विजय प्रताप
ये जो बिहार है, आज से दो दशक पहले वाला बिहार नहीं है। बिहार बदल रहा है।
केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने कह दिया है कि बिहार सबसे तेज 13-1 फीसद की गति से
विकास कर रहा है। लेकिन केवल विकास के पैमानों पर नहीं बल्कि सामाजिक स्तर पर भी
बिहार नई करवट ले रहा है। विकास के आंकड़ों से अलग बिहार में सामाजिक स्तर पर चल
रहे बदलावों को जनना-समझना ज्यादा जरूरी है।
हिंदू धर्म में प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में
कुंभ स्नान की मान्यता है। लेकिन पिछले दिनों बिहार के बेगुसराय जिले में गंगा के
तट पर सिमरिया कुंभ की शुरुआत हुई। इस तरह के कुंभ की परंपरा बिहार में कभी नहीं
रही है। यहां के लोग अमूमन कुंभ स्नान के लिए प्रयाग या हरिद्वार जाते रहे हैं।
ठीक इसी तरह की कोशिश भाजपा शासित मध्य प्रदेश में भी देखने को मिलती है जहां
मंडला में पहली बार कुंभ का आयोजन किया गया। आदिवासियों के हिंदू धर्म में
धर्मांतरण की कोशिश के लिए संघ द्वारा आयोजित मंडला कुंभ को राज्य की भाजपा सरकार
ने प्रायोजित किया। बदलाव की एक दूसरी घटना भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री
सुशील कुमार मोदी द्वारा पटना में गंगातट पर पहली बार गंगा आरती के रूप में घटित
हुई। गंगा आरती पहले काशी और हरिद्वार में होती रही है। लेकिन पटना में बकायदे
राज्य के पयर्टन विभाग ने इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया। अभी हाल ही में राज्य
सरकार ने कम्बोडिया में हिंदू के सबसे विशाल मंदिर की तरह का एक नया मंदिर बनाने
का फैसला किया है। इसके लिए सैकड़ों एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है। आर्थिक विकास
से अलग ये घटनाएं कुछ नए तरह के सामाजिक बदलावों की ओर इशारा करती हैं। विकास की
आड़ में इन घटनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है। जबकि ये घटनाएं बिहार
में संघ और हिंदुत्ववादी ताकतों की समाज के निचले स्तर पर घुसपैठ की कोशिशों की
तरफ इशारा करती हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों में बिहार में नीतिश कुमार की
पार्टी जनता दल यूनाइटेड से कहीं ज्यादा फायदा उसकी सहयोगी भाजपा को मिला। भाजपा
ने न केवल अपनी सीटें बढ़ाई बल्कि वोटों के प्रतिशत में भी इजाफा किया। नतीजा
बिहार में इस नए तरह के बदलाव के रूप में देखा जा सकता है। एक दशक पहले तक उत्तर
प्रदेश की तरह बिहार में भी भाजपा हाशिये पर चली गई थी। रा”ट्रीय स्वंय सेवक
संघ का नामो निशान खत्म हो रहा था। बिहार प्रगतिशील और आंदोलनकारी शक्तियों की
जन्मस्थली बन गया था। लेकिन नीतिश के रूप में वहां की सामंतवादी और सांप्रदायिक
ताकतें फिर एक बार उत्साह के साथ बिहार में पैर पसार रही हैं। नीतिश कुमार इन
ताकतों को सह दे रहे हैं और मीडिया को खरीद कर विकास के नाम पर इसको ढकने की भी कोशिश
में भी जुटे हैं।
जिस बरमेसर मुखिया की हत्या पर इतना बवाल मचा हुआ है, दरअसल उसे जेल से
बाहर निकालने में नीतिश की मौन सहमति थी। नीतिश कुमार ने अपनी सरकार बनते ही बथानी
टोला और रणवीर सेना के राजनीतिक गठजोड़ की जांच के लिए गठित अमीर दास आयोग को भंग
कर दिया। दरअसल रणवीर सेना को राजनीतिक और आर्थिक संरक्षण देने वाली बिहार की कई
राजनीतिक पार्टियों के नेता इस जांच के दायरे में आ रहे थे। इसमें बिहार के मौजूदा
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी,
भाजपा
नेता सीपी ठाकुर,
जयदू
प्रवक्ता शिवानंद तिवारी सहित 42 नेताओं के नाम शामिल
थे, जो बरमेसर और उसकी
निजी सेना को मदद पहुंचाते रहे हैं। अब हाईकोर्ट की मदद से भी बथानी टोला के
हत्यारों को बचाने की कवायद जारी है। बथानी टोला नरसंहार मामले में आरोपी बरमेसर
मुखिया को भोजपुर की पुलिस ने कोर्ट में फरार बताया जबकि वह उस समय आरा की जेल में
बंद था। ऐसे ही बथानी टोला के मामले में पटना हाईकोर्ट ने जिस तरह का फैसला सुनाया
है वो अपने आप में अप्रत्याशित है। जस्टिस नवनीत प्रसाद और जस्टिस अश्विनी कुमार
सिंह की कोर्ट ने फैसले में कहा कि हत्या के दौरान बच गए लोग गवाह हो ही नहीं
सकते। मतलब की च’मदीद गवाह मरने वाला
ही हो सकता है।
नए और बदलते बिहार में एक बार फिर से न केवल दलितों-पिछड़ों
को हाशिये पर डालने की को’िाश की जा रही है
बल्कि सांप्रदायिक आधार पर भी बंटवारें की कोशिशों जारी हैं। फारबिसगंज में जमीन
के सवाल पर मासूम बच्चों सहित मुस्लिमों पर गोली चलाने की घटना को एक साल बीत गए
हैं लेकिन इस मामले में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सरकारी अत्याचारों के
खिलाफ आवाज उठाने वाली ताकतों को पुलिस और लाठी के बल पर दबा दिया जा रहा है। नीतिश
के इस नए बिहार में विकास के नाम पर जमीनों को मनमाने तरीके से निजी हाथों में
सौंपा जा रहा है। उस पर सवाल उठाने वाले को विकास विरोधी करार कर किनारे लगा दिया
जा रहा है।
दरअसल, मौजूदा पूंजीवादी विकास के यह दौर अपने साथ न केवल असमानता
लिए हुए है, बल्कि भारत जैसे
बहुविविधता वाले राज्य में यह स्थानीय भेदभाव और बंटवारे के तरीको को भी तेजी से उभार
रहा है। मसलन केंद्रीय सांख्यिकी आयोग ने एक बार फिर से बिहार को विकास के मामले
में अव्वल करार दिया है,
लेकिन
दूसरी तरफ बिहार का सामाजिक परिस्थितियां किस तरह से किस करवट बदल रही हैं इसे
पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जा रहा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे की नरसंहारों के
बाद बहुमत से जीत कर आए नरेंद्र मोदी ने गुजरात में विकास का रास्ता चुना था। समाज
को टुकड़ों-टुकड़ों में बांटा जा रहा है। लेकिन विकास के आंकड़ों में सामाजिक रूप
से बिखरते ये राज्य सबसे उपर पहुंच जा रहे हैं।
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