फलस्तीन के लिए

- महमूद दरवेश
लिखो कि
मैं एक अरब हूँ
मेरा कार्ड न. ५०,००० है
मेरे आठ बच्चे हैं
नौवा अगली गर्मी में होने जा रहा है
नाराज तो नहीं हो?

लिखो कि
मैं एक अरब हूँ
अपने साथियों के साथ पत्थर तोड़ता हूँ
पत्थर को निचोड़ देता हूँ
रोटी के एक टुकडे़ के लिये
एक किताब के लिये
अपने आठ बच्चों के खातिर
पर मैं भीख नहीं माँगता
और नाक नहीं रगड़ता
तुम्हारी ताबेदारी में
नाराज तो नहीं हो?

लिखो कि
मैं एक अरब हूँ
सिर्फ एक नाम, बगैर किसी अधिकार के
इस उन्माद धरती पर अटल
मेरी जडें गहरी गई हैं
युगों तक
समयातीत हैं वे
मैं हल चलाने वाले
किसान का बेटा हूँ
घास-फूस की झोपडी़ में रहता हूँ
मेरे बाल गहरे काले हैं
आँखें भूरी
माथे पर अरबी पगडी़ पहनता हूँ
हथेकियाँ फटी-फटी है
तेल और अजवाइन से नहाना पसंद करता हूँ

मेहरबानी कर के
सबसे ऊपर लिखो कि
मुझे किसी से नफरत नहीं है
मैं किसी को लूटता नहीं हूँ
लेकिन जब भूखा होता हूँ
अपने लूटने वालों को
नोचकर खा जाता हूँ
खबरदार
मेरी भूख से खबरदार
मेरे क्रोध से खबरदार॥

2 comments:

Unknown said...

नहीं कोई नाराज सुन, ओ मोहमद दरवेश.
अरब के संग-संग और भी, जीना चाहे देश.
जीना चाहे देश, मान निज धर्म-परम्परा.
क्यों दुखता तेरा पेट,सोच कर हमें बता जरा.
कह साधक जो देगा वह पायेगा मोहम्मद.
प्रकृति के विरुद्ध चलते हैं सदा मोह-मद.

Unknown said...

एक अरब हो,डर नहीं, है अधर्म का पंथ.
मिटना है निश्चित तेरा, सत्य कह गये सन्त.
सत्य कह गये सन्त, जियेगा परोपकारी .
दानवाता सहने की चन्द दिवस लाचारी.
कह साधक कवि,सृष्टि को है हमें बचाना.
सोच-समझ कर दानव, महा-युद्ध में आना.