युवा पत्रकार सौम्या विश्वनाथन का हत्यारा कौन!

आखिरी सलाम..... ऋषि कुमार सिंह

25 वर्षीय युवा पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या काफी दुखद है। यह हत्या राजधानी के सुरक्षा इंतजामों पर कई प्रश्न खड़े करती है। देश की राजधानी में ही महिलाएं सुरक्षित नहीं तो देश के सुदूर इलाकों महिलाओं की सुरक्षा की बात बेईमानी सी जान पड़ती है। महिलाओं से जुड़े अपराधों के लगातार होने के बावजूद पुलिस ने कोई खास कदम नहीं उठाए। जैसे कि खबरें आ रही हैं कि एक रिक्शा चालक ने पुलिस को फोन कर सड़क दुर्घटना की जानकारी दी थी। जबकि देर रात पुलिस की पेट्रोलिंग वैन कहां का दौरा कर रही थी। बसंत कुंज इलाके में साढ़े तीन बजे ऐसा कोई ट्रैफिक नहीं रहता। अगर जरा सी सावधानी रखी जाए हर आने जाने वाली गाड़ियों पर नजर न रखी जा सकती है। गौरतलब है कि बसंत कुंज जाने वाला रास्ता काफी सुनसान सा रहता है। दरअसल दिल्ली पुलिस इतनी लापरवाह हो चुकी है कि इस पर चाहे आतंक से सबक सीखने की जिम्मेदारी हो या महिलाओं की सुरक्षा के लिए चौकस रहने की बात,अब कोई असर नहीं पड़ता। रही दोषियों को सजा दिलाने की बात तो इस देश की पुलिस को जिस तरीके भर्ती किया जाता है और प्रशिक्षण दिया जाता है,उसके बल पर यह सिर्फ कहानियां सुनाकर झूठे मुजरिमों को पैदा कर सकती है। 1861 के मैन्युअल के आधार पर गठित भारतीय पुलिस बदलते समाज की जरूरतें पूरी नहीं कर सकती है। यही कारण है कि पुलिस से दोषी छूटते हैं और ऐसे दोषी अपने पीछे कई लोगों को वैसा ही अपराध करने के लिए प्रेरित करते हैं। पुलिस जांच के दौरान कितनी मुस्तैदी दिखाती है,दोषियों को सजा मिलने के साथ ही तय हो पाएगा। भले ही इस देश ने महिला राष्ट्रपति तो चुन लिया हो,चांद पर पहुंचने की तैयारी में हो लेकिन यह देश की अपनी आधी आबादी को सुरक्षित जीवन देने में नाकाम रहा है।पनिहारन की तरफ से अपने इस युवा पत्रकार के खोने पर शोक व्यक्त करता हूँ। और न्याय दिलाने के लिए संघर्ष का साथी बनने का भरोसा दिलाता हूँ।
सौम्या के हत्यारों को गिरफ्तार करो ! - रितेश
मित्रों,
सौम्या विश्वनाथन नहीं रहीं. ईमका के ग्रुप मेल पर कभी-कभार जूनियरों का उत्साह बढ़ाने वाले उनके मेल ही यादों के नाम पर मेरे पास हैं.
पता नहीं, किन हालातों में उनकी हत्या की गई लेकिन पुलिस की लापरवाही का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि पोस्टमार्टम से पहले तक उसे पता ही नहीं चला कि सौम्या जी को गोली मारी गई है.
जिस समाचार संगठन में वो काम करती थीं, उसने दूसरे समाचार संगठनों के साथियों को बुलाकर हत्या का सच सामने लाने की कोशिश करने की बजाय उस खबर को तब तक दबाए रखने की कोशिश की जब तक कि दूसरे चैनल ने उसे "ब्रेक" नहीं कर दिया.
सौम्या जी नहीं लौट सकतीं. लेकिन सच सामने लाने के पेशे से जुड़े लोगों के सामने वो एक सवाल तो छोड़ ही गई हैं कि अगर वो किसी कॉल सेंटर की कर्मचारी होतीं या किसी दूसरे पेशे से जुड़ी होतीं तो क्या खबरों की दुनिया उनकी हत्या को इतने हल्के से ही लेता. ये सिर्फ दुखद और सदमा नहीं है, अफसोसजनक भी है.
ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे और पुलिस को इतनी बुद्धि दे कि वो आपके हत्यारों को पकड़ सके।

1 comment:

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

इस पर पत्रकारिता के आज के परिवेश को जाने की
जिस चैनल में काम करती थी सौम्या उसकी भागीदारी रही इस सब घटनाक्रम पर...।
जानिए, चौपाल/chaupal पर रणवीर से।