एक ऐसे समय में जब की देश में चुनावों की आहट के मद्देनज़र घृणा की फसल को खाद पानी दिया जा रहा है, की जब एक बार फ़िर बम विस्फोटों का सिलसिला शुरू हो गया है, की जब इसकी आड़ में सम्प्रदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है, की जब सत्ता और राजनितिक दल विस्फोट के बाद चिल-पों कर अपना राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं, की जब इसी समय उडीसा के आदिवासी "हिंदू वीरों" से अपने जीवन का भीख मांग रहें हैं और जब जले हुए घर में अपनों की लाश तलाश रहे हैं, की जब उडीसा के "वीरों" से सीख लेकर कर्णाटक, गुजरात व मध्यप्रदेश के वीर अपनी कला का प्रदर्शन करने को ललायित हैं और यहाँ की सरकारें इन वीरों के आगे नतमस्तक हैं, की इस बाटने के खेल को टीवी पर देख केवल आह भर रहें हैं और की जब हम सही ग़लत में फर्क नहीं कर पा रहें हैं हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
- अदम गोंडवी
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