गणित में बसपा को थोड़ी सी बढ़त दिख रही है और सपा कुछ पिछड़ती प्रतीत हो रही है। इसमे भाजपा अपनी पिछली स्थिति में कुछ सुधार कर सकती है जबकि कांग्रेस वोट बढ़ने के बावजूद अपनी सीटें बढ़ाने की स्थिति में नहीं दिख रही है।

आधी से अधिक गरीब आबादी के बीच हिन्दुत्व के नए भिंडरावाले का उदय


पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक गोरखपुर की पहचान मौजूदा सांसद योगी आदित्यनाथ और उनकी हिन्दू युवा वाहिनी के क्रियाकलापों के कारण ‘हिन्दुत्व की प्रयोगशाला’ के रूप में होने लगी है। योगी और उनकी वाहिनी गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों को गुजरात की तर्ज पर हिन्दुत्व का गढ़ बनाने में जुटे हैं। उनके उग्र, आक्रामक और हिंसक तौर तरीकों के कारण गोरखपुर और उसके आसपास के जिलों में मुस्लिम समुदाय न सिर्फ एक स्थायी भय और आतंक के बीच जीने को मजबूर है बल्कि उसका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अलगाव और अकेलापन भी बढ़ रहा है।

इस शहर और आसपास के इलाकों में योगी आदित्यनाथ ने खुद को ‘हिंदूओं के रक्षक’ के बतौर स्थापित करने की कोशिश मे मामूली विवादों को भी तिल का ताड़ बनाने और काल्पनिक विवाद खड़ा करके मुसलमानों पर संगठित हमले करने, उनका सामाजिक-आर्थिक बायकाॅट करने और सार्वजनिक अपमान करने की राजनीति को आगे बढ़ाया है। पिछले डेढ़ दशकों में इस उग्र और हिंसक योगी मार्का हिन्दुत्व की राजनीति के कारण शहर में कई बार दंगे भड़क गए या सांप्रदायिक तनाव। झड़पें हुईं और ग्रामीण इलाकों में गरीब मुस्लिम परिवारों के घर जलाने और हत्या की घटनाएं हुई हैं।

योगी आदित्यनाथ के आक्रामक हिन्दुत्व और इस इलाके को ‘गुजरात’ बनाने की इस अहर्निश मुहिम के कारण शहर खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में एक अघोषित सा तनाव और भय फैला रहता है। राज्य और प्रशासनिक मशीनरी ने योगी के इस अभियान के आगे न सिर्फ घुटने टेक दिए हैं बल्कि एक तरह की मौन और कई बार खुली सहमति दे रखी है। अवामी कांउसिल फॉर डेमोक्रेसी एंड पीस के महासचिव असद हयात के अनुसार यहां स्थानीय प्रशासन बिल्कुल विफल और योगीमय है। उनके जैसे और कई लोगों को लगता है कि योगी को प्रशासन ही भिंडरावाले बना रहा है।

स्थानीय प्रशासन के एकतरफा और पक्षपाती रवैये का हाल यह है कि जनवरी’ 2007 के दंगों की एकपक्षीय एफआईआर के बरक्स दूसरी एफआईआर लिखवाने के लिए असद हयात जैसों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा तब जाकर कोर्ट के निर्देश पर एफआईआर लिखी गयी। इस सबसे इस इलाके के मुस्लिम समुदाय में हताशा बढ़ती जा रही है। लेकिन योगी आदित्यनाथ के तौर तरीकों पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। असल में, गोरखपुर की सामाजिक-आर्थिक संरचना ऐसी है जिसमें योगी आदित्यनाथ की हिन्दुत्व की राजनीति बिना साम्प्रदायिक विभाजन और धु्रवीकरण के नहीं चल सकती है।

