जहरीली शराब बुनती मौत का ताना-बाना

विजय प्रताप
राजस्थान में एक बार फ़िर शराब ने अपना कहर ढहाया और एक साथ १० घरों के दीये बुझा दिया. शिकार हुए धौलपुर जिले के पृथ्वीपुर गाँव के युवाओं पर. एक महीने के भीतर इस तरह की दूसरी घटना है जिसमे अवैध शराब पीने से लोगों की मौत हुई है. घटना की सूचना के बाद अधिकारों ने इसका कारन अधिक शराब का सेवन बताया लेकिन जब एक के बाद एक कई मौतों की सूचना आई तो सच्चाई किसी से छिपी नहीं रही. इससे पहले ११ दिसम्बर को भी जयपुर में इसी तरह की घटना हो चुकी है. उस दिन जयपुर से कुछ दूर हनुतपुरा गांव के सोहनलाल रैगर के घर रिष्तेदार आए थे। सोहन ने रात को अपने रिष्तेदार रामेष्वर रैगर के लिए पास के गांव अमरसर के सरकारी ठेके की षराब की दुकान से देसी शराब खरीदा था। उसने वह शराब खुद भी पी व रिष्तेदार को भी पिलाई। उसी रात अमरसर गांव के युवक सुरेन्द्र मीणा ने एक षादी से लौटते वक्त उसी ठेके पर शराब पी। अल सुबह एक खबर आई सोहनलाल रैगर व रामेष्वर रैगर दोनों की रात को ही मौत हो गई। सुरेन्द्र मीणा को भी तबीयत बिगड़ने के बाद जयपुर ले जाया गया। लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। कुछ ही देर में ऐसे करीब तीन दर्जन लोगों को पास के षाहपुरा स्वास्थ्य केन्द्र और फिर जयपुर के सवाईमान सिंह अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह सभी लोग उस रात शराब पीए हुए थे। दोपहर तक सोहन, रामेष्वर व सुरेन्द्र की तरह मरने वालों की संख्या 19 तक पहुंच गई। बाद में शराब के सैंपल की जांच से पता चला की इन सभी की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है। राजस्थान में अभी-अभी विदा हुई महारानी की सरकार ने हर गांव तक पानी भले ही न पहुंचाया हो लेकिन एक तोहफा जो हर गांव को बिना मांगे मिला है, वह इस तरह की शराब की दुकाने हैं। खेतों को पानी के लिए इन्हीं महारानी के षासनकाल में किसानों को कई जगह अपने सीनों पर पुलिस की गोलियां झेलनी पड़ी, लेकिन शराब की दुकानों के लिए उन्हें न तो आंदोलन करना पड़ा और नहीं गोलियां खानी पड़ी। लेकिन कुछ अलग तरीके से ही सही गरीब आदिवासी लोगों को अपनी जान की आहूति यहां भी देनी पड़ी रही है और वही तरीका ही हनुतपुरा व अमरसर में देखने को मिला। वसंुधरा के षासनकाल में जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या इस घटना के बाद करीब 95 हो गई है। यह संख्या उन दुर्घटनाओं की है जहां लोग समूह में मरे, इक्का दुक्का नहंीं। हनुतपुरा व पास के गांव में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मरने की सूचना पर हरकत में आए प्रषासन ने तंुरत शराब के ठेकेदार गोपाल मीणा व गुलाब देवी सहित तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। अमरसर गांव में यह ठेका गोपाल मीणा के नाम से था, जिसने सरकार से भी ज्यादा दरियादिली दिखाते हुए हनुतपुरा के रैगर बस्ती व कुमावत मोहल्ले में अलग-अलग कांउटर खोल रखे थे। घटना की खबर मिलते ही कांग्रेस नेता अषोक गहलोत मुख्यमंत्री पद की भागदौड़ छोड़ सीधे अस्पताल पहुंच गए। गहलोत ने पीड़ितों को ढ़ांढस बंधाते हुए कहा कि ' अब मैं आ गया हूं, सब ठीक हो जाएगा।' ऐसी ही घटनाओं के चलते कांग्रेस ने पूरे चुनाव के दौरान वसुंधरा सरकार की आबकारी नीति को मुख्य मुद्दा बना रखा। अषोक गहलोत अपनी सभाओं के माध्यम से वसुंधरा राजे ने गांव-गांव में शराब की दुकान खुलवा गांव के वातावरण को खराब करने का आरोप लगाया। है। दूसरी तरफ महारानी अपना बचाव करती नजर आई। महारानी के पास केवल एक ही तर्क था कि उन्होंने शराब के ठेकों पर से उद्योगपतियों व रसूखदारों का वर्चस्व तोड़ा है। लेकिन जनता ने उनके इस फालतू तर्कों को सिरे से नकार दिया। चुनाव परिणामों पर भी नजर डाले तो इसका स्पश्ट असर देखने को मिला। उन जिलों में जहां महिलाओं का मतदान प्रतिषत ज्यादा रहा वहां भाजपा को