फिर मास्टर माइंड, फिर आजमगढ़...

दिल्ली एक बार फिर धमाकों से दहल गया. 21 लोगों की जान गई और जाने कितने हजार लोगों के सपनों का कत्ल हो गया. अब फिर से इन धमाकों के 'मास्टर माइन्ड' की तलाश होगी और हफ्ते दो हफ्ते बाद उसकी गिरफ्तारी का दावा. फिर कुछ दिनों बाद कोई नई वारदात. हर बार सवाल यही उठता है कि आखिर खानापूर्ति के लिए कथित मास्टर माइंडों की गिरफ्तारी कब तक होती रहेगी और असली अपराधी कब तक गिरफ्त से बाहर रहेंगे?आजमगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो दिल्ली पर नज़र लगाए हुए पूछ रहे हैं- अबकी मास्टर माइंड कौन ?
अब अबू बशर को ही लें।“ बाबू कुछ गुण्डा बशर के घरे से अगवा कइ लेनन तब हम पुलिस के इत्तेला कइली त पुलिस हम लोगन से कहलस की आपो लोग खोजिए अउर हमों लोग खोजत हई मिल जाए। पर एक दिन बाद उहय पुलिस साम के बेला आइके हमरे घरे में जबरदस्ती घुसके पूरे घर के तहस नहस कइ दिहिस।” आजमगढ़ के गाँव बीनापारा, सरायमीर के निवासी अबु बकर बेहद परेशान स्वर में जब अपनी दास्तान सुनाते हैं तो उनकी बात पर यकिन करना मुश्किल होता है। असल में यकिन तो कोई नहीं करना चाहता. आजमगढ़ की पुलिस भी नहीं, लखनऊ की पुलिस भी नहीं और अहमदाबाद की पुलिस तो कतई नहीं. अबु बकर बताते हैं कि जिस पुलिस के पास उन्होंने अपने बेटे के अपहरण की सूचना दी, वही पुलिस एक दिन बाद हमारे घर पर आ कर हमें आतंकवादी ठहरा गई.
लेकिन जब आप अबु बकर की बातों के तार जोड़ने लगें तो आपके लिए अबु की बात पर यकिन नहीं करने का कोई कारण नजर नहीं आएगा. अबु यानी अबु बकर और अब पुलिस रिकार्ड में अहमदाबाद बम धमाकों के 'मास्टर माइंड' मुफ्ती अबुल बशर कासमी इस्लाही के पिता अबु बकर !अबु बकर बताते हैं कि जिस पुलिस के पास उन्होंने अपने बेटे के अपहरण की सूचना दी, वही पुलिस एक दिन बाद हमारे घर पर आ कर हमें आतंकवादी ठहरा गई. हमारे घर की तलाशी ले कर बशर की पत्नी के गहने और थोड़े से पैसे उठा कर ले गई और हमसे सादे कागज पर दस्तखत भी करवा लिया. यह तो हमें बाद में पता चला कि हमारे बेटे को पुलिस ने अहमदाबाद ब्लास्ट का मास्टर माइंड बता कर गिरफ्तार किया है.अहमदाबाद बम धमाकों के आरोपी 'मास्टर माइंड' मुफ्ती अबुल बशर कासमी इस्लाही के पिता अबु बकर ये बताते हुए घर के हालात की तरफ इशारा करते हैं- “ इस टूटे-फूटे जर्जर घर में सात बेटों-बेटियों और अपाहिज पत्नी के साथ रहता हूँ. डेढ़ साल से ब्रेन हैमरेज के कारण अब हमसे कुछ भी नहीं हो पाता, एक बशर के सहारे पूरा घर था.”
