सर्वजन हत्याय

औरैया से बसपा विधायक शेखर तिवारी और उनके दो समर्थकों ने कल देर रात मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन 15 जनवरी के लिए मांगी गई भारी भरकम राशि देने से इनकार करने पर लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार गुप्ता की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इसके विरोध में लोकनिर्माण विभाग के अभियंता प्रदेशव्यापी हड़ताल पर चले गए हैं। वहीं अधिशासी अभियंता की हत्या के मामले में नामजद प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के बसपा विधायक शेखर तिवारी को आज कानपुर देहात के रनिया क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उनके दो अन्य साथियों की तलाश अभी जारी है।
बसपा विधायक ने अभियंता मनोज गुप्ता को पीट-पीट कर मार डाला
इंजीनियर की हत्या के मामले में बसपा विधायक गिरफ्तार
लोनिवि के प्रदेश भर के अभियंता हड़ताल पर गएदिव्यापुर पुलिस थाने पर इंजीनियर एमके गुप्ता की पत्नी शशि गुप्ता की तरफ से दर्ज कराई गई प्राथमिकी के हवाले से बताया गया है कि कल देर रात शेखर तिवारी अपने दो साथियों मनोज त्यागी और किसी भाटिया के साथ उनके गेल विहार कॉलोनी स्थित मकान में जबरन घुस आए और उन्हें बाथरूम में बंद करने के बाद उनके पति को मारना शुरू कर दिया। विधायक तिवारी और उनके साथी गुप्ता को गम्भीर रूप से घायल अवस्था में दिव्यापुर पुलिस थाने पर यह कहते हुए छोड़ गए कि यह आदमी सड़क पर गुंडई कर रहा था और इसे गिरफ्तार कर लिया जाए। गुप्ता को घायल अवस्था में अस्पताल भेजा गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। दिव्यापुर पुलिस थाने के प्रभारी होशियार सिंह ने बताया कि बसपा विधायक और उनके साथियों के विरूद्ध धारा 302 सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। गुप्ता की पत्नी शशि गुप्ता का आरोप है कि बसपा विधायक ने मुख्यमंत्री मायावती के जन्म दिन पर चंदा देने के लिए इंजीनियर से 50 लाख रूपए की मांग की थी और राशि न दे पाने पर पिटाई करके उनकी हत्या कर दी।वहीं उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग इंजीनियर संघ के सचिव एसएस निरंजन ने बताया कि इस घटना के विरोध में आज से ही पूरे प्रदेश के इंजीनियर हड़ताल पर जा रहे हैं। इंजीनियर संघ ने घटना के आरोपी बसपा विधायक शेखर तिवारी को तत्काल गिरफ्तार कर उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने के साथ-साथ श्री गुप्ता के परिजनों को 25 लाख का मुआवजा तथा फील्ड में काम कर रहे अभियंताओं को सुरक्षा दिए जाने की मांग की है। निरंजन ने कहा कि जब तक मुख्यमंत्री मायावती और लोक निर्माण मंत्री संघ की मांगों को पूरा नहीं करते तब तक अभियंता हड़ताल जारी रखेंगे।दूसरी ओर पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि तिवारी जब कानपुर से औरैया जा रहे थे तब उन्हें रनिया कस्बे के पास गिरफ्तार कर लिया गया और अकबरपुर थाने ले जाकर रखा गया है। उन्होंने कहा कि हत्याकांड में नामजद दो अन्य आरोपियों की तलाश जारी है और उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। श्री सिंह ने बताया कि इंजीनियर की हत्या वाले क्षेत्र दिबियापुर थाने के थानाध्यक्ष होशियार सिंह को निलम्बित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि तिवारी से पूछताछ की जाएगी और मामले में दोषी किसी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि बसपा विधायक से अकबरपुर थाने में पूछताछ की जाएगी। वहीं प्रदेश के कैबिनेट सचिव और डीजीपी विक्रम सिंह ने आज यहां पत्रकार वार्ता में कहा कि बसपा विधायक सहित अन्य लोगों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है। इस सम्बंध में शासन और प्रशासन आरोपियों के विरूद्ध कोई कोताही नहीं बरतेगा। शीघ्र ही गिरफ्तारियां कर ली जाएगी। सरकार ने मृतक की पत्नी को पांच लाख रूपए की आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी के साथ-साथ सुरक्षा प्रदान किए जाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि इंजीनियर हत्याकांड एक गम्भीर आपराधिक घटना है। इसे अन्य घटना से जोड़कर राजनीतिक रंग देना उचित नहीं है। सरकार और प्रशासन हत्याकांड में लिप्त किसी भी आरोपी के प्रति नरमी नहीं बरतेगी। श्री सिंह ने कहा कि जब भी किसी भी घटना में सत्तारूढ़ दल से जुड़े मंत्री, सांसद अथवा विधायक का नाम सामने आया और जांच में भी उसकी लिप्तता पाई गई तो उसके विरूद्ध सख्त कार्रवाई की गई है।

जल्लादों की बस्ती में हिफाजत की बातें...!

