विजय प्रताप
राजस्थान लोकसभा चुनाव में इस बार पूर्व मुख्यमंत्री और झालावाड़ लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुकी महारानी वसंुधरा राजे को अपनी परंपरागत सीट बचाए रख पाना मुश्किल हो रहा है। इस सीट से महारानी के पुत्र दुष्यंत चुनाव लड़ रहे हैं। दुष्यंत पिछली लोकसभा में भी अपनी मां की परंपरागत सीट से ही चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे, लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ बदली हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जबर्दस्त हार का मुंह देखना पड़ा था। इस पृष्टभूमि में हो रहे चुनाव में महारानी खुद दिन रात एक कर किसी भी कीमत पर यह सीट बचाए रखना चाहती हैं। उनकी परेशानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है वह अपने बेटे को चुनाव जीताने के लिए पुराने दुश्मनों से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। पिछले दिनों महारानी ने भाजपा के बागी गुर्जर नेता प्रहलाद गुंजल को वापस भाजपा में लाकर एक बड़ी सफलता प्राप्त की। हांलाकि वापसी से पहले गुंजल का राजनैतिक सफर भाजपा विरोध पर ही टिका था। गुर्जर आरक्षण आंदोलन के समय गुर्जरों पर गोली चलाए जाने की घटना से नाराज गुजंल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जिसके बाद मुख्यमंत्री वसंुधरा राजे ने उन्हें ज्यादा दिन बर्दास्त करने की बजाए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। उसके बाद से प्रहलाद गुंजल अपनी हर सभा में भाजपा के लिए आग उगलते देखे गए। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा को हराने के लिए लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का गठन कर कई नेताओं को चुनाव लड़ाया था। जीत एक भी सीट पर नहीं मिली लेकिन भाजपा को कई सीटों पर जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया। लोकसभा चुनावों में पहले उन्हें कांग्रेस ने कोटा लोकसभा सीट स से टिकट देने का भरोसा दिलाया। लेकिन प्रतिद्वंदी प्रत्याशी को देखकर कांग्रेस को अपना निर्णय बदलना पड़ा और टिकट मिला कोटा के पूर्व महाराज इज्यराज सिंह को। हर तरफ से ठुकराए जाने के बाद भी गुंजल ने हार नहीं मानी और तीसरे मोर्चे से भी टिकट की संभावनाएं तलाश की। लेकिन इससे पहले ही महारानी वसंुधरा राजे ने सही समय भांपकर उनके घावों पर मरहम लगाने उनके घर पहुंच गई। और दो साल से चल रहे गुंजल के इस ड्ामे का अंत ‘‘राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता’’ जुमले के साथ हुआ।आखिर महारानी को इतना पसीना क्यों बहाना पड़ रहा है, जबकि उनके बेटे के सामने एक कांग्रेस ने एक नौसिखिया नेता उर्मिला जैन को मैदान में उतारा है। दरअसल वसुंधरा राजे की तरह जैन के पीछे उनके पति प्रमोद जैन भाया की इज्जत दांव पर लगी है। यहां चुनाव जनता के मुद्दों पर नहीं बल्कि इज्जत और विरासत बचाने के नाम पर लड़ा जा रहा है। ऐसे में वसुंधरा की मुश्किल के कुछ ठोस कारण भी हैं। एक तो पिछले पांच सालों में यहां से सांसद दुष्यंत सिंह ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया जिसे लेकर वह जनता के बीच जा सके। इस संबंध मंे दुष्यंत सिंह का कहना है कि केन्द्र में कांग्रेस सरकार ने दुर्भावना के चलते कोई ठोस विकास कार्य नहीं कराने दिया। लेकिन राज्य में भाजपा की सरकार के होते हुए भी यहां किसानों व आदिवासियों की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई है। झालावाड़ व बारां के बड़े हिस्से में अफीम की खेती होती रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से नारकोटिक्स ब्यूरो ने मनमाने तरीके से किसानों के पट्टे निरस्त किए जिसके चलते हजारों किसानों को बेरोजगार होना पड़ा। इसे लेकर किसानों में एक स्वाभाविक रोष बना हुआ है। कहने को तो यह जिला राज्य की मुख्यमंत्री का क्षेत्र रहा है लेकिन जिले के सहरिया आदिवासियों के गांवों में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंच सकी है। इसी के चलते विधानसभा चुनावों में भी सहरियाओं ने भाजपा को हराकर अपनी समाज की निर्मला सहरिया को विधायक चुना। इन सब का लाभ कांग्रेस को ही मिलने जा रहा है। दूसरी तरफ उर्मिला जैन के पति प्रमोद जैन भाया ने पिछले विधानसभा चुनावों में बारां जिले की चार विधानसभा सीटों पर व झालावाड़ की दो सीटों पर अपने पसंद के उम्मीदवारों को जीत दिला कर भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेसी नेताओं के भी होश उड़ा दिए हैं। भाया की इस ‘ाानदार जीत पर ही उन्हें प्रदेश सरकार में सार्वजनिक निर्माण मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभाग से नवाजा गया। लोकसभा चुनावों में भी झालावाड़-बारां सीट से भाया की पत्नी के अलावा कोई योग्य उम्मीदवार नजर नहीं आया। कांग्रेस के भी कई नेता भाया के बढ़ते कद से असहज महसूस कर रहे हैं। वसंुधरा राजे की असल परेशानी भी हाड़ोती के इन दो जिलों में भाया का छाया यह जलवा है। परिसीमन से झालावाड़ लोकसभा सीट में आया बदलाव, महारानी की मुश्किले और बढ़ा दिया है। परिसीमन के बाद बारां जिले का बड़ा हिस्सा झालावाड़ लोकसभा सीट के साथ जुड़ गया है। इसका नाम भी बदल कर झालावाड़-बारां कर दिया गया है। ऐसे में इस पूरे लोकसभा सीट की आठ विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है। इस लिहाज से झालावाड़ से कांग्रेस का दावा काफी मजबूत दिख रहा था। लेकिन अंत समय में वसुंधरा ने गुंजल का समर्थन हासिल कर अपने लंबे राजनैतिक अनुभव का परिचय दिया है। इस सीट पर गुर्जर मतदाताओं की संख्या एक लाख से भी ज्यादा है। और पिछले लोकसभा चुनावों में इसमें से ज्यादातर वोट कांग्रेस को मिले थे, क्योंकि कांग्रेस ने यहां से गुर्जर समाज के ही संजय गुर्जर को टिकट दिया था। इस बार उनका टिकट काटने से भी गुर्जरों में कांग्रेस को लेकर कुछ नाराजगी पहले से है। अगर यह सभी कारण मिलकर गुर्जर मतदाताओं को भाजपा की ओर मोड़ देते हैं तो परिस्थितियां कुछ बदल सकती हैं नही ंतो यहां से वसुंधरा राजे की विरासत ढहना तय माना जा रहा है।
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