देश में नक्सल समस्या से निपटने के नाम पर सरकार अब आदिवासी बहुल इलाकों में सेना व वायु सेना का प्रयोग करने पर विचार कर रही है। गृहमंत्री ने पिछले दिनों पत्रकारों से बातचीत में अपनी इस मंशा का खुलासा किया। कई मानवाधिकार संगठनों, लेखक, पत्रकार, छात्र व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बहुराष्ट्रीय निगमों के पक्ष में नक्सलियों से युद्ध लड़ने का आरोप लगाया है। इसी मुद्दे पर बुधवार (21 अक्टूबर, 09) समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन पर एक बहस आयोजित की गई। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता व लेखिका अरुंधति राॅय व झारखण्ड के सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डंगडंग ने भाग लिया। प्रस्तुत है उसका हिंदी रूपान्तरण।
सीएनएन-आईबीएन - नक्सली नेता किशन जी का साफ कहना है कि वो और हिंसक होंगे। ऐसे हिंसक वातावरण में आप कैसे आशा करेंगी की भारत सरकार वहां नक्सलियों से बातचीत करे। जिसकी की अरूंधति राॅय व अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं। हिंसा छोड़ने के बारे में आपका क्या कहना है?
अरुंधति - मैने वो पत्र देखा है, जिसमें मिस्टर चिदम्बरम ने नागरिक समूहों से नक्सलियों से हिंसा छोड़ने के लिए उन्हें फुसलाने को कहा गया है। मुझे लगता है कि यह कपट है। क्योंकि एक दुहरा वातावरण रचा जा रहा है। एक तरफ नक्सली हैं और दूसरी तरफ सरकार है। बीच में मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। यह सरलीकरण बहुत ही जटिल तस्वीर है। मैं नहीं मानती की मानवाधिकार कार्यकर्ता कोई अलग समूह से संबंधित है। अहिंसक व लोकतांत्रिक प्रतिरोधों का एक पूरा दायरा है। जिसे नक्सल कहा जा रहा है और मोलभाव की उम्मीद की जा रही है। इसलिए यदि सरकार नक्सलियों से कोई बातचीत करना चाहती है, तो उसे केवल उन्हीं से बातचीत करनी चाहिए।
सीएनएन-आईबीएन - सरकार विशेषरूप से नागरिक समूहों से कह रही है कि वो सीपीआई माओवादी से बात करें और उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में लाए। इसमें गलत क्या है?
अरुंधति - मैं नागरिक समूह नहीं हूं। मैं एक एक्टिविस्ट हूं।
सीएनएन-आईबीएन - लेकिन मंगलवार कल को आप एक नागरिक समूह के रूप में ही लोगों के सामने आई और सरकारी हिंसा बंद करने की मांग कर रही थी।
अरुंधति राॅय - बिल्कुल। आप इसे उस ऐतिहासिक संदर्भ में देखे कि ऐसा क्यों हुआ। छत्तीसगढ़ जैसी जगहों पर नक्सली 30 सालों से हैं। यह स्थिति अभी क्यों बनी। जैसे की आवाजों की कोई लहर बह रही हो। वास्तविकता यह है और जो मेरा विष्वास भी है कि सरकार जंगलों को साफ करने के लिए युद्ध लड़ना चाहती है। क्योंकि झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में वह कई सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर कर चुकी है और उनकी जरूरतों को पूरा करना चाहती है।
सीएनएन-आईबीएन - गृहमंत्री ने कुछ महीनों पहले सीएनएन-आईबीएन से कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब में कहा था कि सरकार उन क्षेत्रों में विकास कार्य चाहती है, लेकिन जब हम सड़कें बनाते हैं नक्सली उसे ध्वस्त कर देते हैं, हम स्कूल बनाते हैं नक्सली उसे ध्वस्त कर देते हैं। वह सब कुछ ध्वस्त कर देना चाहते हैं। वहां कोई विकास कार्य नहीं होने देना चाहते। आप इसे दोहरा कह सकती हैं, लेकिन यह चिकन या अंडे के कौर जैसी स्थिति है। आप भारत सरकार से क्या उम्मीद कर सकती हैं जब विरोधी ताकत हथियार उठाए हो, पुलिस का सिर कलम कर रही हो और हिंसा की आड़ ले रही हो?