यही कारण है कि योगी इस चुनाव में भी साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करने में जुटे हुए हैं। वे अपने उत्तेजक भाषणों के लिए जाने जाते हैं। इस कारण चुनाव आयोग के निर्देश पर चुनावी सभाओं में उनके भाषणों की रिकार्डिंग हो रही है। इससे उनकी जुबान थोड़ी नरम हुई है लेकिन थीम नहीं बदली है। जैसे, अपनी सभाओं में वे कह रहे हैं कि अगर वे जीते और भाजपा की सरकार बनी तो उलेमा कांउसिल की ट्रेन अगली बार दिल्ली और लखनऊ नहीं जा पाएगी। अगर वह जाने की कोशिश करेगी तो उसे दिल्ली नहीं, कराची भेजा जाएगा।

योगी आदित्यनाथ की गरम जुबान की भरपाई उनके मंचों पर मौजूद भाजपा खासकर हिंदू युवा वाहिनी के नेता अपने भड़काऊ और अश्लील भाषणों और नारों से कर दे रहे हैं। इन भाषणों और नारों का मुकाबला भाजपा के नए हिंदू ध्वजाधारी नेता वरूण गांधी भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन इन सबसे आंखें मूंदे हुए है। दूसरी ओर, योगी आदित्यनाथ इस बार पूर्वांचल के इस इलाके में भाजपा के स्टार प्रचारक हैं। भाजपा ने उन्हें हेलीकाप्टर दे रखा है जिससे वे आसपास के जिलों में सांप्रदायिक धु्रवीकरण तेज करने और भाजपा के राजनीतिक ग्राफ को उठाने के लिए तूफानी दौरे और प्रचार कर रहे हैं।

इन सबके बीच योगी का राजनीतिक कद जिस तरह से बढ़ा है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभाओं होनेवाले भाषणों में लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री और योगी को अगला गृहमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा जा रहा है। पूर्वांचल में भाजपा के अंदर योगी का लगभग एकछत्र राज कायम हो गया है। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में भाजपा के प्रभावशाली नेताओं को राजनीतिक रूप से या तो हाशिए पर ढकेल दिया है या अपनी शरण में आने के लिए मजबूर कर दिया है। योगी के समर्थकों का प्रिय नारा है- ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना होगा।’

लेकिन योगी के इस उभार और पूर्वांचल को गुजरात बनाने की शुरूआत गोरखपुर से करने के अभियान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि गोरखपुर, गुजरात नहीं है। गोरखपुर और पूर्वांचल की गरीबी और पिछड़ेपन के सवाल बने हुए हैं। हालांकि गोरखपुर पूर्वांचल का एक प्रमुख व्यापारिक और सेवा क्षेत्र आधारित अर्थव्यवस्था का केंद्र है लेकिन एनएसएसओ के 61वें दौर के सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 56.5 प्रतिशत और शहर में 54.8 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रही है। ‘इंडिया टुडे’ के लिए इंडिकस एनालिटिक्स के एक ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक गोरखपुर सामाजिक आर्थिक सूचकांक और आधारभूत ढांचे के मामले में देश के सौ सबसे बदतरीन संसदीय क्षेत्रों की सूची में 72वें स्थान पर है। पानी में आर्सेनिक और इंसेफेलाइटिस का कहर एक स्थायी त्रासदी है।

गोरखपुर का यह हाल हिन्दुत्व की राजनीति के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। योगी इसे ‘हिन्दुत्व और विकास’ के नारे से हल करना चाहते हैं। गोरखपुर के जवाब के लिए 16 मई का इंतजार करना होगा।

