चुनाव जितने की भाजपाई राजनीति


प्रफुल्ल बिदवई
जम्मू जल रहा है। पिछले सात हफ्तों से यह क्षेत्र, जिसमें 30 लाख लोग बसते हैं बेहद कट्टरपंथी, साफतौर पर साम्प्रदायिक और निष्ठुर हिंसा से भरपूर अशांति का गवाह रहा है। यह अशांति श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड को 100 एकड़ भूमि हस्तांतरित किए जाने से संबंधित सरकारी आदेश के रद्द किए जाने के परिणाम स्वरूप फूट पड़ी थी। इस अशांति ने जम्मू को कश्मीर के डोगरों को अन्य जातीय समूहों के विरुध्द और हिंदुओं को मुसलमानों के विरुध्द इस तरीके से ला खड़ा किया है, जिसकी संभावना पहले कभी नहींदिखाई दी थी।

इस अशांति ने बहुत ही गंदा राजनीतिक रूप धारण कर लिया है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इसका इस्तेमाल बहुत ही विद्वेषपूर्ण ढंग से कर रही है। उसके समर्थकों ने जम्मू-कश्मीर पर आंशिक नाकाबंदी शुरू कर दी। जिसकी वजह से जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग कई हफ्तों तक बंद रहा। इसके परिणाम स्वरूप हर किस्म के सामान का लाना ले जाना बंद हो गया और जनता को अकथनीय कष्ट उठाने पड़े।जम्मू में असहिष्णुता के विस्फोट का सीधा असर आइने में अक्स की तरह कश्मीरवादी में देखने को मिला, जहां मुख्यधारा की पार्टियों ने अलगाववादियों के साथ मिलकर मुजफ्फराबाद की तरफ मार्च करना शुरू कर दिया। इस मार्च का जाहिराना तौर पर उद्देश्य था, नष्ट होने वाले फल को पाकिस्तानी कश्मीर में बेचकर नाकाबंदी को तोड़ना। इस मार्च को रोकने के लिए पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में पांच लोग मारे गए। एक साथ चल रहे दो अशांति आंदोलन से जम्मू-कश्मीर की एकता और उसके बहुलवादी, बहुसंस्कृतिक और बहुधार्मिक स्वरूप के लिए एक अभूतपूर्व खतरा पैदा हो गया है। दो महीने से भी कम अवधि में भाजपा जम्मू-कश्मीर के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भावनात्मक जातीय-धार्मिक और राजनीतिक दरार पैदा करने में कामयाब हो गई है। ऐसा काम पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर जिहादी अलगाववादी आजादी आंदोलन फूट पड़ने के बाद पिछले लगभग 20 वर्षो में भी नहीं कर पाए थे।

