नींद नहीं आती मुझे

नींद नहीं आती मुझे
उजाले में नहीं आती है,नींद मुझे
चुभता है,यह फिल्प्स आँखों में
सिकोड़कर बंद कर लू आँखें तो
दिखता है गोधरा का सच मुझे,
लाल हो जाती है आँखें,मांस के लोथड़ों से
तड़पाकर गिरते पशु महोबा के खेत में
विदर्भ की फटी धरती पर किसान का खून सना
गोलियों के छर्रे पर नंदीग्राम का सच लिखा
आँखें ढ़कता हूँ,कपड़े से जब मैं
ओखली सा पेट लेकर,नंगों की एक फौज खड़ी
डर कर आँखें खोलता हूँ,जब मैं-
दिखता है उजाल भारत उदय मुझे
बंद कर लू उंगलियों से जो कान के छेदों को
बिलकिश की चीखों से कान फटता मेरा
किसानों की सिसकियाँ चित्कारती है क्यों मुझे?
शकील के घर सायरन का शोर है,
फौज़ के बूट जैसे मेरे सर पर है,
चक्रसेन के कटते सर की खसखसाहट चूभती है,
अब उजाले में नींद मुझसे उड़ती है।


पंकज उपाध्याय

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