बुरी तरह हारना पड़ा। दरअसल प्रदेष में आबकारी ऐसी सोने की खान है जिसे कम करने या बंद करने की जुर्रत न तो गरजने वाली कांग्रेस सरकार कर सकती है और नहीं भाजपा सरकार। शराब की बिक्री राज्य में आय का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है। पिछले साल इससे सरकार को करीब डेढ़ से दो सौ करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। ऐसे में षराब से बैर रख कोई भी सरकार अपने खजाने खाली नहीं कराना चाहेगी। वैसे भी प्रदेष में षराब माफियों के खिलाफ कार्रवाई करना किसी के लिए भी आसान नहीं है क्योंकि ऐसे लोगों एक समान भाव से दोनों पार्टियो के साथ खड़े रहते है। षराब की दुकाने न कांग्रेस के षासनकाल में कम रही है और नहीं वसंुधरा के। अतंर केवल इतना सा है कि कांग्रेस ऐसे ठेकों के लिए जिले स्तर पर टेंडर आमंत्रित करती थी जिसे वसुंधरा ने बदल कर हर ठेके के लिए टेंडर देना षुरू कर दिया। ऐसे में दुकानों की संख्या में जरूर अंतर आया। पहले पूरे जिले का ठेका पाने वाला ठेकेदार ही तय करता था, कि उसे कहां कहां दुकाने खोलनी है। वह कम दुकाने खोल सेल्समैन रखने व दुकान का किराया देने के खर्चों से बच जाता। ऐसे ठेकेदार गांवों के बजाए षहरी इलाकों में दुकान चलाने पर ज्यादा जोर दिए। वैसे भी शराब जिले में कहीं से बिके बिकती उन्हीं के ठेके से थी। लेकिन जब से लाटरी प्रणाली द्वारा अलग-अलग ठेका देना षुरू हुआ, नए नवाले ठेकेदारों ने गांव-गांव में अपनी दुकानों को प्रोफेषनल तरीके से चलाना शरू कर दिया। घोर प्रतिस्पद्धा के चलते कुछ ने सरकारी ठेके की दुकान की आड़ में कच्ची शराब भी बेचना षुरू कर दिया। इससे पहले भी आदिवासी बहुल इलाकों में चोरी छिपे कच्ची शराब की अनगिनत फैक्ट्यिां चल रही हैं। कच्ची शराब आदिवासी समुदाय की सबसे अच्छी पेय पदार्थ है। षायद इसलिए भी कि भूख की पीड़ा को इसके नषे में कुछ देर के लिए षांत रखा जा सकता है। षायद इसीलिए ऐसे आदिवासी बहुल गांवों में चार साल की उम्र से ही बच्चों को ऐसी शराब की लत लग जाती है। राजस्थान के बंजारा, कंजर, भील, सांसी व अन्य आदिवासी समुदाय की बस्तियों में ऐसी शराब बनाने के कई छोटे कारखाने चलते हैं। यह आमतौर पर जंगलों के बीच व नदी नालों के किनारे होते है। यहां महुआ, गुड़ या स्प्रिट से शराब बनाई जाती है। लेकिन कई बार बनाते समय असावधानी के चलते कीड़-मकोड़े या छिपकली गिर जाने से या उद्योगों में काम आने वाली स्प्रिट से बनी शराब इनकी जिंदगी के लिए घातक हो जाती है। इन अवैध कारखानों से आबकारी विभाग व स्थानीय पुलिस को हर महीने पैसा पहुंचता रहता है। पैसा नहीं देने पर पुलिस कहर बन इन बस्ती के लोगों पर टूट पड़ती है, फिर चाहें महिला हाथ लगे या बच्चे सभी एक साथ जेल में होते हैं।
डेढ़ साल पहले जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों पर रोकथाम के लिए वसुंधरा सरकार ने आबकारी कानून में थोड़ा संशोधन करते हुए इसे और कड़ा करने का भी ढ़ोंग रचाया। संशोधन के बाद नए कानून में जहरीली शराब से मौत के मामले में शराब बनाने व बेचने वाले को उम्रकैद व अधिकतम दस लाख का जुर्माना और पीड़ित पक्ष को दो से तीन लाख रुपए का मुआवजा देने का प्रावधान किया गया। लेकिन जमीन स्तर की बात करें तो कहीं से भी न तो अवैध शराब का करोबार रूका और नहीं लोगों की मौत पर लगाम लगा। तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने दावा किया था कि ''कानून में कड़े प्रावधान करने से ऐसी दुखांतिकाओं पर रोक लोग सकेगी।'' इसके डेढ़ साल बाद अब मुख्यमंत्री अषोक गहलोत ने लोगों को ढांढ़स बंधाया है-'' मैं आ गया हूं, सब ठीक हो जाएगा।'' जनता आने जाने वाली सरकारों की राह तक रही हैं - कब ये वादे हकीकत में बदलेंगे। कब इस जहरीली शराब के ताने-बाने से मुक्ति मिलेगी। कब ये मौत का सिलसिला रुकेगा।

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