अरुंधति - दांतेवाड़ा के हिमांशु कुमार ने मंगलवार को सूचना के अधिकार के तहत सरकार से पूछा कि नक्सलियों ने कितने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों व सामाजिक कार्यों में लगे लोगों की हत्या की। जवाब नहीं में था। क्या मिस्टर चिदम्बरम के विकास का मतलब वहां रह रहे लोगों के विकास से अलग है। मैं दांतेवाड़ा में थी और वहां सड़के बनते देखा। आप बताइए क्या वह सड़क नहीं है, जो आदिवासियों के चलने के लिए बनी है। लेकिन मैं सड़कों के लिए खनन के खिलाफ हूं।
सीएनएन-आईबीएन - तो क्या आप मानती हैं कि उस संदर्भ में हिंसा खत्म होनी चाहिए। वित्त मंत्री को साफ कहना है कि - जब तक माओवादियों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में हिंसा खत्म नहीं हो जाती बातचीत की बाधा दूर नहीं की जा सकती। अब अलबत्ता उन्हें हथियार छोड़ देना चाहिए।
अरुंधति - इसी को मैं कपट कह रही हूं। जब सरकारी बलों पर हमला होता है वह सरकारी बल जिसके पास सेना है, वायुसेना है को देष के सबसे गरीब लोगों का युद्ध मान लिया जाता है। यह कठिन है। लेकिन जब वह चीन से, पाकिस्तान से बात करना चाहते हैं उसका क्या। यह कैसी नीति है?
सीएनएन-आईबीएन -लेकिन हथियार किसके पास है? भारत सरकार कहती है कि नक्सली हथियारों से लैस हैं।
अरुंधति राॅय - सरकार के पास भी हथियार हैं।
सीएनएन-आईबीएन - तो नक्सली क्या करेंगे? वह तो पूरी तरह से हथियारों से लैस हैं।
अरुंधति राॅय - आप यह कैसे कह सकते हैं?
सीएनएन-आईबीएन - आप कह रही हैं कि गरीब लोग मारे जा रहे हैं। लेकिन नक्सली भी अपना नैतिक अधिकार 10-20 साल पहले ही खो चुके हैं, जब कि वो बच्चों की हत्याएं कर रहे थे, महिलाओं की हत्या कर रहे थे। कौन जिम्मेदार है इसके लिए?
अरुंधति राॅय- हिंसा के बारे में यह कोई भी नहीं कह सकती कि यह अचानक पैदा हो गई। दांतेवाड़ा में 644 गांव खाली करा लिए गए हैं। वर्श 2005 से साढ़े तीन लाख लोग गायब हैं।
सीएनएन-आईबीएन - एक हिंसा से दूसरी हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
अरुंधति राॅय - बिल्कुल नहीं। लेकिन आप तुलना उनमें कर रहे हैं जहां एक तरफ कुछ के पास हवाई व नाभकिय ताकत है, सेना है, दूसरी तरफ कुछ गरीब लोग हैं।
सीएनएन-आईबीएन - अरुंधति राॅय का कहना है कि कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नहीं मारी जा रही, लेकिन हम जानते हैं कि 659 लोग मारे जा चुके हैं। इसमें 259 पुलिसकर्मी व 400 आम नागरिक हैं। तो ग्लैडसन अब अपने मूल प्रष्न पर लौटते हैं। क्या अब आपको कहीं दूर-दूर तक वापस बातचीत की मेज नजर आ रही है?
