शाहनवाज आलम
यदि साल भर पहले हुए उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो पिछले तीन दशकों में बलिया का यह पहला लोकसभा चुनाव है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर प्रत्याशी नहीं हैं। लेकिन बावजूद इसके पूरा चुनाव चंद्रशेखरमय ही लगता है। चट्टी-चैराहों की आम जनता की बहस मुबाहिसों से लेकर विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेताओं यहां तक कि प्रत्याशियों की जबान पर भी चंद्रशेखर ही हैं। जहां जनता हर उम्मीदवार का कद चंद्रशेखर के मुकाबले आंक रही है वहीं हर उम्मीदवार खुद को चंद्रशेखर का असली वारिस होने का दावा कर रहे हैं।
दरअसल बलिया का चुनाव हमेशा चंद्रशेखर केन्द्रित ही रहा है। जहां इस लोकतंत्र के उत्सव का मतलब उन्हें दुबारा संसद में भेजना होता था। लेकिन चूंकि इस बार उनके न रहने पर कई लोग उनका फोटोकाॅपी होने के दावे के साथ मैदान में उतरे हैं इसलिए इस बार ये सीट कई मायनों में महत्तवपूर्ण हो गई है। अव्वल तो ये कि परिसीमन के चलते उपजे नए भूगोल ने इस सीट के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है। वहीं लगभग तीन दशकों से वीआईपी सीट होने के कारण सभी राजनैतिक दल चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद उपजे खाली शून्य को भरने की कोशिश में लगे हुए हैं। नए परिसीमन में इसमें जहां एक ओर अब तक गाजीपुर लोकसभा का हिस्सा रहे जहूराबाद और मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट जुड़ गई हैं वहीं बांसडीह विधानसभा उससे कटकर सलेमपुर लोकसभा का हिस्सा हो गया है। जहूराबाद और मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट जो जातिगत दृष्टि से भूमिहार बनाम मुस्लिम, पिछड़े और दलित वोटों में विभाजित हैं में अब तक मुख्य लड़ाई भाजपा और उस पार्टी के बीच रहा है जिसमें बाहुबली अंसारी बन्धु मुख्तार और अफजाल रहे हैं। लेकिन अब चंूकि ये पूरा क्षेत्र बलिया लोकसभा का हिस्सा बन गया है इसलिए अंसारी बन्धुओं का कोई प्रत्यक्ष हित इस सीट नहीं जुड़ा है। लेकिन चंूकि भाजपा ने पूर्व सांसद मनोज सिन्हा को अपना प्रत्याशी बनाया है जो बाहुबली विधायक कृष्णानन्द राय के करीबी रहे हैं और जिनकी हत्या में अंसारी बन्धू आरोपी हैं, इसलिए बाहरी होते हुए भी इस सीट पर उनकी प्रतिष्ठा और अहम् दांव पर लगा है। ऐसे में अगर उनका प्रभाव चला तो बसपा प्रत्याशी संग्रामसिंह यादव भारी पड़ सकते हैं। जिन्हें पार्टी का परम्परागत दलित वोट के साथ ही थोक मुस्लिम वोट मिल सकता है। लेकिन चूंकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की छवि अल्पसंख्यकों में एक अग्रिम पंक्ति की धर्मनिरपेक्ष और उनके बेटे सपा प्रत्याशी अभी इस राह से विचलित नहीं दिखते इसलिए इधर के मुस्लिम वोटर दो बाहुबलियों के वर्चस्व की लड़ाई में मोहरा बनने के बजाय नीरज शेखर के साथ आ जाए इसकी संभावना भी उतनी ही प्रबल है। वहीं दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा जहूरबाद और मोहम्मदाबाद के सजातीय भूमिहार वोटरों के साथ ही बलिया के गाजीपुर से लगे गंगा के मैदानी क्षेत्रों जहां भूमिहार अच्छी तादात में हैं के भरोसे ताल ठोंक रहे हैं। लेकिन चूंकि भाजपा बलिया में अपनी कोई खास जमींन नहीं बना पाई है और चंद्रशेखर को भूमिहार मत भी लगभग एकतरफा मिलता रहा है। इसलिए चंद्रशेखर के इर्दगिर्द ही केन्द्रित चुनाव में यह समीकरण बदलेगा ऐसी संभावना कम ही है।
इस लिहाज से देखें तो सपा प्रत्याशी नीरज शेखर का मुख्य मुकाबला बसपा से ही दिखता है। जिसने पूर्व विधायक और अतीत में भी साईकिल और हाथी दोनों की सवारी कर चुके संग्राम यादव को प्रत्याशी बनाकर सपा के जातिगत आधार में सेंध मारने की कोशिश की है। हालांकि उसका यह प्रयोग नया नहीं है और उसने 2004 के चुनाव में भी चंद्रशेखर के खिलाफ एक कम चर्चित कपिलदेव यादव को लड़ाया था जिसे मुलायम सिंह यादव के चंद्रशेखर के पक्ष में जनसभाएं करने के बावजूद लगभग एक लाख मत मिले थे। वैसे सदर और द्वाबा ;अब बैरिया विधानसभाद्ध बसपा के कब्जे में है जहंा से मंजू सिंह और सुभाष यादव विधायक हैं। लेकिन चूंकि चंद्रशेखर स्वयं विधानसभा सीटों के उनके विरोधी दलों के पाले में होने के बावजूद आसानी से लोकसभा में पहुंचते रहे हैं। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके उत्तराधिकारी को रोकने में मायावती की सोशल इंजीनियरिंगग कहां तक कामयाब होती है। बहरहाल चुनाव के पूरी तरह चंद्रशेखर केन्द्रित होने के चलते जनता के वास्तिवक मुद्दे चर्चा से बाहर हो गए हैं। जबकि यह जिला पिछले दिनों कई अहम सवालों के चलते चर्चा में रहा जिस पर राजनीतिक दल चुप्पी साधे हुए हैं। मसलन द्वाबा क्षेत्र के सैकड़ों गांवों की लाखों आबादी आरसेनिक युक्त पानी पीने को अभिषप्त हैं जिसके चलते महामारी की स्थिति पैदा हो गई है। लेकिन यह किसी भी उम्मीदवार के एजेंडे में नहीं है। वहीं दूसरी ओर पिछले दिनों उजागर हुए देश के सबसे बड़े खाद्यान्न घोटाले का केन्द्र भी बलिया ही है और मायावती द्वारा प्रस्तावित गंगा एक्सप्रेस भी यहीं से शुरू होनी है। जिसकी चपेट में 112 गांव के लाखों परिवार आने वाले हैं जहां के किसान लम्बे समय से आंदोलनरत हैं। गंगा कृषि भूमि बचाओ मोर्चा जिसने पचास हजार पर्चे बांट कर चुनाव में उतरे राजनैतिक दलों से गंगा एक्सप्रेस वे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है के जिला संयोजक बलवंत यादव इस चुनाव को विरासत की राजनीति के नाम पर किसानों के सवालों को दबाने की कवायद बताते हैं। वहीं पूर्वांचल के सबसे पिछड़े जिलों में से एक जहां से सबसे ज्यादा भुखमरी के सवाल भी सामने आए हैं में कृषि संकट और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हुए जनसंग्राम मोर्चा के बैनर से वामपंथी गीतकार हरिहर ओझा तरूण भी मैदान में हैं।
बहरहाल जिस तरह चुनाव बाद किसी भी एक दल के पूर्ण बहुमत में आने की संभावना ना के बराबर है और गैर कांग्रेस, गैर भाजपा मोर्चा बनाने की कवायद चल रही है उसमें चंद्रशेखर की याद आनी तय है।
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