बर्बरता की रिपोर्ट

गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में मारे गये लोगों का लगभग दो हफ्ते के बाद पोस्टमार्टम हुआ। आन्दोलनकारियों की मांग थी की जब तक आरक्षण की चिट्टी केन्द्र सरकार को नहीं भेज दी जाती शव राज्य सरकार को नहीं सौंपेंगे. लेकिन लगभग दो हफ्ते बाद आखिरकार शवों का पोस्टमार्टम हो सका है और जो रिपोर्ट आई है वो राज्य सरकार के बर्बरता को साफ साफ बयां करती है. आन्दोलन में करीब ४५ लोग मरे गए थे. ये आकाणा केवल पिछले महीने मरे गए लोगों का है, इससे पहले पिछले साल के आन्दोलन में भी करीब २५-३० लोग मारे गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर लोगों को गोली कमर से ऊपर या सिर में मारी गई थी. केवल यही नहीं दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट की माने तो एक प्रदर्शनकारी की मौत गोली लगाने के बाद गला दबाने से हुई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आनुसार टोरद निवासी सुरेश गुर्जर को पहले पैर में गोली मारी गई फिर अस्पताल पहुचाने से कुछ देर पहले उसका गला दबा दिया गया. रिपोर्ट में उसके गले और सरीर पर चोट के निशान पाए गए। ऐसे ही एक और प्रदर्शनकारी हनुमान की मौत गोली लगाने के बाद घायल अवस्था में गला दबाने से हुई। प्रदर्शनकारियों की माने तो १४ घायलों को पुलिस आरपीऍफ़ के जवान हास्पिटल लेकर गए उन सभी की मौत हो गई। जबकि जिन २४ लोगों को स्थानीय लोगों ने हास्पिटल पहुचाया उनमे से किसी की भी मौत नहीं हुई. इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं की घायलों के साथ क्या हुआ होगा. इसकी पुष्टि अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी कर रही है .
सरकारी बर्बरता का यह कोई पहला नमूना नहीं है लेकिन शायद इस तरह से मारने का पहला ही उदाहरण हों. राज्य की वसुन्धरा सरकार किसी भी आन्दोलन से गोली बंदूक से निपटे का यह पुराना तरीका है. जब से वह सत्ता में है तब से अब तक १०० से भी अधिक लोग पुलिस की गोली के शिकार हो चुकें हैं. प्रदर्शनकारिओं को जानबूझ कर गोली मारी गई। कई लोगों को तो तब घायलों को उठाते समय गोली मारी गई. लेकिन राज्य सरकार के कुछ मंत्री यह प्रचारित करने मैं लगे थे की अधिकतर प्रदर्शनकारी कट्टे या देशी बंदूक के छर्रे लगाने से मरे. राजस्थान पुलिस का यह रवैया पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार के ही जैसा था जिसके शासन काल में सिंगुर और नंदीग्राम में उसकी पुलिस और निजी कैडरों ने अपनाया था. वहाँ भी पुलिस की बर्बरता की कहानी वहाँ मरे गए लोगों के शव ख़ुद कहते थे और राज्य सरकार उसे माओवादियों की करतूत बताती रहीं, इससे एक बात तो साफ है की सत्ता में कोई भी हो लेकिन पुलिस और सरकार का रवैया एक जैसा ही रहता है.
१८५७ के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ जम कर लड़ने वाले गुर्जरों को उस समय अंग्रेजों ने आपराधिक प्रवृति का घोषित कर दिया था. इस सम्बन्ध में हाल ही इतिहासकार अमरेश मिश्रा का एक लेख दैनिक अमर उजाला के २९ मई के अंक में प्रकाशित हुआ था.जिसमे उन्होंने १८५७ के संग्राम में गुर्जरों की भूमिका का उल्लेख किया था. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले गुर्जर आज अगर भारतीय राज सत्ता से लड़ रहें हैं. यह लड़ाई और भी व्यापक होगी. क्योंकि आज सत्ता में उन्हीं अंग्रेजों के चाटुकार हैं. और कम से कम राजस्थान में तो हैं ही. यहाँ आज सत्ता जिस सिंधिया राजघराने के हाथ में है वह आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ खड़ा था और उनके साथ मिलकर अपने ही देश्वशियों के आन्दोलन को कुचला था. आज इन्ही चाटुकार हुक्मरानों की वजह से वो सत्ता में हैं और आजादी के लिए लड़ने वाली जनता उनके सामने याचक बन के खडी है.
इनको आरक्षण देने की मांग राज्य में विपक्ष में रहने वाली सभी पार्टियाँ करती रहीं हैं. लेकिन सरकार में आने के बाद कभी इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया. यह केवल गुर्जरों के साथ ही नहीं हुआ बल्कि और भी कई इसी जातियाँ हैं जिनको ये राजनितिक दल अपने स्वार्थों के लिए यूज करते रहें हैं. अभी बहुत दिन नहीं हुए उस तस्वीर के छापे जिसमे बेतहाशा भागती के अर्ध नग्न आदिवासी लड़की लड़की को एक 'भीड़' लोहे की छड़ और डंडों से पिट रही थी. कौन थी वो लड़की? वो भी एक इसी ही जाति की लड़की थी जिसे कभी अंग्रेजों ने चाय के बगानों में मजदूरी के लिए झारखण्ड के पिछडे गावों से ले जाकर आसाम के चाय बगानों में बसाया था. जिसे अब 'टी ट्राइब' के नाम से जाना जाता है. इस जाती के लोग भी अपने को एस सी वर्ग में शामिल करें के लिए आंदोलनरत हैं. इन्हे भी करीब ४ दशकों से भरमाया जा रहा है. जो भी विपक्ष में होता है, इनकी मांगों को जायज बताता है. लेकिन सत्ता पते ही भूल जाता है. लेकिन अब लगता है की जनता लड़ना सीख रहीं हैं.यह जरुर है की उनका नेतृत्व उन्हीं बुर्जुआ पार्टियों के हाथ में है जो कभी भी अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए किसी से समझौता कर सकतें हैं. लेकिन जब एक बार लोगों में सत्ता और पुलिस का भय ख़त्म हो जाएगा तो वो कल को इन साम्राज्यवादपरस्त सत्ताधारिओं को भी बेदखल कर सकतें हैं जैसा की नेपाल की जनता ने कर दिखाया. छोटे छोटे उदेश्यों को लेकर जगह जगह जनता लड़ रही है. उसका आक्रोश बार बार उभर कर अब सामने आ रहा है. जिसे जरुरत है एक सही नेतृत्व की.

1 comment:

shailesh said...

visv ke sabase bade lokatantra ki yahi hakikat hai