ग्लैडसन - अब हम सही मुद्दे पर आए हैं। सरकार झारखण्ड में क्यों चीख रही है? मेरा ही उदाहरण लें- मेरे माता-पिता की नृषंस हत्या कर दी गई। बांध के नाम पर 20 एकड़ जमीन ले ली गई लेकिन हमें मुआवजा नहीं दिया गया। अगर मैं नक्सली बन जाता तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होता। आज भारत सरकार कल से आगे धावा बोलने जा रही है। सीआरपीएफ झारखण्ड के सबसे कम नक्सल प्रभावित क्षेत्र सिंहभूमि में प्रवेश के लिए तैयार है। वह सिंहभूमि से षुरूआत चाहते हैं। क्योंकि सरकार ने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा 102 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं।
सीएनएन-आईबीएन - आप कहना चाह रहे हैं कि सरकार उन काॅरपोरेट व बहुराश्ट्ीय निगमों की ओर से खेल रही है जो खुला जंगल चाहते हैं?
ग्लैडसन - हां-हां।
सीएनएन-आईबीएन - शायद यह कुछ विषेश क्षेत्रों के लिए सही हो लेकिन उन क्षेत्रों के लिए सही नहीं जो छत्तीसगढ़ से पष्चिम बंगाल तक रेड काॅरिडोर तक फेला है।
अरुंधति राॅय - अगर आप इस कथित रेड काॅरिडोर में खनिज संपदा के संग्रहण को देखे तो इसे भी आप सही पाएंगे। जिंदल, टाटा व एसआर, सभी ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। जिस साल सलवा-जुडूम षुरू हुआ उसी साल इन सहमति पत्रों पर दस्तख्त किए गए।
सीएनएन-आईबीएन - लेकिन नक्सली लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेते हुए उन मुद्दों को क्यों नहीं उठाते? यही वह बिंदु है जिस पर गृहमंत्री और समय दे रहे हैं ताकि नक्सलियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से फिर से जोड़ा जा सके। लेकिन यदि वह राज्य में कोई विष्वास ही नहीं रखते तो यह स्वाभाविक ही है कि भारतीय राजसत्ता उन्हें बलपूर्वक इसमें लाए।
अरुंधति राॅय - मैं दो बातें कहना चाहती हूं। एक तो हम 'नक्सली' शब्द का बहुत अगंभीरता से प्रयोग कर रहे हैं। सरकार ने साफ कह दिया है कि जो लोग सलवा जुडुम (जो कि एक रणनीतिक गांव है जिसका उपयोग वियतनाम युद्ध में हुआ था) के साथ हैं या सरकार के खिलाफ हैं।
सीएनएन-आईबीएन - सलवा जुडुम शायद पूर्ववर्ती सरकार की नीति थी। क्योंकि पिछले कुछ सालों से इसके बारे में नहीं सुना जा रहा है। उसी सरकार ने वर्श 2004 से नक्सलियों से बातचीत की दिशा में कदम बढाएं हैं।
अरुंधति राॅय - यही सच नहीं है। वो व्यक्ति जो सलवा जुडुम चल रहा है, वह कांग्रेस का आदमी है। एक नदी है इंद्रावती। उसकी दूसरी तरफ पाकिस्तान है। हम सभी से कहा जा रहा है कि अगर आप नदी पार करते हैं मार दिए जाएंगे।
सीएनएन-आईबीएन - मुख्य सवाल का जवाब दें। नक्सली लोकतांत्रिक प्रक्रिया में क्यों नहीं आना चाहते? हमे भूमि विस्थापन का मुद्दा उठाना चाहिए लेकिन लोकतांत्रिक बातचीत के जरिए।
अरुंधति राॅय - हमे यह देखना चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया है क्या? भारतीय चुनाव अमरीकी चुनाव से मंहगा है। 99 प्रतिषत स्वतंत्र उम्मीदवार हार जाते हैं। अधिकतर सांसद करोड़पति हैं। अब आप किसी एक से जैसे ग्लैडसन से कहते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आइए। जबकि उसके पास मीडिया में जगह खरीदने के लिए धन नहीं है, उसके पास काॅरपोरेट का पैसा नहीं है।
सीएनएन-आईबीएन - आप को लगता है कि चुनावी प्रक्रिया में एक भी ऐसा नहीं है जो आपकी आवाज सुने। यदि वे बहुत लोकप्रिय हैं, उनके मुद्दे जैसे भूमि विस्थापन बहुत नाजुक है, तो वह चुनावी प्रक्रिया में क्यों नहीं आते?