'सरकारी आतंकवाद' के खिलाफ पीयूएचआर ने सौंपी रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों आतंकवाद का खूब बोलबाला रहा. आतंकवाद से निपटने के लिए नए कानून लेन की तैयारी भी हो गई लेकिन बाद में मायावती सरकार ने मुसलमानों से रहमदिली दिखाते हुए कानून वापस भी ले लिया. लेकिन इस दौरान आतंकवाद से निपटने के नाम पर उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने कई बेक़सूर मुस्लिम युवकों को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया तो कईओं को गिरफ्तार कर लिया. पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स (पीयूएचआर) ने हर घटनों के बाद उसकी नए सिरे से जांच कर एसटीएफ की कहानियो को चुनौती देनी शुरू कर दिया. उद्देश्य केवल इतना की आतंकवाद का असली चेहरे उजागर हो और 'सरकारी आतंकवाद' बेनकाब. देश में शुरू से ही आतंकवाद से लड़ाई केवल राजनैतिक गुणा गणित का खेल रहा है. पीयूएचआर ने इसमे पिसे जा रहे लोगों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए अपनी जाँच रिपोर्टों के माद्यम से सरकार पर दबाव बनाए रखा. इन्ही दबावों के चलते पिछले साल मार्च में आजमगढ़ व कुछ अन्य जिलों में पंचायत समितियों के चुनाव के मद्देनजर आजमगढ़ व जौनपुर से उठाए गए तारिक, खालिद और सज्जाद की गिरफ्तारी के लिए जाँच बैठानी पड़ी. सेवानिवृत्त जज आर.डी निमेष को इस जांच का जिम्मा सौंपा गया है. १० फरवरी को पीयूएचआर ने जाँच आयोग के सामने २५० से भी आधिक पन्नों की रिपोर्ट रखी. इसका एक छोटा हिस्सा आप सभी के सामने है.
______________________

समक्ष-
निमेष जाँच आयोग,

सहकारिता भवन,

पंचम तल १४ डी.बी.आर.अम्बेडकर रोड

लखनऊ,उ0प्र0 ।

मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स (पीयूएचआर) की तरफ से हम अपनी जाँच पर आधारित दस्तावेज़ और उसके समर्थन में तथ्य प्रेषित कर रहे हैं कि उ0 प्र0 के कचहरी विस्फोटों में अभियुक्त बनाए गए मो0 तारिक कासमी पु़त्र श्री रियाज़ अहमद ग्राम सम्मोपुर, थाना रानी की सराय, जनपद आजमगढ़ को यूपी0 एसटीएफ ने 12 दिसम्बर 2007 दिन में लगभग साढ़े बारह बजे रानी की सराय, आजमगढ़ से उठाया था जिसे बाद में 22 दिसम्बर 2007 को बाराबंकी रेलवे स्टेशन के पास से सुबह 6।20 पर एसटीएफ ने गिरफ्तार करने का दावा किया है। सम्बन्धित दस्तावेज़ और तथ्य संलग्न तालिका 'अ' के अन्तर्गत है।

ठीक इसी तरह खालिद मुजाहिद पुत्र स्व. जमीर आलम, मोहल्ला महतवाना, कोतवाली मड़ियाहूं, जनपद जौनपुर(उ0 प्र0) को एसटीएफ ने 16 दिसम्बर 2007 को मड़ियाहूं बाजार से शाम 6 से साढ़े 6 बजे के बीच उठाया था। जिन्हें बाद में बाराबंकी रेलवे स्टेशन के पास से सुबह 6 बजकर 20 मिनट पर तारिक कासमी के साथ गिरफ्तार करने का दावा एसटीएफ कर रही है। संबन्धित दस्तावेज व तथ्य संलग्न तालिका 'ब' के अंतर्गत हैं।
तालिका 'स' में मानवाधिकार संगठनों द्वारा इस प्रकरण पर जारी रिपोर्टों, बयानों, पर्चों, व विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपी रिपोर्टें

'अ'


