भगत सिंह और यंगिस्तान

शालिनी वाजपेयी
23 मार्च 1931 को एक 23 वर्ष के युवा क्रांतिकारी ने बिना किसी ईश्वरीय सत्ता का ध्यान किए हंसते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था। यह क्रांतिकारी जिस इंकलाब की बात करता था उसकी तलवार किसी बम और पिस्तौल से नहीं बल्कि विचारों की सान पर तेज होती है। वही विचार जो पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के नाश की बात करते हैं। यह युवा क्रांतिकारी जो अपने जीवन भर एक ऐसे भारत के निर्माण का सपना देखता रहा जिसमें कोई मनुष्य किसी मनुष्य का शोषण न करे, सभी को सामान अधिकार प्राप्त हों, लेकिन क्या मिला इस शहादत से सब कुछ वही हो रहा है जिसके खात्में की बात भगत सिंह और उनके साथी किया करते थे। उन्होंने जिस साम्राज्यवाद के नाश की बात की थी वही आज हमारे युवाओं से उनकी रोजी-रोटी छीन रहा है, वही साम्राज्वाद किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहा है और मजदूरों से उनके अधिकार छीन रहा है लेकिन हम उसी साम्राज्यवाद की चौखट पर अपना मत्था टेक रहे हैं। इसी मत्था टेकने के फल में हमें परमाणु करार, आर्थिक मंदी और भारत-अमेरिका सह सैनिक युद्धा यास मिल रहा है। जो हमारे खात्मे के लिए ही विकसित किया जा रहा है, खात्मा उस आम जनता और संघर्षशील युवाओं का।
इस १५ वें लोकसभा चुनाव में सत्तर फीसदी के लगभग युवा अपने देश के भविष्य को चुनने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। युवा मतदाताओं की अधिकता के कारण सभी चुनावी दल अपनी पार्टी से युवा नेताओं को हिस्सेदार बना रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि ये युवा नेता मसलन राहुल गांधी, वरुण गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलेट जो अपने मुंह में चांदी का च मच लेकर पैदा हुए हैं और अपनी विरासती जमीन पर अपने पुरखों की लहलहाती फसल को काटने की तैयारी में लगे हुए हैं, ये इन संघर्षशील युवाओं के दर्द को समझ सकेंगे? ये समझ सकेंगे उस आईआईटी छात्र के दर्द को जो इतनी मेहनत के बाद भी बेरोजगारी की भूलभुलैया में खोया हुआ है। ये समझ सकेंगे उन छात्रों को जो बेरोजगारी की पीड़ा न सहन करने के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। ये उस छात्र को समझ सकेंगे जो विवि और कॉलेजों की महंगी शिक्षा की वजह से ही अशिक्षित रह जाता है। चंद दलितों के घर खाना ख लेने से, उनके घर पर रात बिता लेने से इन गरीब दलितों की समस्याएं खत्म नहीं हो जाएंगी। इनकी समस्याएं अभी भी पहाड़ की तरह इनके सामने खड़ी हैं तब जरूरत है ऐसी नीतियों की, ऐसे निर्णयों की जो इनकी जिंदगी खुशहाल बना सकें और रोके इन दलितों होने वाले शोषण को जो अभी भी सामंतों के द्वारा इन पर किया जा रहा है। रोके सामाजिक शोषण को जिसके बोझ से ये अभी भी उबर नहीं पा रहे हैं।
जब इतनी सारी समस्याएं खड़ी हैं, तो सवाल उठता है कि है किसी युवा नेता में इतनी दम जो इन सारी समस्याओं को हल कर सके। जब इतनी मुश्किलों की बात आती है तो बस एक ही युवा नेता का नाम याद है वह है भगत सिंह की विरासत को स भालने वाला और इनके विचारों पर चलने वाला कोई नेता। ऐसे समय में भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने क्9 अक्टूबर क्9ख्9 को लाहौर के छात्रों के लिए जो पत्र लिखा था उसके शŽद अभी भी गूंज रहे हैं और इतने ही प्रासंगिक हैं जितने कल थे, `इस समय पर हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएं लेकिन राष्ट्रीय इतिहास के इन कठिन क्षणों में नौजवानों के कंधों पर बहुत बड़ी जि मेदारी आ पड़ेगी। यह सच है कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में अगि्रम मोर्चे पर विद्यार्थियों ने मौत से टक्कर ली है। क्या परीक्षा की इस घड़ी में वे उसी प्रकार की दृढ़ता और आत्मविश्वास का परिचय देने से हिचकिचाएंगे? नौजवानों को क्रांति का यह संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचाना है, करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है जिससे आजादी आएगी और तब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण अस भव हो जाएगा।ं
