उस्ताद गणेश लाल व्यास राजस्थान के उस जनकवि का नाम है जिसने गुलाम भारत से लेकर 'आजाद' भारत तक में किसानो-मजदूरों और मेहनतकशों की आज़ादी की आवाज़ को बुलंद किया. उन्होंने अपनी कविताओं को हथियार बनाया और राजस्थान की सामंती रियासती परंपरा के खिलाफ संघर्ष छेड़ा. उस्ताद ने जिस भारत का सपना देखा वही सपना शहीद भगत सिंह और १९६९-७० के दशक में नक्सलबाड़ी के लोगों ने देखा था. गैरबराबरी, सामंती जुल्मों सितम का वह दौर जिसके खिलाफ उस्ताद ने संघर्ष किया वह अभी खत्म नहीं हुआ है. ऐसे में उस्ताद गणेश लाल व्यास और उनकी कविताएँ आज़ादी का ख्वाब देखने वालों के लिए चिराग सी हैं.
जनकवि गणेश लाल व्यास 'उस्ताद' की जन्मशताब्दी के अवसर पर विकल्प जनसंस्कृतिक मंच और साहित्य अकादमी की ओर से कोटा में २८-२९ मार्च को आखर कीरत: उस्तादां री आण कार्यक्रम आयोजीत हुआ। इसमें रंगकर्मी साहित्यकार और चित्रकार रवि कुमार ने उस्ताद की कविताओं पर कुछ सुन्दर पोस्टर बनाये।
उस्ताद की एक कविता
सुख समता री रीत कठे है
आज़ादी री जीत कठे है
तन रौ जल आंसू बण बेहग्यौ
हलक सुख्ग्यौ गीत कठे है
आज़ादी री जीत कठे है।
कविता पोस्टर साभार: रवि कुमार रावतभाटा
1 comment:
बहुत ही बढ़िया लगा विजयजी आप मेरे ब्लॉग पर आये. आपके ब्लॉग के जरिये आज मुझे जनकवि गणेश लाल व्यास की रचनाओं से रूबरू होने का मोका मिला. मेरे ब्लॉग पर अपना यह दौरा नियमित बनाये रखियेगा. अच्छा लगेगा. मेरा ब्लॉग
meridayari.blogspot.com
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