1- मो0 तारिक कासमी के दादा अजहर अली पुत्र मो0 अली ग्राम सम्मोपुर, थाना रानी की सराय, जनपद आजमगढ़ द्वारा थाना रानी की सराय आजमगढ़ में तारिक कासमी की गुमशुदगी की रिपोर्ट जो 14 दिसंबर 2007 को दर्ज करायी गयी। छाया प्रति संलग्न है।
2- तारिक कासमी की गुमशुदगी संबंधित पोस्टर जो पूरे जिले में 14 से 18 दिसंबर 07 के बीच लग गए थे। छाया प्रति संलग्न है।
3- तारिक कासमी को 12 दिसंबर 07 को एसटीएफ द्वारा रानी की सराय, शंकरपुर, चेकपोस्ट से थोड़ा आगे से उठाने के चश्मदीद गवाहों मो0 आमिर पुत्र नेसार अहमद, सलाउद्दीन पुत्र जैश, वीरेन्द्र सिंह पुत्र अवधेश सिंह, रामअवध चैरसिया पुत्र शंकर चैरसिया के हलफनामे । छाया प्रति संलग्न है।
4- तारिक कासमी को दिनांक 12.12.2007 को रानी की सराय, शंकरपुर, चेकपोस्ट से एसटीएफ द्वारा उठाए जाने की पुष्टी करने वाले लोगों के नाम व दस्तखत। छाया प्रति संलग्न है।
5- तारिक के दादा अजहर अली पुत्र मो0 अली ग्राम सम्मोपुर थाना रानी की सराय जनपद आजमगढ़ द्वारा माननीय मुख्यमंत्री उ0प्र0 को 14.12.2007 को भेजा गया पत्र। छाया प्रति संलग्न है।
6- तारिक कासमी के ससुर मौलवी असलम पुत्र अब्दुल कुद्दूस द्वारा राष्टिय मानवाधिकार आयोग को 19.12.2007 को भेजा गया पत्र। छाया प्रति संलग्न है।
7- 6 मार्च 2008 को राज्य सभा सदस्य श्री अबू आसिम आजमी द्वारा राज्य सभा में प्रश्नकाल के दौरान तारिक कासमी की फर्जी गिरफ्तारी का सवाल उठाया गया। एमसीएम-एसकेसी/एसक्यू/8-15 में कहा गया कि " उप्र के स्पीकर उसी इलाके के हैं, उनके पास भी लोग गए। स्पीकर साहब ने एसएसपी को फोन किया कि पता लगाओ। इस बारे में डीएम के पास, एसपी के पास, कचहरी में दस दिन तक खूब आंदोलन हुआ तथा अखबार में भी छपा कि उस व्यक्ति की किडनैपिंग हो गई है।" एक नेता ने कहाकि अगर पुलिस ने उसका 23 तारिख तक पता नहीं लगाया तो मैं उसी जगह पर जाकर आत्महत्या कर लूंगा। छाया प्रति संलग्न है।
8- तारिक कासमी के दादा अजहर अली ़द्वारा 18.12.2007 को जिला सूचना अधिकारी आजमगढ़ से माॅंगी गई सूचना कि क्या तारिक का अपहरण हुआ है अथवा पुलिस द्वारा किसी मामले में उठाया गया है।छाया प्रति संलग्न है।
9- 20.12.2007 को अजहर अली द्वारा सीजीएम आजमगढ़ को प्रस्तुत किया गया प्रार्थनापत्र। छाया प्रति संलग्न है।
10- नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी द्वारा 20.12.2007 को तारिक कासमी के अपहरण और पुलिस की निष्क्रियता के खिलाफ दिए गए धरने में माननीय मुख्यमंत्री उ0प्र0 को भेजा गया ज्ञापन। छाया प्रति संलग्न है।
11- 15.12.2007 को हिन्दुस्तान में 'लापता हकीम का तीसरे दिन भी नहीं लग सका कोई सुराग 'शीर्षक से छपी खबर ।छाया प्रति संलग्न है।
12- 17.12.2007 को आजमगढ़ में तारिक के अपहरण और पुलिस निष्क्रियता के खिलाफ चल रहे आंदोलनों की खबरें- अमर उजाला में 'लापता डाक्टर का सुराग नहीं, प्रदर्शन', हिन्दुस्तान में 'कासमी अपहरण काण्ड के खिलाफ नेलोपा का धरना', दैनिक जागरण 'अपहरण जनता सड़क पर।' छाया प्रति संलग्न है।
13- 18.12.2007 को आजमगढ़ में तारिक के अपहरण और पुलिस निष्क्रियता के खिलाफ चल रहे आंदोलनों की खबर हिन्दुस्तान में 'जारी रहेगा धरना।' छाया प्रति संलग्न है।
14- 19.12.2007 को हिन्दुस्तान में ' हकीम तारिक को जमीन निगल गयी या आसमान ' शीर्षक से छपी खबर में लिखा है- विदित हो कि सम्मोपुर निवासी डा.हकीम तारिक पुत्र रियाज का उस समय बदमाशों ने मार्शल गाड़ी से अपहरण कर लिया जब 12 दिस0 को वे अपनी बाइक से सरायमीर जा रहे थे। घटना पहले दिन जहां रहस्यमय बनी रही, वहीं पुलिस व परिजनों की जांच में अपहरण के दौरान प्रत्यक्षदर्शी रही महिलाओं व छात्रों से बातचीत की। अपहरण कर लिए जाने की पुष्टि होते ही परिजनों में हड़कम्प मचा ही साथ ही पुलिस भी हाफने लगी।.....एसओ का कहना है कि टीम गठित की गई है शीघ्र कामयाबी मिलेगी....। छाया प्रति संलग्न है।
15- 20.12.2007 को हिन्दुस्तान में 'हकीम अपहरण काण्डः दूसरी दिशा में घूमी जाॅंच प्रक्रिया' शीर्षक से छपी खबर में लिखा है कि- 'लखनउ की एसटीएफ टीम ने अपहर्ताओं की तलाश न कर अपहर्ता के घर पर बुधवार को छापा मारा।'
16- 21.12.2007 को तारिक अपहरण और पुलिस निष्क्रियता के खिलाफ चल रहे आंदोलनों की खबरें- हिन्दुस्तान 'हकीम अपहरण काण्डः नेलोपा ने कलेक्टी कचहरी पर दिया धरना', दैनिक जागरण 'तारिक की वापसी के लिए नेलोपा ने दिया धरना।' अमर उजाला 'कहाॅं है डाक्टर, पुलिस वाले अब भी पहेली बुझा रहे', 'चिकित्सक की रिहाई को लेकर सर्वदलीय धरना'। छाया प्रति संलग्न है।
उक्त समाचार पत्रों में छपे समाचारों की सत्यता का सत्यापन उनके संवाददाताओं को बुलाकर उनका बयान ले के किया जा सकता है।

