जंगल के बीच एक रात

विजय प्रताप

कोटा। दरा वन्यजीव अभयारण्य में एक बार फिर वन्यजीव गणना हुई। रविवार को खत्म हुई इस दो दिवसीय कार्रवाई में पैंथर और रीछ की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। मांसाहारी जानवरों का कम दिखना हालांकि चिंता का मसला रहा, लेकिन जरख, जंगली सूअर, सियार, लोमडी, कबर बिज्जू, तीतर और जंगली बिल्ली के झुंड खूब नजर आए।वन विभाग ने बुद्ध पूर्णिमा की रात हुई वन्यजीव गणना में स्वयंसेवी संगठनों, शोध छात्रों व मीडिया को भी शामिल किया। इस पत्रिका संवाददाता ने पूरे दो दिन अभयारण्य में बिताने के बाद दिलचस्प मुहिम का लेखाजोखा खींचा। एक रिपोर्ट:

मैं शनिवार शाम 5 बजे तक दरा अभयारण्य में पहुंच गया था। 274 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले दरा अभयारण्य के 55 वॉटर पॉइंट्स (जहां जानवर पानी पीते हैं) पर वनकर्मी पहले ही "सेट" हो चुके थे। उप वन संरक्षक (वन्यजीव) अनिल कपूर ने क्षेत्रीय वन अधिकारी जयसिंह राठौड व कुछ अन्य पर्यावरण पे्रमियों के साथ दरा अभयारण्य में प्रवेश किया। इसी दल में मैं भी था। अधिकारियों ने पहले ही बता दिया था कि हर वॉटर पॉइंट पर दो वनकर्मी तैनात हैं। उन्हें अपने पॉइंट पर आने वाले जानवरों की संख्या व समय नोट करना था।

जंगल के कैसे-कैसे नियम

रास्ते में अनिल कपूर जंगली जानवरों के बारे में अहम बातें बताते रहे। मसलन पानी पीने के मामले में वन्यजीवन अघोषित "प्रोटोकॉल" का पालन करता है। शाम 5 से रात 8 बजे तक पहले शाकाहारी जानवर और उसके बाद मांसाहारी जीव पानी पीते हैं। शाम साढे पांच बजे हम बंदे की पाल पहुंचे। यहां कोई जानवर नहीं दिखा। 6-7 किलोमीटर चलने के बाद सांभर का झुंड नजर आया, जो गाडी की आवाज सुनते ही ओझल हो गया। इसके बाद जैसे-जैसे आगे बढे, चीतल, बंदर, मोर व नीलगाय के झुंड दिखते रहे। वॉटर पॉइंट से जरख, जंगली सूअर, सियार, लोमडी, कबर बिज्जू, तीतर व जंगली बिल्ली के झुंड देखे जाने की सूचनाएं मिलने लगीं। ... लेकिन हमारा मुख्य लक्ष्य तो पैंथर खोजना था!

एक गांव में एक निवासी

बंदे की पाल, झामरा चौकी होते हुए पथरीले रास्तों के बीच दल करीब 7 बजे लक्ष्मीपुरा चौक पहुंच गया। यहां वन विभाग के रेस्ट हाउस के पास जर्जर हालात में सात-आठ टापरियां नजर आइंü। पता चला कि इसी गांव को विस्थापित किया जाना है, तो उत्सुकतावश उन घरों में जा पहुंचा। 7 बजे ही यहां मानो रात पसर गई थी। आवाज लगाने पर 24 साल का एक युवक भोजराज बाहर आया। उसने बताया कि यहां के लगभग सभी परिवार दूसरे गांवों में जा चुके हैं। हालांकि मुआवजे की आस में उन्होंने अभी तक पुश्तैनी जमीन का कब्जा नहीं छोडा है।

सोया नहीं था सा"ब!

लक्ष्मीपुरा रेस्ट हाउस में चाय पीने के बाद हम रात करीब 8 बजे राम तलाई पहुंचे। गाडी की आवाज सुन कर एक वनरक्षक और एक लटधारी ग्रामीण आंखें मिचमिचाते हुए आए। डीसीएफ ने पूछा, "सो रहे थे क्याक्" जवाब मिला, "नहीं साब, जाग रहा था।" "कुछ दिखा क्याक्" "नहीं, अभी तो कुछ नहीं दिखा", वनरक्षक ने मुंह पोंछते हुए कहा। "सोओगे तो क्या दिखेगा", डीसीएफ बोले। "एक रात की बात है जगे रहो", डीसीएफ ने हिदायत दी और आगे बढ गए।पैंथर के निशान दिखेलक्ष्मीपुरा चौक रेस्ट हाउस पर कुछ घंटे रूकने के बाद सुबह का उजाला होने से पहले ही हम फिर रवाना हो चुके थे। सुंदरपुरा की चौक, बेवडा तलाई और राम सागर में वनरक्षकों ने भालू के पगमार्क दिखने की सूचना दी। सबसे सुखद खबर मिली कैथूनी कल्ला से। यहां वनरक्षक ने पैंथर का पगमार्क प्लॉस्टर ऑफ पेरिस पर जमा रखा था। कोलीपुरा रेंज के शेलजर से भी पैंथर के पगमार्क मिलने की सूचना मिली। रविवार शाम 5 बजे के बाद लौटे वनकर्मियों ने लक्ष्मीपुरा व मशालपुरा के बीच नारायणपुरा व गागरोन फोर्ट के पास गिद्ध कराई में भी पैंथर के पगमार्क दिखने की जानकारी दी।

ये जानवर दिखे

उप वन संरक्षक (वन्यजीव) अनिल कपूर ने बताया कि गणना समाप्त होने के बाद दरा व जवाहर सागर वन्यजीव अभयारण्य से 10 पैंथर, 13 भालुओं के अलावा 23 प्रजातियों के अन्य वन्यजीव देखे गए। इनमें चीतल, सांभर, काला हिरण, चिंकारा, भेडिया, लोमडी, जरख, जंगली बिल्ली व सूअर, गोह, गिद्ध, बंदर व मोर प्रमुख हैं।

साभार राजस्थान पत्रिका

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