ग्लैडसन - बहुत से विस्थापित लोगों ने पिछली सरकार से बातचीत करनी चाही थी। लेकिन न तो षिबु सोरेन ने न ही राज्यपाल ने उनकी बात सुनी।
सीएनएन-आईबीएन - मैं जानता हूं की गृहमंत्री यह कार्यक्रम देख रहे हैं, क्योंकि हम उनके बारे में बात कर रहे हैं। आप उनसे क्या कहना चाहेंगे।
ग्लैडसन - मैं यही कहना चाहूंगा कि अगर आप नक्सलवाद के मुद्दे को हल करना चाहते हैं तो आपको आदिवासियों के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गैरबराबरी को हल करना होगा। तब आप विकास की बात करें।
सीएनएन-आईबीएन - अब यदि मिस्टर चिदम्बरम यह कहे कि यदि आप इन मुद्दों व विकास की बात करते हैं तो बंदूक छोड़े। आइए पहले बंदूके छोड़े और बात करें।
अरुंधति राॅय - आप के पास हजारों की संख्या में सुरक्षाबल है, पूरे क्षेत्र में भारी हथियार है। आप ने कई सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं। यदि आप भारत के नक्षे पर देखें कि खान, जंगल व आदिवासियों का ढेर कहां तो सभी को एक दूसरे के उपर पाएंगे। और यदि आप चैकस हैं, नागरिक सेना गांवों में बलात्कार करे, महिलाओं की हत्या करे, जैसा की सलवा जुडुम की नीति है। और आप कहें की पहले आप बंदूके छोड़ दो फिर हम आए और आपकी जमीनों का अधिग्रहण कर ले, तो इससे आप क्या दिखाना चाहते हैं।
सीएनएन-आईबीएन - तो हम किसी निश्कर्श पर नहीं पहुंचे। एक चल रही हिंसा का जवाब दूसरी हिंसा से दिया जा रहा है।
अरुंधति राॅय - मुझे लगता है कि लोगों से यह वादा किया जाना चाहिए कि कोई विस्थापन नहीं होगा, सभी सहमति पत्र जनता के अनुरूप होंगे। इस क्षेत्र के विकास के लिए एक साफ नीति होनी चाहिए और जिस पर जनता के बीच बहस होनी चाहिए। उनके सुझाव लिए जाने चाहिए जिनके पास कुछ नहीं है। तब कोई बात हो सकती है।
सीएनएन-आईबीएन - तो आप का जवाब सरकार की उस अपील के संबंध में जिसमें नागरिक समूहों से सीपीआई माओवादी को बातचीत के लिए राजी करने के कहा गया है ‘ना’ है?
अरुंधति राॅय - आप ऐसा कैसे कह सकते हैं, मैं ऐसा कहने वाली कौन हूं। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। ये समूह काफी जटिल हैं।
सीएनएन-आईबीएन - आप चाहती है कि सारी जिम्मेदारी खुद सरकार उठाए। नागरिक समूहों व एक्टिविस्टों की कोई जिम्मेदारी नहीं है?
अरुंधति राॅय - हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन मुद्दों को उठाएं। लेकिन हम वह नहीं है जिसे जनता ने चुन कर भेजा है।
सीएनएन-आईबीएन - अंत में ग्लैडसन आप क्या कहना चाहेंगे?