'ब'


1- खालिद मुजाहिद के चचा मु0 जहीर आलम फलाही द्वारा 19.12.2007 दोपहर जिलाधिकारी जौनपुर, राष्टी्य मानवाधिकार आयोग, पुलिस महानिदेशक लखनउ व मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को फैक्स द्वारा पत्र भेजा गया। छाया प्रति संलग्न है।
2- मु0 जहीर आलम फलाही द्वारा राष्ट्ीय मानवाधिकार आयोग को 26.06.2007 को भेजा गया पत्र जिसमें एक संदिग्ध व अज्ञात व्यक्ति जो खालिद के बारे में पूछताछ करता था, का जिक्र है । यही संदिग्ध व्यक्ति 18,19 दिसम्बर,2007 की रात यानि खालिद के मडियाहॅंू से उठाये जाने के दो दिन बाद और उसके बाराबंकी से गिरफ्तार दिखाये जाने के तीन दिन पहले पुलिस टीम के साथ खलिद के घर दी गयी दबिश में भी शामिल था। छाया प्रति संलग्न है।
3- खालिद को 16.12.2007 को मडियाहूॅं कें पवन टाकीज के पास मुन्नू चाट की दुकान पर चाट खाते हुए 6.30 बजे के आस पास असलहा धारी लोगों द्वारा उठाये जाने की पुष्टि करने वाले लोगों के नाम व हस्ताक्षर। छाया प्रति संलग्न है।
4- 17.12.2007 को अमर उजाला में 'एसटीएफ ने चाट खा रहे युवक को उठाया', हिन्दुस्तान में 'टाटा सुमो सवार लोगों ने युवक को उठाया' शीर्षक से छपी खबरें। छाया प्रति संलगन है।
5- 18.12.2007 को अमर उजाला वाराणसी संस्करण में छपी खबर 'एस0टी0एफ0 की हिरासत में हूजी के दो आतंकी' में कहा गया है ..... इसी प्रकार जौनपुर जिले के मड़ियाहू स्थित मदरसे में पढाने वाले एक अध्यापक को हिरासत में लिया गया है....। छाया प्रति संलग्न है।
6- 20.12.2007 को हिन्दुस्तान में 'लखनउ धमाकों के वांछित की तलाश,मडियाहूॅं में छापा', अमर उजाला में 'एसटीएफ ने युवक को उठाया', हिन्दुस्तान में 'लखनउ बम विस्फोट के वांॅंछित के तलाश में मड़ियाहूॅं में छापा।' छाया प्रति संलग्न है।
7- 21.12.2007 को हिन्दुस्तान में 'मड़ियाहू का खालिद तीन बार जा चुका है पाकिस्तान!' शीर्षक से छपी खबर भी खालिद को बाराबंकी से गिरफतार किये जाने के दावे को गलत साबित करती है। खबर में लिखा है ......... खालिद के चचा जहीर ने जानकारी दी कि पुलिस 16.12.2007 को ही खालिद को उठा ले गयी थी और जब वह थाने रिपोर्ट दर्ज कराने गये तो बताया गया कि ए0टी0एस0 ले गयी है, रिपोर्ट नहीं लिखी जा सकती है ....... । छाया प्रति संलग्न है।
8- 21.12.2007 अमर उजाला आजमगढ में छपी खबर 'एस0टी0एफ0 ने लिये दो और हिरासत में' भी इस बात की पुष्टि करती है कि खालिद और तारिक दोनों को 22.12.2007 को बाराबंकी से एस0टी0एफ0 ने गिरफ्तार करने का जो दावा किया है, वह गलत है तथा इन्हें मड़ियाहू व आजमगढ़ से ही उठाया गया था। खबर कहती है ........' लखनउ पुलिस ने जौनपुर के मड़ियाहू थाने के मुहल्ला महतवाना निवासी खालिद और आजमगढ के मु0 तारिक कासमी को संदेह के आधार पिछले दिनों हिरासत में लिया था ......। छाया प्रति संलग्न है।
9- 22.12.2007 को अमर उजला 'आतंकियों के संपर्क में था मोैलाना खालिद' शीर्षक से छपी खबर में लिखा है ...... आई0बी0 की रिपोर्ट पर ही एस0टी0एफ0 ने पीछा किया, यह भी कहा जा रहा है कि 16.12.2007 को खालिद को कस्बे की चाट की दुकान से उठाया गया। छाया प्रति संलग्न है।
10- 20.12.2007 को हिन्दुस्तान में 'जनपद में ही मौजूद हैं आतंकी संगठन हूजी के संचालक' शीर्षक से छपी खबर में लिखा है कि .......एसटीएफ कड़ी सुरागरसी के बाद एक सप्ताह पूर्व ही खालिद को कस्बंे से राह चलते उठा लिया था । छाया प्रति संलग्न है।
उक्त समाचार पत्रों में छपे समाचारों की सत्यता का सत्यापन उनके संवाददाताओं को बुलाकर उनका बयान ले के किया जा सकता है।

