बग्गा जी कहते हैं उर्फ़ रियल पत्रकार की छवि
मैं जिस संस्थान में काम करता हूँ वहाँ एक बग्गा जी हैं जितेन्द्र बग्गा। क्राइमरिपोर्टर हैं . मेरे बारे में अक्सर वह कहतें हैं की विजय रियल पत्रकार लगता है. बिल्कुल दबा कुचला, पैर में चप्पल पहने जनता की बात कराने वाला. वो ये बात मेरे लिए क्यों कहतें हैं मुझे पता है और यह मेरे लिए नया भी नहीं है. इससे पहले मैं भाषा में भी कुछ दिन रहा. वंहा के संपादक कुमार आनंद को भी मेरी यह छवि पसंद नहीं आई. उन्हों ने इसे कस्बाई पत्रकाओं वाली छवि करार दिया. उनके सामने भी जब मैं पहली बार गया था तो बिल्कुल उसी गेट अप जैसे मैं हमेशा रहता हूँ. शर्ट बाहर किए, पैर में चप्पल पहने और पार्टी कांग्रेस में मिला जुट वाला बैग लिए हुए. संपादक महोदय ने इसे कस्बाई छवि वाला पत्रकार का नाम दिया और साथ ही हिदायत भी की यह नही चलेगा. खैर मेरी यह छवि संसद मार्ग पर बने उस बड़े से आफिस से बिल्कुल ही मेल नहीं खाता था. लेकिन हरकतों में बहुत बदलाव नहीं आया और मुझे वंहा आगे काम कराने का मौका भी नहीं मिला. मौजूदा संस्थान के संपादक से मैं पहली दफा बिल्कुल उसी गेट अप में मिला बात करते करते वह कई बार मुझे ऊपर से निचे तक देखें. मेरे झोले को देखें. इसलिए जब बग्गा जी यह बात कहते हैं तो मुझे कतई यह बुरा नहीं लगता. बस कुछ सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ की वास्तव में रियल पत्रकार की छवि क्या उसके कपडे और चप्पलें तय करतीं हैं. फ़िर मैं आपने ब्लॉग को खोलकर उन पत्रकारों की कहानी पढता हूँ जिन्हें पुलिस माओवादी बता कर गिरफ्तार किया है. क्या उनकी भी यही छवि रही होगी. आख़िर आज आदमी का गेट अप क्यों यह तय कराने लगा है की वह कैसा होगा. आज जब हम आम आदमी की बात करतें हैं तो आधिकंश लोगों इसे आजिब तरह से लेतें हैं. इस बने बनाये खाके से अलग हट कर कुछ करना चाहों तो यह व्यवस्था तुरंत आपको मावोवादी या नक्सली करार देती हैं. मीडिया में आकर कई अच्छे लोग भी मज़बूरी में या व्यवस्था से न लड़ पाने के कारन उसी के होकर रह जातें हैं. लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस व्यवस्थ में रह कर भी इससे लड़ रहें हैं और ख़ुद को जिंदा रखें हैं. मेरे सामने एक इसे भी पत्रकार का उदाहरण हैं. अनिल चमडिया ऐसे ही एक पत्रकार हैं जो शायद आने वाली पीढ़ी के हम जैसे युवा पत्रकारों का आदर्श बन सकतें हैं. जो ख़ुद भी ऐसे तमाम अनुभवों से गुजारें हैं. उनके यह अनुभव ही मुझमे यह सहस भरतें हैं की व्यवस्था से लड़ना कठिन तो है नामुमकिन नहीं. इसके लिए बस तय करना होगा की आप किस तरफ़ बहना चाहतें हैं नदी के साथ या उसके विपरीत.
2 comments:
doing great job. keep it up.
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ultateer.blogspot.com
आपका ब्लॉग देखने के बाद,
आपसे मिलना चाहता हुँ.
आप चाहें तो मुझे फोन कर सकते हैं.
मेरा मोबाईल नम्बर है- 09868419453
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