ग्लैडसन - देखिए समस्या दो दषक पुरानी है। तब राजीव गांधी ने कहा था कि गरीबों तक सिर्फ 15 पैसा पहुंचता है, आज राहुल गांधी भी वही बात कह रहे हैं। मतलब की अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
सीएनएन-आईबीएन - आप कह रहे हैं कि 25 सालों से देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठहर गई है?
ग्लैडसन- हां। दूसरी बात यह है कि जब प्रियंका गांधी राजीव गांधी के हत्यारों से मिलती हैं तो वह जनता की मसीहा जैसे पेश की जाती हैं, लेकिन जब कोई विनायक सेन आदिवासियों को इलाज करता है तो वह नक्सलियों का समर्थक बन जाता है। इसे न्यायपूर्ण कैसे कहा जा सकता?
सीएनएन-आईबीएन - यह एक काफी जटिल मुद्दा है जिसे हल करने के लिए काफी समय चाहिए। गहरा अंधेरा है जिसके पार हमे देखने की जरूरत है। कुछ लोगों का मानना है कि यह दुहरा मुद्दा है, एक तरफ नक्सल हैं दूसरी तरफ राज्य है। अरुंधति राॅय जैसे लोगों को शायद गृहमंत्री चिदम्बरम से बातचीत करनी चाहिए। लेकिन इसमें भी निष्चितता की कोई भावना नहीं है। एक आशा है कि कोई समाधान निकलेगा। अब समाधान की जरूरत है लेकिन यह भी जरूरी है कि हिंसा दोनों तरफ से बंद हो।
अनुवाद व प्रस्तुति- विजय प्रताप
सीएनएन-आईबीएन पर बहस की वीडियो देखें Govt at war with Naxals to aid MNCs: Arundhati
हम विकास विरोधी नहीं: कोबाड गाँधी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य कोबाड गाँधी को पिछले दिनों पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी की सूचना मीडिया में आने के बाद उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने की तैयारी में लगी दिल्ली पुलिस को अपना इरादा बदलना पड़ा। मुंबई के पारसी परिवार में जन्मे गाँधी उस उच्च वर्ग से आते हैं जिसने दून स्कूल, सेंट जेवियर काॅलेज और लन्दन से पढ़ाई की। लंदन से लौटने के बाद उन्होंने कमेटी फार प्रोटेक्षन आफ डेमोके्रटिक राइटस (सीपीडीआर) के माध्यम से बदलाव की राजनीति में कदम रखा। बीबीसी बांग्ला की संवाददाता सुवोजित बाग्ची ने पिछले साल उनका एक साक्षात्कार लिया था। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का हिंदी अनुवादः
क्या माओवादी छत्तीसगढ़ में खुद को आगे बढ़ाने के लिए आदिवासियों को शिक्षित करने में जुटे हैं?
हम मोबाइल स्कूल के माध्यम से आदिवासियों को प्राथमिक शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चों को प्राथमिक स्तर पर विज्ञान, गणित व स्थानीय भाषा सीखा रहे हैं। हमारे लोग पिछड़े लोगों के लिए विशेष कोर्स तैयार करने में लगे हैं जिससे वह जल्दी सीख सकते हैं। हम स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर भी जोर दे रहे हैं। आदिवासियों को पानी उबाल कर पीने की सलाह देते हैं। इससे 50 प्रतिशत बीमारियां खुद ही कम हो जाती हैं। कई और गैर सरकारी संगठन भी ऐसा कर रहे हैं। महिलाओं के स्तर में सुधार के प्रयास किए हैं जिससे शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। इस क्षेत्र में विकास का स्तर सब सहारन अफ्रीका की तरह है।
तो क्या आप यह कह रहे हैं कि माओवादी लोगों की हत्या की बजाए उनकी मदद करते हैं?
