उफ्-हमें पीटते क्यों हो !
शाहनवाज आलम
यूं तो मुख्यमंत्री मायावती को अपने राजनीतिक विरोधी फूटी आँख भी नहीं सुहाते और वे उनसे निपटने के लिए किसी भी हद जक गिर जाती हैं। लेकिन विधानसभा के सामने मायावती की लाॅ एण्ड आॅडर वाली पुलिस ने जिस तरह पिछले दिनों निरीह और निहथ्थी छात्राओं को बेरहमी से घसीट-घसीट कर लाठियाॅं भांजी उसे निरंकुश और घोर स्त्रीविरोधी ही कहा जाएगा। क्योंकि ये छात्राएं न तो विपक्ष के इशारे पर नाचने वाली कठपुतलियां थीं और ना ही वे उनकी सत्ता को चुनौती देने आयीं थीं। वे तो सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री जिसने अपने जन्मदिन पर छात्राओं की शिक्षा के लिए "महामाया आर्शीवाद योजना" और "सावित्री बाई फुले बालिका शिक्षा योजना" जैसी महत्वकंाक्षी परियोजनाएं घोषित की हैं, से सिर्फ यह मांग करने आयीं थी उनकी कापियां दुबारा जांची जांय जिसमें बड़़े पैमाने पर धांधली हुयी है।
दरअसल ये छात्राएं प्रदेश भर में सक्रिय शिक्षा माफिया और भ्रष्ट प्रशासन की नापाक गठजोड़ के शिकार हैं। इस गठजोड़ से उपजे अकादमिक अराजकता का आलम यह है कि लखनउ विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध आधा दर्जन निजी विधी महाविद्यालयों में पढने वाले सैकडों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। जहां प्रथम सेमेस्टर के परिणामों में बड़ी संख्या में विद्यार्थी फेल घोषित कर दिए गए हैं। एक्सेल लाॅ कालेज के 60 में से सिर्फ एक छात्र ही पास हो पाया है तो वहीं सिटी लाॅ कालेज के 170 छात्रों में से 5, डा0 भीमराव अम्बेडकर लाॅ कालेज के 60 में से 2 नर्मदेश्वर विधि महाविद्यालय के 60 में से 10, यूनिटी लाॅ कालेज के 160 में से 15 और लखनउ विश्वविद्यालय के 120 में से 60 छात्र ही पास हो पाएं हैं।
इन परिक्षा परिणामों को सिर्फ गैरजिम्मेदार और न पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों का खराब प्रदर्शन भर नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इतने विद्यार्थी एक साथ पढ़ने में इतने कमजोर नहीं हो सकते। पुलिस की बर्बर पिटाई की शिकार हुयीं अम्बेडकर विधि महाविद्यालय की अर्चना और अनामिका कहती हैं ‘जो छात्र प्रति सेमेस्टर साढ़े ग्यारह हजार रुपए हर छह महीने पर देता हो वो पढ़ाई के प्रति इतना लापरवाह कैसे हो सकता है कि पास भी न हो पाए।’ वहीं इस पूरे मुद्दे पर आन्दोलन कर रहे छात्र संगठन आइसा के नेता शरद जायसवाल कहते हैं कि दरअसल पूरा मामला अधिक से अधिक छात्रों को फेल करके उनसे दुबारा फीस वसूलने से जुडा़ है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से पूरे प्रदेश में निजी कालेजों की बाढ़ सी आ गयी है और उसमें भी विधि जैसे विषयों जिसमें डिग्री हाथ लगते ही रोजगार के दरवाजे खुल जाते हैं कि तो खास तौर पर उपज हुयी है। जिसके पास भी थोड़ा पैसा हो वो विधि काॅलज खोलना मुनाफे का सौदा समझता है। ऐसा इसलिए कि अव्वल तो इसके लिए रियायती दर पर जमीन और फंड मिल जाता है वहीं दूसरी ओर विधि काॅलेज प्रबन्धकों के नैतिक अनैतिक लुट खसोट पर उनके विधि माफिया हो जाने के चलते कोई उंगली उठाने की हिम्मत भी नहीं करता। लेकिन इस लूट की इन्तहां तो तब हो जाती है जब शिक्षा माफिया ऐसी डिग्रियां देने का वायदा कर छात्रों से धन उगाही करने लगते हैं जिनकी उनके पास मान्यता तक नहीं होती। मसलन, पांच वर्षीय विधि कोर्स।
सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की कमी और निजी क्षेत्र के महंगे होने के चलते मध्यम और निम्न मध्य वर्ग के हजारों युवा ऐसे शिक्षा माफिया के आसान शिकार बन जाते हैं जो उन्हें प्राफेशनल लाॅ डिग्री देने का लालच देकर मोटी ठगी करते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे दर्जनों पांच वर्षीय विधि कोर्स चल रहे हैं जहां पढ़ने वाले छात्र हमेशा सशंकित रहते हैं कि उन्हें काला कोट पहनने को मिलेगा भी या नहीं। काशी विद्यापीठ बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक के विधि संकाय के तीसरे और पांचवे सेमेस्टर तक के छात्र अपनी डिग्री को लेकर भ्रम की स्थिति में हैं। इन निजी कालेजों में छात्रों को किसी भी सेमेस्टर में मनमाने ढंग से फेल करके उनसे दुबारा फीस वसूल कर फिर उसी सेमेस्टर की परीक्षा में बैठने पर मजबूर करना आम चलन होता जा रहा है। ऐसे संसथानों में छात्रसंघों का ना होना भी कालेज संचालकों के मनोबल को बढ़ाता है। इस स्थिति में छात्रों के सामने दुबारा फीस जमा करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं होता। क्योंकि फीस न देने पर अड़ने का मतलब है अब तक की पूरी पढ़ाई और वक्त का बर्बाद होना और फिर किसी दूसरे कालेज में एडमीशन के लिए चक्कर लगाना।
इस प्रकरण की प्ष्ठभूमि भी बिल्कुल ऐसी ही है। बर्बर पुलिसिया उत्पीड़न की शिकार हुयी प्रियंका पाल सिंह बताती हैं कि जब उन्होंने कालेज प्रशासन से दुबारा कापियां जांचने की मांग की तो उनसे साफ-साफ कह दिया गया कि दुबारा कापियां किसी कीमत पर नहीं जाॅंची जाएंगी और उन्हें वर्तमान सेमेस्टर को पास करने के लिए दुबारा फीस जमा करना होगा।
बहरहाल अब यह देखना दिलचस्प होगा कि देश के विधि निर्माता को अपना आदर्श बताने वाली मायावी सरकार में ये ‘विधिगत’ लूटखसोट कब तक चलेगा।
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