ग़ज़ा में युद्ध अपराध हुए: एमनेस्टी


अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि इसराइल ने अपने ग़ज़ा अभियान के दौरान युद्ध अपराध किए.
ये अभियान 27 दिसंबर 2008 से लेकर 17 जनवरी 2009 तक चला था. इसमें लगभग 1400 फ़लस्तीनी और 13 इसराइली मारे गए थे.

रिपोर्ट में सैन्य अभियान के तीसरे हफ़्ते के बारे में संस्था ने कहा है कि अपनी तीव्रता में इसराइल के हमले अभूतपूर्व थे.

ये भी कहा गया है कि हमले के दौरान तोपों-टैंकों से घनी आबादी वाले इलाक़ों में जो गोलाबारी हुई वह सटीक नहीं थी.

उधर इसराइल ने ज़ोर देकर कहा है कि उसने केवल उन्हीं इलाक़ो को निशाना बनाया जहाँ चरमपंथी सक्रिय थे. उसका ये भी कहना है कि उसने अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं किया है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास भी युद्ध अपराध करने का दौषी है क्योंकि उसने दक्षिणी इसराइल के रिहायशी इलाक़ों में रॉकेट दागे और गोलीबारी की थी.

'मानव ढाल नहीं बनाया'
आजकल संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार टीम ग़ज़ा में मानवाधिकारों के हनन और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के उल्लंघन के आरोपों की जाँच करते हुए वहाँ सार्वजनिक तौर पर लोगों की शिकायतें सुन रही है.

एमनेस्टी के अनुसार 27 दिसंबर 2008 और 17 जनवरी 2009 के बीच 1400 फ़लस्तीनी मारे गए, जो फ़लस्तीनी आंकड़ों से भी मेल खाता है.

इन 1400 मृतक फ़लस्तीनियों में 300 बच्चों और 115 महिलाओं समेत 900 आम नागरिक थे.

इस साल मार्च में इसराइली सेना ने कहा था कि कुल 1166 फ़लस्तीनी मारे गए जिनमें से 295 आम नागरिक थे जिनका इस लड़ाई से कोई संबंध नहीं था.

एमनेस्टी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, जैसे कि छतों पर खेल रहे बच्चों और चिकित्सा कार्यों में जुटे मेडिकल कर्मचारियों को सटीक तरीके से लक्ष्य तक पहुँचने वाली मिसाइलों का निशाना क्यों बनाया गया.

एमनेस्टी की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले है कि फ़लस्तीनियों ने आम नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया.

'ग़ज़ा के लोगों की निराश ज़िंदगी'


अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति ने ग़ज़ा में रह रहे लगभग पाँच लाख फ़लस्तीनियों को 'निराशा में फँसे' हुए लोग बताया है.
मंगलवार को जारी हो रही रेड क्रॉस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी सबसे बड़ी वजह इसराइली घेराबंदी है.

ये रिपोर्ट ग़ज़ा में इसराइली सैनिक कार्रवाई के छह महीने बाद आई है. उस कार्रवाई में लगभग 1100 फ़लस्तीनियों की मौत हो गई थी.

उस हमले को लेकर इसराइल का कहना था कि उसका उद्देश्य दक्षिणी इसराइल पर फ़लस्तीनी चरमपंथियों के रॉकेट हमले रोकना था.

रेड क्रॉस के मुताबिक़ ग़ज़ा के लोग उस हमले की वजह से बिखरी ज़िंदगी को समेट नहीं पा रहे हैं और लगातार निराशा में घिरते जा रहे हैं.

इसराइली हमलों में जो क्षेत्र नष्ट हुए हैं उनके पुनर्निर्माण के लिए सीमेंट या स्टील उपलब्ध ही नहीं है.
गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों को ज़रूरी इलाज मुहैया नहीं हो पा रहा है.

पानी की आपूर्ति कभी रहती है कभी नहीं, साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था तो लगभग ध्वस्त होने के कगार पर है.

रेड क्रॉस ने वहाँ ग़रीबी के स्तर को 'काफ़ी गंभीर' बताया है. वहाँ बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

रेड क्रॉस के अनुसार ये सब ग़ज़ा की इसराइली घेराबंदी से जुड़े हुए मसले हैं.

ग़ज़ा पर दो साल पहले हमास ने नियंत्रण कर लिया था और उसके बाद से ही इसराइल ने उस इलाक़े की घेराबंदी कर रखी है.

इस रिपोर्ट के बाद इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यमिन नेतन्याहू के प्रवक्ता ने बीबीसी से कहा कि ग़ज़ा में आम लोग जिन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं उसके लिए मुख्य रूप से हमास ज़िम्मेदार है.

साथ ही उनके मुताबिक़ ये बात विश्वास के लायक़ नहीं है कि अगर उस इलाक़े के लोगों को निर्माण कार्य के लिए चीज़ें दी जाएँगी तो वो सैनिक मशीनें बनाने के लिए हमास के पास नहीं पहुँच जाएँगी.


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