हां। लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री हमे मौत का कीड़ा (डेडलीस्ट वायरस) मानते हैं।
आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
विकास के बारे में हमारी बिल्कुल साफ अवधारणा है। हमारा मानना है कि भारतीय समाज अर्ध सामंती व अर्ध औपनिवेषिक राज्य है और इसे लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है। इसके लिए पहला कदम होगा कि जमीन जरूरतमंद को मिले। इसलिए हमारी लड़ाई भूमि हथियाने व गरीबों का शोषण करने वालों से है। हमारा विशेष ध्यान ग्रामीण भारत पर है।
छत्तीसगढ़ में आप लोगों को इतने संगठित रूप में कैसे जोड़े रखते हैं?
इसका एक मुख्य कारण है हम श्रम के सम्मान की बात करते हैं। उदाहरण के लिए यहां ग्रामीण बीड़ी बनाने के लिए तेंदू पत्ता इकट्ठा करते हैं। करोड़ों डाॅलर में यह उद्योग चल रहा है। हमारे यहां आने से पहले आदिवासियों की दैनिक मजदूरी 10 रुपए से भी कम थी। यहां भारत सरकार द्वारा तय दैनिक मजदूरी दूर की कौड़ी थी। हमने ठेकेदारों को मजबूर किया कि वह मजदूरी बढ़ाएं। हमने मजदूरी 3 से 4 गुना बढ़वाई। इसलिए लोग हमें पसंद करते हैं।
लेकिन इसका कारण यह भी है कि आपके पास सशस्त्र बल है?
मैं उसके बारे में कुछ ज्यादा नहीं बता सकता। क्योंकि मैं उस शाखा से नहीं जुड़ा हूं और उनके सदस्यों को भी नहीं जानता।
आप विकास की बात कर रहे हैं। क्या आप अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में सरकारी विकास कार्यों के लिए छूट देंगे?
क्यों नहीं। हम विकास कार्यों का विरोध नहीं करते। उदाहरण के लिए हमने कुछ स्कूलों के निर्माण का विरोध नहीं किया। लेकिन यदि स्कूल सैन्य छावनी में बदलने के लिए बनाए जा रहे हैं तो हम इसका विरोध करते हैं। भारत में ऐसा कई बार हो चुका है।
आप बंदूक के बल पर राजनीति करते रहेंगे?
बंदूक कोई मुद्दा नहीं है। उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे राज्यों के कई गांवों में इतनी बंदूके हैं, जितना पूरे देश मे माओवादियों के पास नहीं होंगी। सरकार और कुछ वर्ग हमारी विचारधारा से डरते हैं इसलिए हमें अपराधी की तरह पेश किया जाता है।
क्या माओवादियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हमले से आपके गढ़ का सुरक्षित रहना संभव है?
लड़ाई मुष्किल है। पूंजीवाद व सत्ता एक दूसरे में घुले-मिले हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है और शोषण के मामलों में वृद्धि हो रही है। हम इसे संगठित करने में लगे।
आप कभी मुख्यधारा की राजनीति में भाग लेंगे?
नहीं। क्योंकि हम ऐसे लोकतंत्र में विष्वास करते हैं जो लोगों का सम्मान करे और उसे स्थापित करना इस देश में संभव नहीं।
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अनुवाद व प्रस्तुति : विजय प्रताप
क्या माओवादी छत्तीसगढ़ में खुद को आगे बढ़ाने के लिए आदिवासियों को शिक्षित करने में जुटे हैं?