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1- मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइटस द्वारा राष्ट्ीय मानवाधिकार आयोग को खालिद मुजाहिद व तारिक कासमी के संबंध में भेजे गये पत्र की प्राप्ति सहित प्रति। छाया प्रति संलग्न है।
2- उ0प्र0 अल्पसंख्यक उत्पीड़न विरोधी कानूनी अधिकार मंच द्वारा केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री श्रीप्रकाश जायसवाल को 06.09.2008 को दिया गया पत्र । छाया प्रति संलग्न है।
3- उ0प्र0 अल्पसंख्यक उत्पीड़न विरोधी अधिकार मंच व इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की तरफ से 01.06.2008 को हाईकोर्ट परिसर में आयोजित कार्यक्रम का पर्चा जिसमें खालिद व तारिक मामले का जिक्र है । छाया प्रति संलग्न है।
4- पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइटस की जाॅंच दल द्वारा तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद के घर व आसपास की गयी गहन छानबीन के बाद अखबारों में छपी बयानों की कतरने। छाया प्रति संलग्न है।
5- पीपुल्स युनियन फार ह्यूमन राइट्स द्वारा उ0प्र0 कचहरी बम धमाकों में निर्दोष व्यक्तियों खालिद व तारिक की गिरफ्तारी के खिलाफ इलाहाबाद में आयोजित जनसुनवाई जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवा निवृत्त न्यायाधीष श्री रामभूषण मेहरोत्रा ने की थी,की खबरे। छाया प्रति संलग्न है।
6- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में खालिद और तारिक की फर्जी गिरफतारी के संदर्भ में छपी रिपोर्टे-तहलका,प्रथम प्रवक्ता, दस्तक। छाया प्रति संलग्न है।
उक्त सभी समाचारों का सत्यापन सम्बंधित समाचार पत्रों के संवाददाताओं तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों एव लेखकों के बयान ले कर किया जा सकता है। जिनका पता, पत्र एवं पत्रिकाओं के सम्पादकों से प्राप्त हो पाना संम्भव है।

लखनऊ,
दिनांक- 10 फरवरी 2009

द्वारा-
लक्ष्मण प्रसाद, शाहनवाज आलम, राजीव यादव
सदस्य कार्यकारिणी समीति,उ0 प्र0
पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइट्स (पीयूएचआर)
632/13 शंकरपुरी कमता पो0 चिनहट
लखनऊ उ0प्र0

