भारत सरकार शर्म करो ! विनायक सेन को रिहा करो !!



१४ मई को डॉक्टर विनायक सेन की गिरफ्तारी के एक साल पूरे हो गए. डॉ सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के छतीसगढ़ महासचिव हैं. अभी कुछ दिन पहले ही पीयूसीएल के छतीसगढ़ अद्ध्क्ष टी. जी अजय को भी पुलिस ने माओवादियों का सहयोगी बताते हुए गिरफ्तार कर लिया. पिछले साल इसी दिन डॉ सेन को सरकार ने मओवादिओं का साथ देने के आरोप में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा कानून २००५ और गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम १९६७ के तहत गिरफ्तार कर लिया था. डॉ सेन को छतीसगढ़ में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता के रूप में जाना जाता है. पुलिस और कोर्ट एक स्वर में यही कहती हैं - सेन नारायण सान्याल जैसे माओवादी नेता से जेल में क्यों मिलाने जाते हैं? अब इसका क्या जवाब दिया जा सकता है और वह भी उस कोर्ट को जो सब कुछ जानते हुए भी सरकार के इशारों पर चलने को मजबूर है. नारायण सान्याल एक वृद्ध माओवादी नेता हैं. डॉ सेन एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते जेल अधिनियम के अनुसार उनसे मिलते रहे हैं. यह कहीं से भी गैर कानूनी नहीं है. लेकिन कोर्ट कोई भी बात सुनाने को तैयार नहीं हैं और बिना किसी सबूत के डॉ सेन को पिछले एक सालों से जमानत भी नहीं दे रही हैं.


डॉ सेन की रिहाई को लेकर अब दुनिया भर से प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गयीं हैं. दुनिया भर के २२ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकारों ने पत्र लिख कर भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से विनायक सेन को रिहा कराने की गुहार लगे हैं. इस बीच डॉ सेन को अमेरिका का प्रतिष्टित 'जोनाथन मैन' पुरस्कार भी दिए जाने की घोषणा की जा चुकी हैं. यह पुरस्कार उन्हें २९ मई को अमेरिका मैं दिया जाना हैं . इस पुरस्कार को लेने के लिए अमेरिका जाने की अनुमति देने की भी मांग इन साहित्यकारों ने उठाई हैं. लेकिन सरकार अभी भी बेशर्मी से चुप्पी साधे हुए हैं. क्या अब भी भारत सरकार को शर्म आएगी या नही ?

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