बशर की सात साल की बहन साईना बताती है कि घर में चार दिन से चूल्हा नहीं जला और न खाने के लिए कुछ है. पड़ोसियों के घर से जो कुछ आता है, उसी से गुजारा होता है।
आजमगढ़ बनाम आतंकवादीगढ़
राहुल सांकृत्यायन, कैफी आजमी, शिब्ली नोमानी और हरिऔध जैसे लोगों की धरती आजमगढ़ कथित आतंकवादियों की स्थली के रुप में अक्सर चर्चा में बना रहता है. देश के किसी भी हिस्से में कोई आतंकवादी घटना होती है तो सबसे पहले उसके तार आजमगढ़ से ही जुड़ते हैं और शुरु होता है तरह-तरह के दावों का दौर. लेकिन महीने दो महीने के भीतर ये सारे दावे और सारे तार हकिकत में तार-तार हो जाते हैं.पिछले साल उत्तर प्रदेश की कचहरियों में हुए बम धमाकों के आरोप में इसी जिले से तारिक कासमी को एसटीएफ ने 12 दिसम्बर को पकड़ा और 10 दिनों तक हिरासत में रखने के बाद दावा किया कि उसे 22 दिसम्बर को बाराबंकी से गिरफ्तार किया गया है. लेकिन यह दावा कुछ ही दिनों में गलत साबित हो गया.अबुल बशर को भी उसके गाँव बीनापारा, सरायमीर से 14 अगस्त को साढ़े ग्यारह बजे पुलिसवालों ने उठाया और 16 अगस्त को लखनऊ चारबाग इलाके से गिरफ्तार करने का दावा किया है. ये और बात है कि 15 अगस्त को विभिन्न अखबारों में छपी खबरें एसटीएफ और एटीएस की इस 'बहादुराना उपलब्धि' को झूठा साबित करने के लिए काफी हैं. पुलिस ने अहमदाबाद विस्फोटो में सिमी का हाथ होने का पुख्ता प्रमाण मिलने का दावा करते हुए कहा है कि मुफ्ती अबुल बशर धमाकों का ‘मास्टर माइंड’ और सिमी का सक्रिय है. गुजरात के पुलिस महानिदेशक पीसी पांडेय के अनुसार अबुल बशर सूरत, जयपुर समेत यूपी की कचहरियों में हुए बम धमाकों की ईमेल द्वारा जिम्मेवारी लेने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन(आइएम) का राष्ट्रीय अध्यक्ष है, जो प्रतिबंधित संगठन सिमी की ही शाखा है.लेकिन आजमगढ़ क़े ही रहने वाले प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी सिमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही इस बात से पूरी तरह इंकार करते हैं. फलाही कहते हैं- “ अबुल बशर सिमी का कभी भी सदस्य नहीं रहा है और न ही सिमी ने प्रतिबंध के बाद कोई सदस्यता अभियान चलाया है.”आइएम के बारे में वे बताते हैं कि सिमी पर प्रतिबंध बरकरार रखने के लिए पिछले सात सालों में तमाम 'कागजी आतंकी तंजीमा' से सिमी का नाम जोड़ा गया है और अब आइएम भी उसी फेहरिस्त का हिस्सा है. वहीं आजमगढ़ पुलिस की मानें तो 2001 में सिमी पर प्रतिबंध के बाद 19 लोग गिरफ्तार किए गए थे औऱ तब से किसी नए व्यक्ति के सिमी का सदस्य बनने का कोई प्रमाण नहीं मिला है. पीयूसीएल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री चितरंजन सिंह सूरत में 27 जिंदा बमों के पाये जाने और उनकी चिप खराब होने वाली घटना को मोदी सरकार का ड्रामा बताते हुए कहते हैं कि जिस पीसी पाण्डेय को अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए राज्य प्रायोजित गुजरात नरसंहार में सक्रिय भूमिका निभाने के एवज में डीजीपी बनाया गया हो उनकी बात पर यकिन करने का कोई कारण नजर नहीं आता।
सिंह कहते हैं- “गुजरात के डीजीपी का साम्प्रदायिक चेहरा उजागर हो गया है और स्टिंग ऑपरेशनों ने उनकी कलई खोल दी है. जिस प्रदेश में जाहिरा शेख से लेकर सोहराबुद्दीन तक को न्याय नही मिला उस प्रदेश की पुलिस ब्रीफिंग पर पूरे हिन्दुस्तान में हुई आतंकी घटनाओं के खुलासे पर कैसे विश्वास किया जा सकता है. पुलिस को बताना चाहिए कि नवी मुम्बई से जिस अमेरिकी नागरिक केन हेवुड की आईडी से मेल किया गया था उसे क्यों भारत से बाहर जाने दिया गया और किस आधार पर एटीएस ने उसे क्लीन चिट दे दी.”विभिन्न आतंकी घटनाओं की जांच कर रहे पीयूएचआर नेता शाहनवाज आलम बताते है कि अबुल बशर प्रकरण में जावेद नाम का एक व्यक्ति मार्च 08 से ही बशर के घर आता था जो कभी बशर से मिलता था तो कभी बशर के पिता अबु बकर से और खुद को कम्प्यूटर का व्यवसायी बताता था और वह बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी से आता-जाता था. जावेद, बशर के भाई अबु जफर के बारे में पूछता था और कहता था कि जफर को कम्प्यूटर बेचना है. अबु बकर ने बताया है कि बशर को अगवा किए जाने के बाद जावेद 16 अगस्त 08 की शाम छापा मारने वाली पुलिस के साथ भी आया था.
पुलिस या...
बांस की टोकरी बनाने वाले पड़ोसी कन्हैया बताते है कि 14 अगस्त को बशर को अगवा किया गया तो अगवा करने वालों में दो व्यक्ति (पुलिसकर्मी) जो सिल्वर रंग की पैशन प्लस से थे, वे गाँव में महीनों से आया जाया करते थे और वे इस बीच बशर के बारे में पूछते थे. सवाल यही उठता है कि जब महीनों से पुलिस बशर पर निगाह रखे था तो उसने कैसे घटनाओं को अंजाम दे दिया.
आजमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दत्ता कहते हैं कि जिले से आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए किसी भी व्यक्ति पर आज तक आतंकी होने का आरोप सही नहीं पाया गया है, फिर भी आजमगढ़ को आतंकवादियों की नर्सरी के बतौर प्रचारित करने में मीडिया का अहम रोल है.
पीयूएचआर नेता कहते हैं कि पिछले दिनों मड़ियाहूँ जौनपुर से उठाये गए खालिद प्रकरण में भी आईबी ने इसी तरह छ: महीने पहले से ही खालिद को चिन्हित किया था। आतंकवाद के नाम पर की जा रही गिरफ्तारियों में देखा गया है कि कुछ मुस्लिम युवकों को आईबी पहले से ही चिन्हित करती है और घटना के बाद किसी को किसी भी घटना का मास्टर माइंड कहना बस बाकी रहता है. बीनापारा गाँव के प्रधान मो शाहिद बताते हैं कि पिता के ब्रेन हैमरेज के बाद बशर पर ही घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी. इसीलिए वह कमाने के लिए आजमगढ़ के ही अब्दुल अलीम इस्लाही के हैदराबाद स्थित मदरसे में पढ़ाने चला गया था. बशर जनवरी 08 में गया था और फरवरी 08 में वापस आ गया था क्योंकि वहाँ 1500 रूपए मिलते थे, जिससे उसका व उसके घर का गुजारा होना मुश्किल था. दूसरा पिता की देखरेख करने वाला भी घर में कोई बड़ा नहीं था. इस बीच वह गाँव के बेलाल, राजिक समेत कई बच्चों को टयूशन पढ़ाता था. अबुल बशर के चाचा रईस बताते हैं कि 14 अगस्त 08 को 11 बजे के तकरीबन दो आदमी मोटर साइकिल से आए और बशर के भाई जफर की शादी की बात करने लगे. बशर घर में मेहमानों की सूचना देकर उनसे बात करने लगा. बात करते-करते वे बशर को घर से कुछ दूर सड़क की तरह ले गए, जहाँ पहले से ही एक मारूती वैन खड़ी थी. मारूती वैन से 5-6 लोग निकले और बशर को अगवा कर लिया. अगवा करने वालों की स्कार्पियो, मारूती वैन और पैशन प्लस मोटर साइकिल पर कोई नम्बर प्लेट नहीं लगा था. इसकी सूचना हम लोगों ने थाना सरायमीर को लिखित दी. नेलोपा नेता तारिक शमीम कहते हैं कि अबुल बशर ने जिन लोगों के बच्चों को पढ़ाया और गाँव के जिन लोगों के साथ उठता बैठता था सबने हलफनामा दिया है. ऐसे में पुलिस की यह बात झूठी साबित होती है कि बशर ने बम धमाके किए. क्योंकि इस बात के सैकड़ो गवाह हैं कि 13 मई 08 के जयपुर बम धमाके हों या 25-26 जुलाई 08 के हैरदाबाद और अहमदाबाद के बम धमाके, इस दौरान बशर गाँव में ही था और अपनी अपाहिज माँ और ब्रेन हैमरेज से जूझ रहे पिता का इलाज करा रहा था.
मीडिया बनाम अफवाह
आजमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दत्ता कहते हैं कि जिले से आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए किसी भी व्यक्ति पर आज तक आतंकी होने का आरोप सही नहीं पाया गया है, फिर भी आजमगढ़ को आतंकवादियों की नर्सरी के बतौर प्रचारित करने में मीडिया का अहम रोल है. और जहाँ तक हवाला कारोबार का सवाल है तो वह जिले का ऐसा 'कुटीर उद्योग' है जिसे धर्मनिरपेक्ष भाव से हिन्दू-मुसलमान दोनों करते हैं. वे कहते हैं कि पिछले दिनों जिस तारिक कासमी को हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बताया जा रहा था. उसकी चार्ज शीट में हुजी या किसी आतंकी संगठन से उसके किसी भी जुड़ाव का कोई जिक्र नही है फिर भी मीडिया आज भी उसे हुजी का प्रदेश अध्यक्ष बता रही है और अब आजमगढ़ को आईएम का कार्यक्षेत्र बता पुलिस ने पूरे जिले में आतंक का महौल व्याप्त कर दिया है. वरिष्ठ प्रवक्ता बद्रीनाथ श्रीवास्तव कहते हैं कि जनता में दंगों के प्रति आई परिपक्व समझदारी नें दंगों की राजनीति को पीछे ढकेल दिया है. ऐसे में आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियां कर साम्प्रदायिक ताकतों के ही एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, जिसे हम आजमगढ़ में हुए पिछले उप चुनाव में साफ देख सकते है. पूरा चुनाव आतंकवाद के मुद्दे पर लड़ा गया. ऐसा आजमगढ़ में पहली बार हुआ और जनता के मूलभूत सवाल पीछे चले गए.

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