पीयूएचआर की और रिपोर्ट देखें नई पीढी

नुरूल यूपी एस टी एफ के अगले शिकार

तीन दिनों तक पीटने के बाद अधमरा कर फेका
नाम - नुरुल हसन
उम्र - 62 से ज्यादा
निवासी - गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
हसन नुरुल हज जाने के लिए कुछ जरुरी कागजातों को दुरुस्त कराने के सिलसिले में 24 अक्टूबर को लखनऊ गए हुए थे। लेकिन, आजमगढ़ फोबिया की शिकार और हर दाढ़ी- टोपी वाले में आतंक का निशां खोज रही उत्तर प्रदेश एस टी एफ के चंगुल में फंस गए. दो दिन की पुछ्ताझ के बाद, हाजी साहब की यह हालत यह है की वह अब हज छोड़, खुदा से अपने को उठा लेने की दुआ मांग रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पीयूएचआर के लोगो के बाद हाजी साहब एस टी एफ के नए शिकार हैं. हसन को भी उसी दिन एस टी एफ ने उठाया था जिस दिन पीयूएचआर के अन्य लोगो को गायब किया था. इसी दिन आजमगढ़ से दिल्ली जा रहे दो युवकों को कैफियत एक्स्स्प्रेस से अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन पीयूएचआर के लोगो के हस्तक्षेप से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी थी. एक ही दिन उठाए गए इन लोगों के मामले अब खुल के सामने आ रहे हैं । हसन को भी उसी दिन एस टी एफ ने उठाया था जिस दिन पीयूएचआर के अन्य लोगो को गायब किया था. इसी दिन आजमगढ़ से दिल्ली जा रहे दो युवकों को कैफियत एक्स्स्प्रेस से अगवा करने का प्रयास किया था. लेकिन पीयूएचआर के लोगो के हस्तक्षेप से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी थी. एक ही दिन उठाए गए इन लोगों के मामले अब खुल के सामने आ रहे हैं. गाजीपुर के कासिमाबाद कसबे के रहने वाले नुरुल हसन उत्तर प्रदेश रोडवेज के सेवानिवृत कर्मचारी हैं. 24 अक्टूबर को हसन साहब अपने हज जाने के कागजो को दुरुस्त करने के लिए गाजीपुर से लखनऊ के लिए रवना हुए थे. लखनऊ में वह जैसे ही बस स्टैंड पर उतरे एस टी एफ के लोगो ने उन्हें घेर लिए और एक गाड़ी में बैठ वहां से करीब २० मिनट की दुरी पर स्थित किसी मकान में ले गए, वहां पुछ्ताझ के लिए उन्हें काफी प्रताडित किया. दो दिनों तक एक खंभे से बाँध कर रखा गया. उनकी दाढ़ी नोची गई और कई तरह से प्रताडित किया गया. एस टी एफ उनसे बार-बार एक ही सवाल पूछती रही - " तुम्हारा आजमगढ़, सरायमीर और संजरपुर से क्या ताल्लुकात हैं. कौन-कौन रिश्तेदार वंहा रहते हैं, क्या करते हैं," इन सभी सवालों का जवाब नुरुल हसन के पास अभी भी है. वह आतंकित से अब इन सवालों का जवाब ख़ुद से ही पूछ रहे हैं.तीन दिनों तक पीटने के बाद भी इसका जवाब नहीं मिला तो एस टी एफ ने २७ अक्टूबर उन्हें इस हिदायत के साथ सड़क किनारे फेक दिया कि " किसी को कुछ नहीं बताना." बाद में रोडवेज के ही एक परिचित कर्मचारी ने उन्हें मऊ के फातिमा हॉस्पिटल में भरती कराया. वहां भी दो दिनों बाद अचानक अस्पताल वालो ने उन्हें अस्पताल से निकल दिया. फिलहाल नुरुल हसन ने गाजीपुर में मामला दर्ज कराया है. दैनिक हिंदुस्तान और कुछ उर्दू के अखबारों ने इस खबर को प्रकाशित किया लेकिन अन्य किसी अखबार में नुरुल हसन को जगह नसीब नहीं हुई. शायद इस लिए की एस टी एफ ने उन्हें मीडिया के सामने एक आतंकी के रूप में नहीं पेश किया, और सड़क किनारे फेक दिया.अगर नुरुल को भी एस टी एफ आतंकी सिद्ध कर उनके रिश्ते आजमगढ़ से जोड़ती तब मीडिया की आँख खुलती क्योंकि आज की आम मीडिया पुलिस की प्रेस ब्रिफिन्गों के आधार पर चलने की आदी होती जा रही है.एक ही दिन ( 24 अक्टूबर, 08) में उत्तर प्रदेश की 'तेजतर्रार' एंटी टेरिरिस्ट फोर्स द्वारा लोगो को अगवा कर प्रताडित करने की तीसरी घटना है. उस दिन लखनऊ से उठाए पीयूएचआर नेता अभी भी जेल में हैं, पीयूएचआर से जुड़े शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव लक्ष्मण प्रसाद अभी भी इनके निशाने पर हैं. इनके फोन लगातार टेप किए जारहे हैं. यंहा के 'माया राज' में उत्तर प्रदेश में सच बोलने वाले और अल्पसंख्यक सरकारों और सुरक्षा एजंसियों के निशाने पर है.
पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स की ओर से जारी
शाहनवाज़ आलम 09415254919
राजीव यादव 09542800752
लक्ष्मण प्रसाद 0988969688
विजय प्रताप 09982664458
ऋषि कुमार सिंह 09911848941