दोनों आंदोलन अपने-अपने क्षेत्र में जोर पकड़ते चले गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर का ध्रुवीकरण हो गया है। जैसा कि सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि इससे हुरियत और हिंदुत्व ताकतें, दोनों ही मजबूत हुई हैं। केंद्र तो बहुत देर तक इंतजार करता रहा और उसने समस्या को और भी उग्र रूप लेने का मौका दे दिया। वह देश के कानून को वहां लागू करके जम्मू-श्रीनगर राज्य मार्ग को खुलवाने में नाकाम रही। 18 सदस्यों वाली सर्वदलीय समिति का गठन करके उसने इतनी देर से इस स्थिति को शांत करने की जो कोशिश की है, उससे कुछ बात बन नहीं पाई। केंद्र ने श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड की नाजायज मांग को मानते हुए तीन समिति सदस्यों को-जो कि तीनों ही वादी से थे-बैठक में शामिल नहींकिया। बोर्ड द्वारा अपनी मांग का कारण यह बताया गया कि ये तीनों सदस्य समस्या का हिस्सा थे, न कि समाधान के। (हालांकि समाधान ठूंढने के लिए बातचीत उन्हींसे ही की जानी चाहिए जो समस्याएं पैदा करते हैं।) लेकिन उससे भी कोई काम नहींबना। श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड, जो कि 28 समूहों का तंत्र है, पूरी तरह से संघ परिवार का ही उद्यम है। उसके तीन शीर्ष नेताओं-संयोजक लीलाकरण शर्मा, ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) सुचेत सिंह और तिलक राज शर्मा- की पक्की आरएसएस की पृष्ठ भूमि है और जम्मू कश्मीर नेशनल फ्रंट के साथ उनके निकट संबंध हैं, जिसकी यह मांग है कि राज्य के तीन हिस्से किए जाएं-जिनमें से जम्मू और कश्मीर को अलग-अलग राज्य बना दिया जाए और लद्दाख को संघ शासित क्षेत्र का दर्जा दिया जाए। इस मांग का तर्काधार है धार्मिक पहचान, जो घृणास्पद रूप से सामुदायिक तर्काधार है।यह समझना मुश्किल है कि धार्मिक आधार पर जम्मूृ-कश्मीर का बटवारा कश्मीर वादी को भारत से अलग करने का नुस्खा है। इससे दो अलग-अलग पहचानें कायम हो जाएंगी, जिनमें एक दूसरे के प्रति कठोरता पैदा होती चली जाएगी और अंतत: एक कभी न मिटाई जा सकने वाली हकीकत बन जाएगी। और ये दो पहचानें होंगी-मुस्लिम कश्मीर और हिंदू जम्मू। वादी में मौजूद सैयद अली शाह जैसे पाकिस्तानी परस्त अलगाववादियों जो कि कश्मीर के लिए एक बहुलवादी, धर्मनिरपेक्ष गैर धार्मिक पहचान के खिलाफ है, के मकसद को इससे बेहतर कोई मदद हासिल नहींहो सकती। जम्मू-कश्मीर को तीन हिस्सों में बांटने की किसी भी मांग से पाकिस्तानी कट्टरपंथी तत्वों को बैठे बिठाए एक मुद्दा हाथ लग जाएगा और पाकिस्तान और भारत के बीच सरहदों को फिर से तय किए बगैर कश्मीर समस्या के समाधान के लिए दोनों देशों के बीच चल रही अनौपचारिक बातचीत से जितनी भी अब तक प्रगति हो पाई है, उस पर सारा पानी फिर जाएगा। ये कट्टरपंथी तत्व 'बंटवारे के अधूरे मुद्दों' के हिस्से के तौर पर कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाए जाने के रुढ़िवादी परिप्रेक्ष्य को अपनाते हुए अपना पुराना राग अलापने लगेंगे। भाजपा ने इतना खतरनाक रास्ता क्यों अपनाया है? इसका एक ही जवाब है। वह अपनी कमजोर पड़ती हुई संभावनाओं में सुधार लाने के लिए कोई भी ऐसा मुद्दा हथियाने के लिए दुस्साहस पर उतर आई है जिस पर उसे कुछ समर्थन मिल सके। यही कारण है कि उसने अमरनाथ मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन करने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं, भाजपा से इस बात से भी इनकार करती है कि जम्मू-कश्मीर में आर्थिक नाकाबंदी हुई है। पार्टी के महासचिव अरुण जेटली ने इसे एक 'मिथक' करार दिया है और उनका तो यहां तक कहना है कि जम्मू में चल रहा आंदोलन पूर्णत: शांतिपूर्ण है। जब कि हकीकत यह है कि जम्मू के लड़ाकू प्रदर्शनकारियों ने जो अब देखने में और अपनी रणनीति में 2002 में गुजरात के स्वसैनिकों जैसे लगते हैं। सरकार के अनुसार जिसे किसी भी आधार पर जम्मू विरोधी नहींकहा जा सकता, अमरनाथ मुद्दे को लेकर 10513 विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, जिनमें हिंसा की 359 गंभीर घटनाएं घट चुकी हैं। इन घटनाओं में 28 सरकारी इमारतों, 15 पुलिस वाहनों और 118 निजी वाहनों को क्षति पहुंचाई गई है। सांप्रदायिक हिंसा के 80 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 20 व्यक्ति घायल हुए 72 गाुरघरों को जला दिया गया, 22 वाहन क्षतिग्रस्त हुए और जरूरी सामान ले जा रहे कई ट्रकों को लूट लिया गया। इस हिंसापूर्ण आंदोलन की योजना तैयार करने और उसे अमली जामा पहनाने में भाजपा का जबरदस्त हाथ रहा है। उसके नेता अपने मूल तत्वों पर फिर से लौट आए हैं और वे हैं अपने प्रकृत रूप में हिंदुवादी तत्व, जिनसे वे भली भांति परिचित हैं और जो उन्हें बहुत सुहाते है। भाजपा निराशा के कारण इतने दुस्साहस पर क्यों उतर आई है? अभी एक ही महीना पहले कई राज्य विधानसभा चुनावी जीतों के बाद उसने खुद को उस ढंग से पेश किया मानों उसको यह पूरा विश्वास हो कि अगले आम चुनाव में जीत उसकी ही होगी। यहां तक कि उसने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करनी शुरू कर दी जिससे कि वे अपने चुनावी प्रचार की योजना तैयार कर सकें। लेकिन विश्वासमत के दौरान भाजपा की इस ख्याली उड़ान में जबरदस्त रुकावट पड़ गई। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद विजयी बनकर सामने आए और अपने स्वभाव के विपरीत आक्रमक डॉ। मनमोहन सिंह को 'भारत का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री' करार नहीं दिया जा सकता था। विश्वासमत में भाजपा की छवि धूमिल होकर सामने आई। व्हिप की अवहेलना करने वाले सबसे ज्यादा सांसद भाजपा के ही थे। पैसे के बदले सवाल घोटाले, मानव व्यापार कांड और हालिया अनुशासहीनताओं के कारण भाजपा ने अपनी मूल 137 लोकसभा सीटों में से 17 सदस्य गंवा दिए हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सभी 24 सदस्य हुआ करते थे। अब वे घटकर मात्र पांच रह गए हैं।

देशबंधु से साभार

1 comment:

Unknown said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने. जम्मू नफरत की आग में जल रहा है और कश्मीर में प्यार की वारिश हो रही है. लिखते रहिये ऐसा अच्छा अच्छा.

वीजेपी ही क्यों सारे हिंदू ही बेहद कट्टरपंथी, साफतौर पर साम्प्रदायिक और निष्ठुर हिंसा से भरपूर हैं. इन्साफ और शान्ति पसंद मुसलमानों के ख़िलाफ़ जहर उगलते रहते हैं. हिम्मत देखिये इन हिन्दुओं की कि अमरनाथ जाने के लिए सुविधाओं की मांग कर रहे हैं. यह बेवकूफ यह चाहते हैं कि यात्रा के रास्ते में सुविधाएं देने के लिए कुछ जमीन श्राइन बोर्ड को दे दी जाए. कश्मीर के मुसलमान इन्हें अमरनाथ गुफा तक जाने देते हैं यही क्या कम है? पर यह हिंदू तो ऊँगली पकड़ने दो तो पूरा हाथ मांगने लगते हैं. अलगाववादी मजबूत हों तो ठीक है पर हिंदुत्व मजबूत नहीं होना चाहिए. कश्मीर में तो हैं ही, पूरे भारत में भी हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना चाहिए.