ऐसे पकडे जाते हैं 'आतंकवादी' !

मीडिया ने जिस तरह से आतंक के गढ़ के नाम से आजमगढ़ को बदनाम किया उसका असर हालात के सामान्य होने पर भी काम कर रहा है। जगह और समुदाय विशेष को निशाने पर लिए जाने की एक घटना सामने आयी है,जिसने चिंता की लकीरों को और गहरा कर दिया है। तारीख 24-10-08.... शाम के 6 बजे आजमगढ़ के शाहपुर स्टेशन से राशिद और असफर जमाल नाम के दो लड़के दिल्ली के लिए निकलते हैं। ये दोनों लड़के कैफियत ट्रेन की एस-2 बोगी सीट नंबर 41 और 44 में अपना रिजर्वेशन कराए होते हैं। लखनऊ पहुंचने पर तीन लोग बोगी में आते हैं और इनसे सीट खाली करने के लिए कहते हैं। जवाब सवाल होते हैं तो पता चलता कि बाद में आए लोग सीट 42 खाली कराना चाहते हैं। जिसपर ये दोनों बैठे ही नहीं होते हैं। बाद में आए लोग फोन पर किसी आदमी से बात कर गाड़ी,सीट और अपने पहुंचने की जानकारी लगातार दे रहे होते हैं। पूछताछ के दौरान राशिद के साथ वाला लड़का घबराकर अपना नाम बता देता है। फिर क्या था बाद में चढ़े लोगों ने मोबाईल के कैमरे से एक साथ कई फोटो खींच डाले। इसमें राशिद की ज्यादा और असफर जमाल के कम। बैग की तलाशी लेते हैं। मोबाइल फोन को लेकर पड़ताल करते हैं और मतदाता पहचान पत्र की फोटो खींचते हुए चले गए। इस दौरान घर का पता,मोबाइल नम्बर तक की जानकारी ले लेते हैं। चूंकि इस पूरे घटना क्रम से दोनों लड़के काफी घबरा जाते है इसलिए आगे का सफर नहीं करना चाहते और लखनऊ में उतरकर जाने लगे। इसके वाद वही लोग फिर आ गए और हाथ पकड़कर धमकाते हुए वापस ट्रेन में चढ़ा देते हैं। ट्रेन स्टेशन छोड़ रही होती है,इसलिए लखनऊ पर इन्हें जनरल बोगी में चढ़ना पढ़ता है,हालांकि दोनों लड़के उन्नाव अपनी बर्थ पर वापस पहुंच जाते हैं। डर और आशंका से दोनों लड़के कानपुर में उतर गए हैं। फिलहाल अभी तक दोनों लड़के कानपुर में ही हैं। हालांकि मीडिया के सामने मामला आ चुका है। दैनिक जागरण (दैनिक जागरण पेज नंबर 7 और कैफियत में आजमगढ़ के दो युवकों से पूछताछ...चारबाग स्टेशन पर स्पेशल फोर्से के 6 लोगों ने तलाशी और पूछताछ की....कानपुर संवाददाता) ने इसे खबर बनाया है। इस घटना पर आजमगढ़ और समुदाय विशेष के लोगों को अपराधी के निगाह से देखे जाने का पूरमंशा सबके सामने आई है। जिस तरह से इस काम को अंजाम दिया गया है,इसे किसी शरारती तत्वों की वारदात नहीं कर सकते हैं। यह जरूर किसी प्रशिक्षित पुलिसिया संगठन का काम है। राशिद का कहना है आजमगढ़ से हम लोगों का चढ़ना तो इन लोगों को टिकट से पता चल चुका था,लेकिन नाम पूछना चौकाने वाला था। नाम सुनते ही तड़ातड़ फोटो लिए जाने ने उन्हें हिला कर रख दिया। राह चलते किसी का सिर्फ इस आधार पर तलाशी ले लेना कि उसका नाम एक खास समुदाय को इंगित करता है और वह खास जगह का रहने वाला है,किसी भी तरीके से लोकतंत्रिक समाज को मर्यादा नहीं देता है। हाल के ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए जिसमें पुलिस खास समुदाय के खिलाफ लामबंद होते दिखी है। हालिया विस्फोटों के सिलसिले में पुलिस लगातार मास्टर माइंड को पकड़ने के दावे करती और विफल होती रही है। अपनी इस विफलता की कुण्ठा को निकालने के लिए निर्दोष लोगों को निशाना बना रही है। यह महज एक घटना नहीं है,इसके पीछे सुरक्षा तंत्र का दिवालियापन सामने आता है। यह चाहे किसी सफर करने वाले को सुरक्षा देने का मुद्दा हो या फिर किसी से पूछताछ का। सिर्फ दो लोगों को पहले से आइडेंटिफाई करके पूछताछ करना और तलाती लेना स्थितियों के खतरनाक होने की सूचना देता है। जबकि उसी समय बोगी के बाकियों से कोई पूछताछ नहीं किया जाना आशंका को जन्म देने के लिए काफी है। हालांकि अभी दोनों लड़के पीयूएचआर और यंग जर्नलिस्ट एशोसिएसन की निगरानी में हैं। आगे की कानूनी कार्यवाही की तैयारी चल रही है ताकि खुफिया एंजसियों की किसी भी साजिश या गैरकानूनी कार्यवाहियों को रोका जा सके।(पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स, यंग जर्नलिस्ट एसोशिएसन की ओर राजीव यादव, शहनवाज आलम,विजय प्रताप, लक्ष्मण प्रसाद, ऋषि कुमार सिंह द्वारा जारी....)

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