भगत सिंह की ऐसी क्रांति की इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है। नौजवानों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बलिदान दिए हैं, लेकिन इन कठिन क्षणों में नौजवानों के ऊपर बड़ी जि मेदारी है। इन नौजवानों को भगत सिंह के सपनों के भारत के लिए अभी लड़ना है। जरूरत है इसी तरह की क्रांति की, इसी तरह के बदलाव की जिसकी बात भगत सिंह और उनके साथी किया करते थे। अपनी इसी जि मेदारी के साथ युवाओं को भगत सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भगत सिंह जैसे नेता को चुनना होगा। वर्तमान नेताओं से मांग करनी होगी ऐसे ही व्यçक्त की जो इतने बदलाव ला सके, जो इतने सारे सवालों को हल कर सके। जब इतनी सं या में युवा मतदान करने जा रहे हैं तो उन्हें अपनी इस भूमिका को और मजबूती से साबित करना है, यही मौका है जब बदलाव की ज्वला जलाई जा सकती है। इन युवा मतदाताओं को बाहर आना होगा अपने मनोरंजन की दुनिया से, आहर आना होगा एसी और सोफों से ताकि मजदूर किसान के दर्द को समझ सकें और उन्हें उनकी जीत का आश्वासन दे सकें। चुनावी खेल में शामिल होकर अपनी ताकत इन झूठे और मक्कार नेताओं को दिखानी होगी। युवा वर्ग ही ऐसा होता जिसमें कुछ कर दिखाने की क्षमता होती है, अपनी इसी क्षमता को सिद्ध करना है।
मीडिया भी युवा नाम को बहुत प्रचारित करता है मगर अपने स्वार्थरूप में न कि वास्तविक छवि में? उसके लिए यंगिस्तान वही है जो `पेप्सीं से अपनी प्यास बुझाता है। उसके युवा धोनी एंड ग्रुप पेप्सी पीकर कहते हैं कि ये है यंगिस्तान मेेरी जान, लेकिन यंगिस्तान ये नहीं है। यंगिस्तान वह है जो लोक सभा के चुनावों में अपनी ताकत दिखाएगा और अपने देश का बेहतर भविष्य चुनेगा। इस समय मीडिया को भी इस छद्म यंगिस्तान को भूलकर वास्तविक यंगिस्तान की ओर अपना रुख करना होगा। मीडिया को भगत सिंह के विचारों को प्रचारित करना होगा। फिल्में भी भगत सिंह को हमारे युवाओं से जोड़कर दिखाने का प्रयास करें जिससे युवा इस `पेप्सीं जैसे घटिया पेय से प्यास बुझाने वाले यंगिस्तान की असलियत जान सकें और इसे ठोकर मार कर बाहर निकाल सकें, क्योंकि यही तो है जो हमारे युवाओं को छल रहा है।
भगत सिंह ने कहा था- `क्रांति से हमारा प्रयोजन अंततज् एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना से है जिसको इस प्रकार के घातक खतरों का सामना न करना पड़े और जिसमें सर्वहारा वर्ग की प्रभुता को मान्यता दी जाए और एक विश्व संघ मानव जाति को पूंजीवाद के बंधन से तथा युद्ध से बबाüदी और मुसीबत से बचा सके।ं
हमें इसी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से बचना है जो हमारे किसानों, युवाओं को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहा है। हमें इसी सम्राज्यवाद से बचना है जो गरीबों के हाथ से रोटी छीन रहा है और हमारे बच्चों को कुपोषण की गुफा में ढकेल रहा है। तो आह्वान है ऐसी ही युवा क्रांति का जो भगत सिंह की विरासत को आगे बढ़ा सके, और बो सके ऐसी बंदूकें जो पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का नाश कर सकें और सर्वहारा की सत्ता लाकर समाजवाद को स्थापित कर सकें।
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