विजय प्रताप
देश में तेजी से गायब हो रहे बाघों के प्रति सरकार से लेकर सभी संस्थओं की चिंता जगजाहिर है.. प्रधानमंत्री की अधक्ष्ता में गठित आयोग भी इस पर लोक नहीं लगा सका है. हाल में एक निजी संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में इस साल १७ से अधिक बाघों के मारे जाने की बात कही है. दूसरी तरफ जंगलों से गायब हो रहे तेंदुओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. इसके चलते आज जंगलों से तेदुओं का भी आस्तित्व खतरे में पड़ गया है.राजस्थान की मध्यप्रदेश से लगी सीमा के जंगलों से तेंदुए तेजी से गायब हो रहे हैं। राज्य के वन्यजीव गणना की रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र के दरा व जवाहर सागर अभयारण्य से पिछले बारह सालों में 53 तेंदुए गायब हुए हैं। 2007 की वन्यजीव गणना के हिसाब से दोनों अभयारण्यों में अब केवल 9 तेंदुए शेष रह गए हैं। स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) की एक टीम ने जयपुर के सांगानेर हवाई अड्डे के पास से 6 शिकारियों को गिरफ्तार कर अन्तरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया। टीम ने उनके पास से तेंदुए की खाल भी बरामद की है। शिकारी इस खाल को दिल्ली के किसी व्यापारी को साढे़ बारह लाख में बेचने वाले थे। गिरफ्तार अभियुक्तों ने राजस्थान-मध्यप्रदेश की सीमा से लगे जंगलों में वन्यजीवों के शिकार की बात स्वीकार की है। उनके पास से बरामद तेंदुए की खाल पर गोली के निशान हैं। शिकारियों ने बताया कि इस तेंदुए को उन्होंने बारां के जंगलों में टोपीदार बंदूक से मारा था। पुलिस उनसे और पूछताछ में जुटी। माना जा रहा है कि उनके माध्यम से हाड़ोती क्षेत्र से गायब हो रहे तेंदुओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं। कोटा जिले में स्थित दरा व जवाहर सागर अभयारण्य एक दशक पहले तक तेंदुओं की दहाड़ से गुलजार रहते थे। 1996 में दरा अभायरण्य में 39 व जवाहर सागर अभयारण्य में 24 तेंदुए थे। लेकिन इसके बाद इनकी संख्या में जो गिरावट आनी शुरू हुई वह अभी भी जारी है। सालाना वन्यजीव गणना की रिपोर्ट के मुताबिक 2002 में तेंदुओं की संख्या दरा अभयारण्य में 16 व जवाहर सागर में 14 थी। इसके बाद 2004 में क्रमशः 6- 6 व 2007 में 7-2 रह गई। वन्यजीव विषेशज्ञों की माने तो तेंदुओं के गायब होने के पीछे इन जंगलों में सक्रिय शिकारी गिरोह है। हांलाकि वन विभाग के अधिकारी इस बात से हमेशा इंकार करते रहे हैं। सेवानिवृत्त वन संरक्षक वी के सालवान का कहना है कि पिछले कुछ समय से दरा व जवाहर सागर अभयारण्य में मानवीय हस्तक्षेप तेजी से बढ़े हैं। जंगलों में अवैध खनन के लिए किए जाने वाले विस्फोट व पेड़ों की अवैध कटाई ने वन्यजीवों की स्वाभाविक जिंदगी में खलल पैदा किया है। शिकारियों का भी प्रभाव पिछले कुछ सालों से बढ़ रहा है। इन सब के लिए जिम्मेदार यहां के वन अधिकारी हैं। उनका मानना है कि वन विभाग वनों के विकास की अपेक्षा उनकी सुरक्षा पर काफी कम खर्च कर है। जिसके चलते जंगलों की सुरक्षा भगवान भरोसे रह गई। पहले छोटे मोटे जानवरों का शिकार करने वाले शिकारी अब लुप्तप्राय जानवरों के पीछे पड़ गए हैं। हांलाकि वन विभाग के अधिकारी जंगलों में शिकार से हमेशा इंकार करते रहे हैं। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक आर के मेहरोत्रा के अनुसार वन्यजीवों की घटती संख्या का कारण वनक्षेत्रों में बेतहाशा चराई है, जिससे वन्यजीवों को चारे की कमी हो जाती है और उनका प्राकृतिक चक्र बिगड़ रहा है। दरा व जवाहर सागर अभयारण्य में शिकार के संबंध में कोटा के उपवन संरक्षक (वन्यजीव) अनिल कपूर का कहना है कि हम जांच करा रहे हैं। बिना जांच के शिकारियों के मौजूदगी की पुष्टी नहीं की जा सकती।
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