भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य कोबाड गाँधी को पिछले दिनों पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी की सूचना मीडिया में आने के बाद उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने की तैयारी में लगी दिल्ली पुलिस को अपना इरादा बदलना पड़ा। मुंबई के पारसी परिवार में जन्मे गाँधी उस उच्च वर्ग से आते हैं जिसने दून स्कूल, सेंट जेवियर काॅलेज और लन्दन से पढ़ाई की। लंदन से लौटने के बाद उन्होंने कमेटी फार प्रोटेक्षन आफ डेमोके्रटिक राइटस (सीपीडीआर) के माध्यम से बदलाव की राजनीति में कदम रखा। बीबीसी बांग्ला की संवाददाता सुवोजित बाग्ची ने पिछले साल उनका एक साक्षात्कार लिया था। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का हिंदी अनुवादः
क्या माओवादी छत्तीसगढ़ में खुद को आगे बढ़ाने के लिए आदिवासियों को शिक्षित करने में जुटे हैं?
हम मोबाइल स्कूल के माध्यम से आदिवासियों को प्राथमिक शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चों को प्राथमिक स्तर पर विज्ञान, गणित व स्थानीय भाषा सीखा रहे हैं। हमारे लोग पिछड़े लोगों के लिए विशेष कोर्स तैयार करने में लगे हैं जिससे वह जल्दी सीख सकते हैं। हम स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर भी जोर दे रहे हैं। आदिवासियों को पानी उबाल कर पीने की सलाह देते हैं। इससे 50 प्रतिशत बीमारियां खुद ही कम हो जाती हैं। कई और गैर सरकारी संगठन भी ऐसा कर रहे हैं। महिलाओं के स्तर में सुधार के प्रयास किए हैं जिससे शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। इस क्षेत्र में विकास का स्तर सब सहारन अफ्रीका की तरह है।
तो क्या आप यह कह रहे हैं कि माओवादी लोगों की हत्या की बजाए उनकी मदद करते हैं?
हां। लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री हमे मौत का कीड़ा (डेडलीस्ट वायरस) मानते हैं।
आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
विकास के बारे में हमारी बिल्कुल साफ अवधारणा है। हमारा मानना है कि भारतीय समाज अर्ध सामंती व अर्ध औपनिवेषिक राज्य है और इसे लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है। इसके लिए पहला कदम होगा कि जमीन जरूरतमंद को मिले। इसलिए हमारी लड़ाई भूमि हथियाने व गरीबों का शोषण करने वालों से है। हमारा विशेष ध्यान ग्रामीण भारत पर है।
छत्तीसगढ़ में आप लोगों को इतने संगठित रूप में कैसे जोड़े रखते हैं?
इसका एक मुख्य कारण है हम श्रम के सम्मान की बात करते हैं। उदाहरण के लिए यहां ग्रामीण बीड़ी बनाने के लिए तेंदू पत्ता इकट्ठा करते हैं। करोड़ों डाॅलर में यह उद्योग चल रहा है। हमारे यहां आने से पहले आदिवासियों की दैनिक मजदूरी 10 रुपए से भी कम थी। यहां भारत सरकार द्वारा तय दैनिक मजदूरी दूर की कौड़ी थी। हमने ठेकेदारों को मजबूर किया कि वह मजदूरी बढ़ाएं। हमने मजदूरी 3 से 4 गुना बढ़वाई। इसलिए लोग हमें पसंद करते हैं।
लेकिन इसका कारण यह भी है कि आपके पास सशस्त्र बल है?
मैं उसके बारे में कुछ ज्यादा नहीं बता सकता। क्योंकि मैं उस शाखा से नहीं जुड़ा हूं और उनके सदस्यों को भी नहीं जानता।
आप विकास की बात कर रहे हैं। क्या आप अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में सरकारी विकास कार्यों के लिए छूट देंगे?
क्यों नहीं। हम विकास कार्यों का विरोध नहीं करते। उदाहरण के लिए हमने कुछ स्कूलों के निर्माण का विरोध नहीं किया। लेकिन यदि स्कूल सैन्य छावनी में बदलने के लिए बनाए जा रहे हैं तो हम इसका विरोध करते हैं। भारत में ऐसा कई बार हो चुका है।
आप बंदूक के बल पर राजनीति करते रहेंगे?
बंदूक कोई मुद्दा नहीं है। उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे राज्यों के कई गांवों में इतनी बंदूके हैं, जितना पूरे देश मे माओवादियों के पास नहीं होंगी। सरकार और कुछ वर्ग हमारी विचारधारा से डरते हैं इसलिए हमें अपराधी की तरह पेश किया जाता है।
क्या माओवादियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हमले से आपके गढ़ का सुरक्षित रहना संभव है?
लड़ाई मुष्किल है। पूंजीवाद व सत्ता एक दूसरे में घुले-मिले हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है और शोषण के मामलों में वृद्धि हो रही है। हम इसे संगठित करने में लगे।
आप कभी मुख्यधारा की राजनीति में भाग लेंगे?
नहीं। क्योंकि हम ऐसे लोकतंत्र में विष्वास करते हैं जो लोगों का सम्मान करे और उसे स्थापित करना इस देश में संभव नहीं।
साक्षात्कार को मूल रूप में पढ़ने के लिए क्लिक करें कोबाड गाँधी
अनुवाद व प्रस्तुति : विजय प्रताप
1 comment:
ye chintayen hii to nagvaar gujaratii hain sarkar ko
ngo chalate..mil baant khate..fir kaahen kaa etraaz hota?
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