यह वैसे ही है जैसे फांसी घर से जीने की उम्मीदें रखना या हिफाजत की बातें जल्लादों से करना॥उत्तर प्रदेश में बसपाई सत्ता मदांध में हैं और नौकरशाही पट्टा बांधे पालतू पशु से भी गई बीती। ...और हम आप कायर भेंड़ों से बदतर। एक इंजीनियर की हत्या का वहशियाना तौर-तरीका खुद ही यह चीख-चीख कर बता रहा है कि धन वसूली का हवस कितनी घिनौनी शक्ल ले चुका है। इस हवस और मुंबई में हमला करने वाले आतंकियों के हवस में क्या कोई फर्क पाते हैं आप? सत्ता व्यवस्था पर काबिज नेता एक इंजीनियर को पीट-पीट कर महज इसलिए मार डाले कि उसने 'उपहार-बंदोबस्त’ में कोताही क्यों की, तो क्या यह देश में बाहर से सेंध लगा रहे आतंकियों से ज्यादा घातक नहीं है? प्रदेश भर में विधायक और नौकरशाह मिल कर 'बर्थ-डे गिफ्ट’ के लिए जो वसूली का आपराधिक अभियान चलाए बैठे हैं, वह जिस हवस का परिणाम है, क्या आप उसे देशद्रोही वहशियों से कहीं अधिक नुकसानकारी नहीं मानते?बसपा के विधायक शेखर तिवारी ने एक इंजीनियर को किस तरह मारा, समाचार चैनलों पर मरहूम इंजीनियर की लाश की बुरी दशा देखकर उसका अंदाजा लग गया होगा। इसी हत्याकांड पर बसपा के प्रवक्ता बन कर गुर्रा रहे काबीना सचिव शशांक शेखर सिंह या पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह या दूसरे नौकरशाहों की टीवी पर पोर पोर दिख रही वफादार नस्ल भी तो व्यवस्था की दुर्दशा की ही अभिव्यक्ति दे रही है! मुख्यमंत्री मायावती के इन वफादारों के चेहरों पर किसी विधायक द्वारा बर्बरतापूर्वक एक इंजीनियर को मार डाले जाने की चिंता नहीं थी बल्कि वे इस चिंता में लगातार सफाई दे रहे थे कि यह हत्या मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर उपहार पहुंचाने की माफियाई परम्परा निभाने की विवशता में नहीं हुई। प्रदेश में शासन चलाने के नाम पर मुख्यमंत्री का भांड गायन करने वाले ये छद्म नौकरशाह यह बताते हुए तनिक शर्माते भी नहीं कि विधायक उस इंजीनियर को मरी हुई हालत में थाने पर छोड़ गया। यह एक बात शासन-प्रशासन के बड़े लोगों के रखैलिएपन की सनद देती है। बात बहुत कटु लग सकती है। तो क्या अब भी कटु न लगे? चरम अराजकता की स्थितियों की स्वीकार्यता न केवल ऐसे सियासी और नौकरशाही वेशधारी असामाजिक तत्वों के सिर उठाते चले जाने की आजादी देता है बल्कि नागरिकों के कायर-क्लीव होने की भी तो घोषणा करता है! यही तो फर्क है मुंबई वालों और उत्तर प्रदेश वालों में... कि मुंबई वालों पर फर्क पड़ता है और उत्तर प्रदेश वालों पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता! देश समाज के अंदर घुसे छिपे बैठे भितरघातियों के खिलाफ उठ खड़े होना नागरिकों के अधिक साहसी होने की मांग करता है... या यह कहें कि अब वक्त की भी यही मांग है। मुंबई-जन-प्रतिक्रिया ने यह संदेश तो दिया ही है कि नागरिकों की मुट्ठी में ही असली ताकत है। लेकिन इसका अहसास बड़ी बात है। जो उत्तर प्रदेश और उसकी राजधानी लखनऊ के लोगों में बिल्कुल नहीं है। लोक और लोकतंत्र की यह अजीबोगरीब चारित्रिक हकीकत है उत्तर प्रदेश की। पूरी व्यवस्था सियासत के इर्द-गिर्द परिक्रमा-रत है और पूरी सियासत अपराध-रत। इसका प्रतिबिंब पूरा प्रदेश देख रहा है, भुगत रहा है, पर मौन है। यह जो मारा जा रहा है और यह जो मौन साधे बैठा है... वह मतदाता है...। जो मनोवैज्ञानिक विकृतियों और आपराधिक चरित्रों की गिरोहबंदी को बहुमत देता है और खुद उसका शिकार हो जाता है। ठीक वैसे ही कि जैसे राक्षस आता है और हर दिन किसी को अपना शिकार बनाता है... और हम समझते हैं कि हम सुरक्षित हैं। यही मनोविज्ञान हमें कायर और भेंड़ बना रहा है। ऐसे मतदाता से नैतिक साहस की उम्मीद कैसी जिसने चुनाव में सही जनप्रतिनिधि को कभी चुना नहीं, अपनी जाति को चुना, अपने धर्म को चुना या पैसे पर बिक जाना चुना।महात्मा गांधी से लेकर जयप्रकाश नारायण तक यह बोलते चले गए कि जनप्रतिनिधियों को वापस बुला लेने का जनता को संवैधानिक अधिकार होना चाहिए। मुंबई हादसे की उत्तरकालिक जन-प्रतिक्रियाओं में भी एक बार फिर यह बात उभरी। लेकिन जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार पर होने वाली बहस आज तक बकवास ही साबित हुई है। हालांकि जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार की वकालत बेमानी ही है। जिस दिन मतदाता को नैतिक मूल्यों को सामने रख कर अपना प्रतिनिधि चुनना आ जाएगा उसी दिन जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार पर बहस अप्रासंगिक हो जाएगी...

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