विजय प्रताप
राजस्थान लोकसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 25 सीटों में से 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के साथ ही पार्टी ने राज्य में चुनावी बिगुल फंूक दिया है। हांलाकि अभी तक कांग्रेस के क्षत्रप मैदान में नहीं उतरे हैं। कांग्रेस पिछले परिणामों से सबक लेते हुए कांग्रेस हर कदम फूंक-फंूक कर रखना चाहती है। उम्मीदवारों की घोशणा के साथ ही भाजपा का अंदरूनी कलह भी उभर कर सामने आने लगा है। टिकट बंटवारें में पार्टी के आम कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा कर बाहरी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाने के फैसले का कार्यकत्र्ता जगह-जगह विरोध कर रहे हैं। भाजपा ने जिन 12 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की हैं, उनमें आठ मौजूदा सांसद हैं, जबकि चार नए लोगों को मौका दिया गया है। 7 बार जयपुर के सांसद रहे गिरधारी लाल भार्गव को एक बार फिर से मैदान में थे। लेकिन टिकट घोषणा के दो दिन बाद ही भार्गव का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अब भाजपा यहां से नए उम्मीदवार की तलाश में जुट गई है। इसके अलावा जोधपुर से मौजूदा सांसद जसवंत विश्नोई, पाली से पुष्प जैन, चुरू से रामसिंह वास्वां, श्रीगंगानगर से निहालचंद मेघवाल व भीलवाड़ा से वी पी सिंह को टिकट दिया गया है। सूची में दो नेतापुत्रों को भी मौका दिया गया है। ये हैं झालावाड़ से सांसद व वसंुधरा राजे पुत्र दुश्यंत सिंह व बाड़मेर से पूर्व मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह को टिकट दिया गया है। जिन नए चेहरों को मौका मिला है उनमें धौलपुर-करौली सीट से डाॅ मनोज राजोरिया, व नागौर से पूर्व सांसद रामरघुनाथ चैधरी की पुत्री बिंदू चैधरी शामिल हैं। जिन चार लोगों के टिकट काटे गए हैं, उनमें बीकानेर के सांसद और फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र व कोटा से सांसद रघुवीर सिंह कौशल प्रमुख हैं। भाजपा बीकानेर में सांसद धर्मेंद्र के खिलाफ गुस्से को पहले से ही महसूस कर रही थी। फिल्मी में अपने अभिनय से लोगों को रिझाने वाले धर्मेंद्र वास्तविक जिंदगी में जनता के दुख-दर्द और अपनी जिम्मेदारियों को भूल मायानगरी से बाहर ही नहीं निकले। चुनाव के बाद बीकानेर के लोगों के लिए अपने सांसद का दर्शन कर पाना ईद के चांद माफिक हो गया था। संसद में भी उनकी मौजूदगी न के बराबर ही रही। फिल्मी में कुत्तों का खून चूसने वाले व चीखने चीघाड़ने वाले धर्मेंद ने संसद में एक बार भी मुंह नहीं खोला। इन सब को देखते हुए इस बार भाजपा ने यहां से नए उम्मीदवार अर्जुन राम मेघवाल को अपना उम्मीदवार घोशित किया है। मेघवाल वर्तमान में आईएएस अधिकारी हैं और बीकानेर में ही अतिरिक्त वाणिज्य कर अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
उधर कोटा से भी भाजपा ने एक सरकारी अधिकारी को चुनाव लड़ाया है। यहां से भाजपा उम्मीदवार श्याम शर्मा वर्तमान में अधिषासी अभियंता के पद पर तैनात हैं। संघ की पृश्टभूमि के शर्मा अभी तक भाजपा की प्राथमिक सदस्यता भी नहीं ग्रहण किए हैं। टिकट बंटवारें में पार्टी कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा कर नौकरषाहों को चुनाव लड़ाना भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को सुहा नहीं रहा। कुछ नेता सीधे विरोध न कर पार्टी के फैसले को स्वीकार कर ले रहे हैं। लेकिन ज्यादातर कार्यकत्र्ता पार्टी के इस फैसले को मानने से इंकार कर चुके हैं। ऐसा ही विरोध कोटा में राश्ट्ीय स्वयं सेवक संघ की पाठशाला से निकले श्याम शर्मा को लेकर भी है। इस तरह की नाराजगी का बड़ा खामियाजा भाजपा को आगामी चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
यह सारी कवायद भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के नेताओं ने संघ की नाराजगी को दूर करने के लिए की है। 12 में से 3 संघियों को टिकट देकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम माथुर संघ की नाराजगी दूर करना चाहते हैं। यह अलग बात है कि अब खुद उसके आम कार्यकत्र्ता इस रवैया से नाराज हो गए हैं। हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान टिकट बांटवारें में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अति आत्मविश्वास में संघ की सिफारिशों को खारिज कर अपने मर्जी से टिकट बांटे थे। जिसके बाद संघ खुल कर भाजपा के विरोध में आ गई। कुछ एक सीटों से संघ ने निर्दलीय प्रत्याशियों को भी समर्थन देने का फतवा जारी कर दिया। इन सब का खामियाजा भाजपा को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पड़ा। इस चुनावों में मुद्दों की बात करें तो भाजपा बिना हथियार के क्षत्रप की तरह है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद ऐसे मुद्दों की तलाश में जुटी है, जिसके बल पर लोकसभा चुनाव में हार का बदला लिया जा सके। लेकिन पांच साल के अपने कार्यकाल में वसुंधरा राजे ने आम जनता पर जो जुल्म ढाए हैं, वह उसे लोकसभा चुनाव में भी भारी पड़ने वाला है। वसुंधरा के कार्यकाल में समय-समय पर हुए नरसंहार लोगों के जेहन में भी हरे हैं। पानी मांग रहे किसानों व आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जरों के सीनों पर चली गोलियों के घाव अभी भरे नहीं हैं। इसलिए पूरे चुनाव में भाजपा को विपरित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। केन्द्रीय स्तर पर उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृश्ण आडवाणी का पुराना राम मंदिर राग भी लोगों को लुभाने के लिए काफी नहीं होगा।
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