हम मोबाइल स्कूल के माध्यम से आदिवासियों को प्राथमिक शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चों को प्राथमिक स्तर पर विज्ञान, गणित व स्थानीय भाषा सीखा रहे हैं। हमारे लोग पिछड़े लोगों के लिए विशेष कोर्स तैयार करने में लगे हैं जिससे वह जल्दी सीख सकते हैं। हम स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर भी जोर दे रहे हैं। आदिवासियों को पानी उबाल कर पीने की सलाह देते हैं। इससे 50 प्रतिशत बीमारियां खुद ही कम हो जाती हैं। कई और गैर सरकारी संगठन भी ऐसा कर रहे हैं। महिलाओं के स्तर में सुधार के प्रयास किए हैं जिससे शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। इस क्षेत्र में विकास का स्तर सब सहारन अफ्रीका की तरह है।
तो क्या आप यह कह रहे हैं कि माओवादी लोगों की हत्या की बजाए उनकी मदद करते हैं?
हां। लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री हमे मौत का कीड़ा (डेडलीस्ट वायरस) मानते हैं।
आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
विकास के बारे में हमारी बिल्कुल साफ अवधारणा है। हमारा मानना है कि भारतीय समाज अर्ध सामंती व अर्ध औपनिवेषिक राज्य है और इसे लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है। इसके लिए पहला कदम होगा कि जमीन जरूरतमंद को मिले। इसलिए हमारी लड़ाई भूमि हथियाने व गरीबों का शोषण करने वालों से है। हमारा विशेष ध्यान ग्रामीण भारत पर है।
छत्तीसगढ़ में आप लोगों को इतने संगठित रूप में कैसे जोड़े रखते हैं?
इसका एक मुख्य कारण है हम श्रम के सम्मान की बात करते हैं। उदाहरण के लिए यहां ग्रामीण बीड़ी बनाने के लिए तेंदू पत्ता इकट्ठा करते हैं। करोड़ों डाॅलर में यह उद्योग चल रहा है। हमारे यहां आने से पहले आदिवासियों की दैनिक मजदूरी 10 रुपए से भी कम थी। यहां भारत सरकार द्वारा तय दैनिक मजदूरी दूर की कौड़ी थी। हमने ठेकेदारों को मजबूर किया कि वह मजदूरी बढ़ाएं। हमने मजदूरी 3 से 4 गुना बढ़वाई। इसलिए लोग हमें पसंद करते हैं।
लेकिन इसका कारण यह भी है कि आपके पास सशस्त्र बल है?
मैं उसके बारे में कुछ ज्यादा नहीं बता सकता। क्योंकि मैं उस शाखा से नहीं जुड़ा हूं और उनके सदस्यों को भी नहीं जानता।
आप विकास की बात कर रहे हैं। क्या आप अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में सरकारी विकास कार्यों के लिए छूट देंगे?
क्यों नहीं। हम विकास कार्यों का विरोध नहीं करते। उदाहरण के लिए हमने कुछ स्कूलों के निर्माण का विरोध नहीं किया। लेकिन यदि स्कूल सैन्य छावनी में बदलने के लिए बनाए जा रहे हैं तो हम इसका विरोध करते हैं। भारत में ऐसा कई बार हो चुका है।
आप बंदूक के बल पर राजनीति करते रहेंगे?
बंदूक कोई मुद्दा नहीं है। उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे राज्यों के कई गांवों में इतनी बंदूके हैं, जितना पूरे देश मे माओवादियों के पास नहीं होंगी। सरकार और कुछ वर्ग हमारी विचारधारा से डरते हैं इसलिए हमें अपराधी की तरह पेश किया जाता है।
क्या माओवादियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हमले से आपके गढ़ का सुरक्षित रहना संभव है?
लड़ाई मुष्किल है। पूंजीवाद व सत्ता एक दूसरे में घुले-मिले हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है और शोषण के मामलों में वृद्धि हो रही है। हम इसे संगठित करने में लगे।
आप कभी मुख्यधारा की राजनीति में भाग लेंगे?
नहीं। क्योंकि हम ऐसे लोकतंत्र में विष्वास करते हैं जो लोगों का सम्मान करे और उसे स्थापित करना इस देश में संभव नहीं।
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अनुवाद व प्रस्तुति : विजय प्रताप
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