नवरात्र.....नख दंत विहीन नायिका का स्वागत है !

गीताश्री

शक्ति की पूजा-आराधना का वक्त आ गया है। साल में दस दिन बड़े बड़े मठाधीशों के सिर झुकते हैं..शक्ति के आगे। या देवि सर्वभूतेषु....नमस्तस्ये..नमो नम...। देवी के सारे रुप याद आ जाते हैं। दस दिन बाद की आराधना के बाद देवी को पानी में बहाकर साल भर के लिए मुक्ति पा लेने का चलन है यहां। फिर कौन देवी...कौन देवी रुपा.
ये खामोश देवी तभी तक पूजनीय हैं, जब तक वे खामोश हैं...जैसे ही वे साकार रुप लेंगी, उनका ये रुप हजम नही होगा..कमसेकम अपनी पूजापाठ तो वे भूल जाएं।
आपने कभी गौर किया है कि शक्ति की उत्पति शक्तिशाली पुरुष देवों के सौजन्य से हुई है। इसमें किसी स्त्री देवी का तेज शामिल नहीं है। शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी(यहां अपवाद है) के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पैरों की उंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न भिन्न् अंग बनें....।
कहने को इनमें तीन स्त्रीरुप हैं..अगर उनके पर्यायवाची शब्द इस्तेमाल करें तो वे पुरुषवाची हो जाएंगे। इसलिए ये भी देवों के खाते में...। ये पुरुषों द्वारा गढी हुई स्त्री का रुप है, जिसे पूजते हैं, जिससे अपनी रक्षा करवाते हैं, और काम निकलते ही इस शक्ति को विदा कर देते हैं। इन दिनों सारा माहौल इसी शक्ति की भक्ति के रंग में रंगा है...जब तक मू्र्ति है, खामोश है, समाज के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करती तब तक पूजनीया है। बोलती हुई, प्रतिवाद करती हुई, जूझती, लड़ती-भिड़ती मूर्तियां कहां भाएंगी।
हमारी जीवित देवियों के साथ क्या हो रहा है। जब तक वे चुप हैं, भली हैं, सल्लज है, देवीरुपा है, अनुकरणीय हैं, सिर उठाते ही कुलटा हैं, पतिता हैं, ढीठ हैं, व्याभिचारिणी हैं, जिनका त्याग कर देना चाहिए। मनुस्मृति उठा कर देख लें, इस बात की पुष्टि हो जाएगी।
किसी लड़की की झुकी हुई आंखें...कितनी भली लगती हैं आदमजात को, क्या बताए कशीदे पढे जाते हैं। शरमो हया का ठेका लड़कियों के जिम्मे...।
शर्म में डूब डूब जाने वाली लड़कियां सबको भली क्यों लगती है। शांत लड़कियां क्यों सुविधाजनक लगती है। चंचल लड़कियां क्यों भयभीत करती हैं। गाय सरीखी चुप्पा औरतों पर क्यों प्रेम क्यों उमड़ता है। क्योंकि उसे खूंटे की आदत हो जाती है, खिलाफ नहीं बोलती, जिससे वह बांध दी जाती है। जिनमें खूंटा-व्यवस्था को ललकारने की हिम्मत होती है वे भली नहीं रह जाती। प्रेमचंद अपनी कहानी नैराश्यलीला की शैलकुमारी से कहलवाते हैं..तो मुझे कुछ मालूम भी तो हो कि संसार मुझसे क्या चाहता है। मुझमें जीव है, चेतना है, जड़ क्योंकर बन जाऊं...।
आगे चलकर से.रा.यात्री की कहानी छिपी ईंट का दर्द की नायिका घुटने टेकने लगती है--हम औरतों का क्या है। क्या हम और क्या हमारी कला। हमलोग तो नींव की ईंट हैं, जिनके जमीन में छिपे रहने पर ही कुशल है। अगर इन्हें भी बाहर झांकने की स्पर्धा हो जाए तो सारी इमारत भरभरा कर भहरा कर गिर पड़े।...हमारा जमींदोज रहना ही बेहतर है .....।
लेकिन कब तक। कभी तो बोल फूटेंगे। बोलने के खतरे उठाने ही होंगे। बोल के लब आजाद हैं तेरे...। कभी तो पूजा और देवी के भ्रम से बाहर आना पड़ेगा। अपनी आजादी के लिए शक्ति बटोरना-जुटाना जरुरी है।
ताकतवर स्त्री पुरुषों को बहुत डराती है।
जिस तरह इजाडोरा डंकन के जीवन के दो लक्ष्य रहे है, प्रेम और कला। यहां एक और लक्ष्य जो़ड़ना चाहूंगी...वो है इन्हें पाने की आजादी। यहां आजादी के बड़े व्यापक अर्थ हैं। पश्चिम में आजादी है इसलिए तीसरा लक्ष्य भारतीय संदर्भ में जोड़ा गया है। एक स्त्री को इतनी आजादी होनी चाहिए कि वह अपने प्रेम और अपने करियर को पाने की आजादी भोग सके। यह आजादी बिना शक्तिवान हुए नहीं पाई जा सकती। उधार की दी हुई शक्ति से कब तक काम चलेगा। शक्ति देंगें, अपने हिसाब से, इस्तेमाल करेंगे अपने लिए..आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब झर गईं आपकी चाहतें। ज्यादा चूं-चपड़ की तो दुर्गा की तरह विदाई संभव है। सो वक्त है अपनी शक्ति से उठ खड़ा होने का। पीछलग्गू बनने के दिन गए..अपनी आंखें..अपनी सोच..अपना मन..अपनी बाजूएं...जिनमें दुनिया को बदल देने का माद्दा भरा हुआ है।
इस बहस का खात्मा कुछ यूं हो सकता हैं।
सार्त्र से इंटरव्यू करते हुए एलिस कहती है कि स्त्री-पुरुष के शक्ति के समीकरण बहुत जटिल और सूक्ष्म होते हैं, और मर्दो की मौजूदगी में औरत बहुत आसानी से उनसे मुक्त नहीं हो सकती। जबाव में सार्त्र इसे स्वीकारते हुए कहते हैं, मैं इन चीजों की भर्त्सना और निंदा करने के अलावा और कर भी क्या सकता हूं।

पूरा पढ़े नुक्कड़ पर

4 comments:

sanghars said...

स्त्रियों की सही स्तिथि का आकलन किया है.

sanghars said...

स्त्रियों की सही स्तिथि का आकलन किया है.

sanghars said...

स्त्रियों की सही स्तिथि का आकलन किया है.

प्रज्ञा पांडेय said...

aapka blog bhi gajab hi lag raha hai .. kya nahin hai yahan ....